Thursday, 22nd May 2025

सफला एकादशी के पूजन से मिलता है सभी एकादशियों को फल

Wed, Dec 13, 2017 8:33 PM

मल्टीमीडिया डेस्क। बुधवार यानी 13 दिसंबर को पौष कृष्ण एकादशी पर सफला एकादशी मनाई जा रही है। पौष कृष्ण पक्ष की एकादशी को सफला एकादशी कहा जाता है। सफला एकादशी के व्रत को सफलता देने वाला माना जाता है। इस दिन सच्‍चे मन से पूजन करने पर भगवान विष्णु की कृपा मिलती है। इस बार सफला एकादशी 13 दिसंबर को है।

माना जाता है कि इस दिन व्रत करने वालों को सभी कार्यों में सफलता प्राप्त होती है। सफला एकादशी वर्ष की आखिरी एकादशी होती है। इस दिन व्रत करने से पूरे साल की एकादशियों का फल व्यक्ति को प्राप्त होता है। माना जाता है कि एकादशी का व्रत कई पीढ़ियों का पाप दूर होता है।

इस दिन व्यक्ति को प्रातः स्नान करने के बाद भगवान विष्णु की पूजा करनी चाहिए। पूजा के बाद ब्रह्माणों को दान देना की भी मान्यता है। इस दिन कई लोग पूरी रात जागरण करते हैं। पूजा में श्री हरि को पंचामृत, पुष्प और फल अर्पित करें। चाहें तो एक वेला उपवास रखकर , एक वेला पूर्ण सात्विक आहार ग्रहण करें। शाम को आहार ग्रहण करने के पहले जल में दीपदान करें। आज के दिन गर्म वस्त्र और अन्न का दान करना भी विशेष शुभ होता है।

ऐसे करें पूजन

एकादशी के दिन सूर्य उदय से पहले उठकर सभी काम और स्नान करने के बाद भगवान विष्णु के सामने व्रत का संकल्प करना चाहिए। संकल्प के बाद धूप, दीप, फल आदि से भगवान विष्णु और नारायण देव का पंचामृत से पूजन करना चाहिए। रात्रि में भी विष्णु के नाम का पाठ करते हुए जागरण करना चाहिए। द्वादशी तिथि के दिन स्नान करने के बाद ब्राह्मणों को अन्न और धन की दक्षिणा देकर इस व्रत का पारण करना चाहिए।

सफला एकादशी पर ये न करें

इसके साथ जितना संभव हो उतना सात्विक भोजन ही व्रत वाले दिन करना चाहिए। एकादशी के व्रत में नमक का किसी भी प्रकार से प्रयोग नहीं करना चाहिए। एकादशी को बिस्तर पर नहीं, जमीन पर सोना चाहिए। साथ ही मांस और नशीली वस्तुओं का सेवन भूलकर ना करें। एकादशी के दिन लहसुन, प्याज का सेवन करना भी वर्जित है। वहीं सफला एकादशी की सुबह दातुन करना भी वर्जित माना गया है। इस दिन किसी पेड़ या पौधे की की फूल-पत्ती तोड़ना भी अशुभ माना जाता है।

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महाभारत में भी है इस एकादशी का वर्णन

 

श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर को सफला एकादशी के बारे में बताते हुए कहा था कि चंपावती के राजा महिष्मत का सबसे छोटा पुत्र लुंपक अति दुष्ट था। दु:खी होकर राजा ने उसे राज्य से निकाल दिया। जंगलों में भटकते हुए उसे तीन दिन तक भूखा रहना पड़ा। भूख से दु:खी उसने साधु की शरण ली। उस दिन सफला एकादशी होने के कारण उसे भोजन नहीं मिला।

साधु ने उसे वस्त्रादि देकर उसका सत्कार किया। जिससे लुंपक का हृदय परिवर्तित हुआ और वह वहीं रहकर भक्ति मार्ग पर चलकर एकादशी व्रत करने लगा। महात्मा के वेश में स्वयं महाराज महिष्मत ने उसे दर्शन दिये व उसे राज पाठ सौंप दिया। शास्त्रों के अनुसार सफला एकादशी के विधिवत व्रत-पूजन से भौतिक सुखों की प्राप्ति होती है, बाधित कार्य संपन्न होते हैं व कार्यों में सफलता मिलती है। इसीलिए इसे सफला कहते हैं।

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