Thursday, 22nd May 2025

क्या भूलें, क्या याद रखें पॉलिटिकल लीडर्स? क्या सीख देती हैं 2017 की ये सियासी घटनाएं

Sun, Dec 31, 2017 6:33 PM

नई दिल्ली. इस साल भारतीय राजनीति या इस पर असर डालने वाली कुछ ऐसी घटनाएं हुईं, जो लंबे वक्त तक खबरों में बनी रहीं।   जिनसे पॉलिटिकल लीडर्स या इससे जुड़े लोग कुछ याद रख सकते हैं, कुछ भूल सकते हैं या कुछ सीख सकते हैं।

 

1) उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव

क्या हुआ?
यूपी की 403 विधानसभा सीटों के लिए फरवरी-मार्च में चुनाव हुए। बीजेपी को 312 और सहयोगी दलों के साथ 325 सीटें मिलीं। 2012 के चुनाव में बीजेपी को राज्य में सिर्फ 47 सीटों से संतोष करना पड़ा था। उसके मुकाबले इस बार उसे 563% ज्यादा सीटें मिलीं।

क्यों याद रखें?
मोदी-योगी सरकार: 66 साल में यूपी में किसी भी दल की तीसरी रिकॉर्ड जीत बीजेपी के नाम रही। बीजेपी को राम लहर में जितनी सीटें मिलीं, उससे ज्यादा सीटें मोदी-योगी लहर में मिलीं। राज्य में वह 14 साल बाद सत्ता में लौटी। इस रिकॉर्ड जीत का असर 2019 के लोकसभा चुनाव तक बनाए रखने के लिए योगी-मोदी पर यूपी में गुड गवर्नेंस देने का दबाव है।

सपा-बसपा: कास्ट फैक्टर्स के भरोसे हर चुनाव नहीं जीता जा सकता। फिलहाल मोदी की खुलेतौर पर मुखालफत करके दोनों में किसी भी पार्टी का सत्ता में बने रहना मुमकिन नहीं लगता।

2) राहुल की ताजपोशी

क्या हुआ?
- राहुल गांधी ने 16 दिसंबर को कांग्रेस के 60वें प्रेसिडेंट के तौर पर पद संभाला। वे गांधी परिवार के छठे मेंबर हैं, जिन्हें इस पोस्ट पर चुना गया है। उनसे पहले मोतीलाल नेहरू, जवाहर लाल नेहरू, इंदिरा गांधी, राजीव गांधी और सोनिया गांधी इस पद पर रही हैं। सबसे ज्यादा वक्त तक 19 साल सोनिया रहीं।

क्यों याद रखें?
राहुल गांधी:
 कांग्रेस इस वक्त सबसे मुश्किल दौर में है। राहुल पर इसे उबारने की जिम्मेदारी है। कांग्रेस के पास इतिहास में सबसे कम 44 लोकसभा सीटें हैं। इमरजेंसी के बाद पहली बार ऐसा हुआ है जब हिमाचल, पंजाब, कर्नाटक जैसे चुनिंदा 5 राज्यों में ही कांग्रेस की सरकार है।

कांग्रेस लीडर्स: कांग्रेस के अंदर की गुटबाजी ने उसे सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचाया है। राहुल की लीडरशिप में अगर वह एकजुट हो गई तो जनता को एक मजबूत विकल्प मिल जाएगा।

3) बिहार में उलटफेर

क्या हुआ?
- नीतीश कुमार कांग्रेस की अगुआई वाला महागठबंधन छोड़कर 4 साल बाद एनडीए में फिर जा मिले। रिजाइन करने के बाद भी बीजेपी की मदद से सत्ता में बरकरार रहे। उनके इस कदम से उनकी ही पार्टी जेडीयू के सीनियर लीडर शरद यादव ने बगावत कर दी। लालू प्रसाद यादव की आरजेडी का जेडीयू से टकराव बढ़ गया।

क्यों याद रखें?
नीतीश कुमार:
वे जानते हैं कि नरेंद्र मोदी का कद बढ़ रहा है। 2019 के चुनाव में भी उनकी स्थित मजबूत नजर आ रही है। ऐसे में मोदी सरकार के तालमेल के बिना राज्य में विकास का एजेंडा आगे नहीं बढ़ सकता।

लालू यादव: चारा घोटाला और बेनामी प्रॉपर्टी का मामला लालू परिवार के गले की फांस बन चुका है। इन आरोपों के नाम पर ही नीतीश ने उनका साथ छोड़ा। लालू को राजनीति में अपना करियर बनाए रखना है तो उन्हें खुद को पाक-साफ साबित करना ही होगा।

Comments 0

Comment Now


Videos Gallery

Poll of the day

जातीय आरक्षण को समाप्त करके केवल 'असमर्थता' को आरक्षण का आधार बनाना चाहिए ?

83 %
14 %
3 %

Photo Gallery