ग्वालियर (वरुण शर्मा)। 42 साल की कविता के शरीर का नीचे का आधा हिस्सा पोलियोग्रस्त होने के कारण काम नहीं करता। दिव्यांग होने के कारण रिश्तेदार और समाज के लोग यही ताने देते थे कि इसका क्या होगा, कैसे कटेगी इसकी जिंदगी।
कविता को इन बातों से निराशा हुई लेकिन हार नहीं मानी। एंब्रॉयडरी (कढ़ाई) का ऐसा हुनर पैदा किया कि सरकार की योजनाओं में प्रशिक्षण देने के न्यौते आने लगे। हुनर के साथ साहस भी दिखाया। शादी के रिश्तों को इसलिए ठुकराया क्योंकि लगा कि लड़के वाले शादी नहीं एहसान जता रहे हैं। घर में तीन-तीन बैच लेकर युवतियों को कढ़ाई का प्रशिक्षण देने वाली कविता ने साबित कर दिया कि बेटी बोझ नहीं काबिल होती है।
माधौगंज के रथखाना में रहने वाली कविता चौथवानी साधारण परिवार की बेटी हैं। पांच साल की उम्र में पोलियो की वजह से दिव्यांग हो गईं। माता-पिता ने कविता को 12वीं तक पढ़ाया। आगे की पढ़ाई इसलिए पूरी नहीं हो पाई क्योंकि पिता उसे गोद में उठाकर ले जाते थे और अब उन्हें परेशानी होने लगी थी।
पिता भू- राजस्व विभाग से सेवानिवृत्त हो चुके हैं। एक भाई व दो बहन हैं जिनकी शादी हो चुकी है। कविता के पिता देवीदयाल चौथवानी ने कविता को आगे बढ़ाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। समाज का मिथक तोड़ पूरा मकान कविता के नाम कर दिया।
10 साल पहले सीखी दो खास कढ़ाई फिर सिखाने लगीं
कविता ने 10 साल पहले पाकिस्तान की खास 'सिंधी" कढ़ाई को सीखा और बंजारा कढ़ाई सहित इस क्षेत्र की सारी विधाएं सीख लीं। कोर्स करने के बाद हुनर आता गया और ख्याति फैलने लगी। हस्तशिल्प विकास एवं हथकरघा निगम तक कविता का काम पहुंचा तो बतौर प्रशिक्षक बुलाने लगे। भोपाल से सम्मान का न्यौता आया लेकिन आने-जाने की परेशानी के कारण कविता ने मना कर दिया। अब कविता 10-10 युवतियों के तीन बैच लगाकर प्रशिक्षण देती हैं। गरीब लड़कियों से फीस भी नहीं लेती हैं।
दूसरे प्रदेशों में भी पहुंची कविता की कला
हस्तशिल्प विकास एवं हथकरघा निगम की ओर से आयोजित वर्कशॉप और सेमिनारों में प्रशिक्षुओं के लिए कविता द्वारा तैयार किए गए कपड़ों के नमूने दिखाए जाते हैं। दिल्ली, इंदौर और भोपाल में कविता के काम की सराहना हो चुकी है। स्थानीय स्तर पर विभाग से सम्मान भी मिल चुका है।
दूसरों के लिए सीख है कविता
कविता दिव्यांग होने के बाद भी संघर्ष करके आगे बढ़ीं और हुनर पाया। कविता अभी तक 500 से ज्यादा युवतियों को प्रशिक्षित कर चुकी हैं - डीसी तिवारी,मैनेजर,हस्तशिल्प एवं हथकरघा विकास निगम
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