Thursday, 22nd May 2025

हनुमानजी को वाल्मीकि जी ने दोबारा जन्म लेकर रामायण लिखने का दिया था वचन

Mon, Dec 11, 2017 8:33 PM

मल्टीमीडिया डेस्क। प्रभु श्री राम के जीवन पर अनेकों रामायण लिखी गई है जिनमे प्रमुख है वाल्मीकि रामायण, श्री राम चरित मानस, कबंद रामायण (कबंद एक राक्षस का नाम था), अद्भुत रामायण और आनंद रामायण। मगर, क्या आप जानते है अपने आराध्य प्रभु श्री राम को समर्पित एक रामायण स्वयं हनुमान जी ने लिखी थी जो ‘हनुमद रामायण’ के नाम से जानी जाती है। इसे ही प्रथम रामायण होने का गौरव प्राप्त है। मगर, स्वयं हनुमान जी ने ही अपनी उस रामायण को समुद्र में फेंक दिया था। उन्होंने ऐसा क्यों किया आइए जानते है शास्त्रों में वर्णित एक गाथा-

शास्त्रों के अनुसार सर्वप्रथम रामकथा हनुमानजी ने लिखी थी और वह भी एक शिला (चट्टान) पर अपने नाखूनों से लिखी थी। यह रामकथा वाल्मीकिजी की रामायण से भी पहले लिखी गई थी और यह ‘हनुमद रामायण’ के नाम से प्रसिद्ध है।

यह घटना तब की है जबकि भगवान श्रीराम रावण पर विजय प्राप्त करने के बाद अयोध्या में राज करने चले गए थे और हनुमानजी हिमालय पर चले गए थे। वहां वे अपनी शिव तपस्या के दौरान एक शिला पर प्रतिदिन अपने नाखून से रामायण की कथा लिखते थे। इस तरह उन्होंने प्रभु श्रीराम की महिमा का उल्लेख करते हुए ‘हनुमद रामायण’ की रचना की।

कुछ समय बाद महर्षि वाल्मीकि ने भी ‘वाल्मीकि रामायण’ लिखी और लिखने के बाद उनके मन में इसे भगवान शंकर को दिखाकर उनको समर्पित करने की इच्छा हुई। वे अपनी रामायण लेकर शिव के धाम कैलाश पर्वत पहुंच गए। वहां उन्होंने हनुमानजी को और उनके द्वारा लिखी गई ‘हनुमद रामायण’ को देखा। हनुमद रामायण के दर्शन कर वाल्मीकिजी निराश हो गए।

वाल्मीकिजी को निराश देखकर हनुमानजी ने उनसे उनकी निराशा का कारण पूछा, तो महर्षि बोले कि उन्होंने बड़े ही कठिन परिश्रम के बाद रामायण लिखी थी। मगर, आपकी रामायण देखकर लगता है कि अब मेरी रामायण उपेक्षित हो जाएगी, क्योंकि आपने जो लिखा है उसके समक्ष मेरी रामायण तो कुछ भी नहीं है। तब वाल्मीकिजी की चिंता का शमन करते हुए श्री हनुमानजी ने हनुमद रामायण पर्वत शिला को एक कंधे पर उठाया और दूसरे कंधे पर महर्षि वाल्मीकि को बिठाकर समुद्र के पास गए और स्वयं द्वारा की गई रचना को श्रीराम को समर्पित करते हुए समुद्र में समा दिया।

तभी से हनुमान द्वारा रची गई हनुमद रामायण उपलब्ध नहीं है। हनुमानजी द्वारा लिखी रामायण को हनुमानजी द्वारा समुद्र में फेंक दिए जाने के बाद महर्षि वाल्मीकि बोले कि हे रामभक्त श्री हनुमान, आप धन्य हैं! आप जैसा कोई दूसरा ज्ञानी और दयावान नहीं है। हे हनुमान, आपकी महिमा का गुणगान करने के लिए मुझे एक जन्म और लेना होगा और मैं वचन देता हूं कि कलयुग में मैं एक और रामायण लिखने के लिए जन्म लूंगा। तब मैं यह रामायण आम लोगों की भाषा में लिखूंगा।

माना जाता है कि रामचरितमानस के रचयिता गोस्वामी तुलसीदास कोई और नहीं बल्कि महर्षि वाल्मीकि का ही दूसरा जन्म था। तुलसीदासजी अपनी ‘रामचरित मानस’ लिखने के पूर्व हनुमान चालीसा लिखकर हनुमानजी का गुणगान करते हैं और हनुमानजी की प्रेरणा से ही वे फिर रामचरित मानस लिखते हैं।

माना जाता है महाकवि कालिदास के समय में एक पटलिका को समुद्र के किनारे पाया गया। इसे एक सार्वजनिक स्थल पर टांग दिया गया था ताकि विद्यार्थी उस गूढ़लिपि को पढ़कर उसका अर्थ निकाल सकें। ऐसा माना जाता है कि कालीदास ने उसका अर्थ निकाल लिया था और वो ये भी जान गए थे कि ये पटलिका कोई और नहीं अपितु हनुमानजी द्वारा रचित हनुमद रामायण का ही एक अंश है, जो पर्वत शिला से निकल कर जल के साथ प्रवाहित होकर यहां तक आ गई है।

Comments 0

Comment Now


Videos Gallery

Poll of the day

जातीय आरक्षण को समाप्त करके केवल 'असमर्थता' को आरक्षण का आधार बनाना चाहिए ?

83 %
14 %
3 %

Photo Gallery