इंदौर। उच्च शिक्षा विभाग के आदेश से सरकारी कॉलेजों के एक हजार से ज्यादा शिक्षकों की नौकरी पर खतरा मंडराने लगा है। विभाग ने जबलपुर हाई कोर्ट के एक फैसले का हवाला देते हुए आदेश निकाला है, जिसमें 1980 से 90 के बीच कॉलेजों में नियमित हुए तदर्थ सहायक प्राध्यापकों (एडहॉक असिस्टेंट प्रोफेसर) की नियुक्तियों को अवैध बताया है। फैसला काफी पहले हो चुका था, मगर नियुक्ति में विभाग की भूमिका होने से आदेश निकालने में समय लगाया गया। फिलहाल प्रदेशभर के कॉलेजों से इनकी जानकारी बुलवाई जा रही है।
1 जनवरी 1980 से 31 दिसंबर 1990 के बीच सरकारी कॉलेजों में कई लोगों को अतिथि और संविदा शिक्षक के तौर पर रखा गया था। उन दिनों कॉलेज प्रबंधन ने विभाग को शिक्षकों की कमी बताई थी। इसके बाद आनन-फानन में विभाग ने इस अवधि में लगे शिक्षकों को नियमित करने का आदेश निकाला। इसे कैबिनेट से भी मंजूर करवाया गया। अधिसूचना जारी होने के बाद विभाग ने सभी कॉलेजों के अतिथि और संविदा शिक्षकों को सहायक प्राध्यापक पद पर नियमित कर दिया।
भर्ती नियम का पालन नहीं किया गया
मामले में 1999 में जबलपुर हाई कोर्ट में याचिका लगी, जिस पर 2015 में फैसला आया। कोर्ट ने माना कि नियमितीकरण की प्रक्रिया गलत है, क्योंकि उसमें भर्ती नियम 1967 का पालन नहीं किया गया है। कोर्ट ने विभाग को निर्देश देते हुए तुरंत इनकी सेवाएं खत्म करने को कहा था। मगर विभाग ने 22 दिसंबर 2017 को आदेश निकालकर कॉलेजों से जानकारी बुलवाई। इसके लिए वेबसाइट पर फॉर्म अपलोड किया गया है, जिसमें 8 बिंदुओं पर 15 दिन में जानकारी भेजनी है।
कई प्राचार्य बन गए, कई रिटायर हो गए
1980 से 90 के बीच कॉलेज में लगे शिक्षक अब तक प्रोफेसर और प्राचार्य हो गए हैं। कई तो रिटायर भी हो गए हैं। विभाग खुद को बचाने में लगा है। कारण यह है कि भर्ती प्रक्रिया में अहम भूमिका विभाग की भी है, जिसने भर्ती नियम 1967 के विपरीत जाकर आदेश निकाले थे।
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