Friday, 23rd May 2025

मानवाधिकार हनन को नहीं रोक पा रहा है आयोग

Sun, Dec 10, 2017 8:02 PM

भोपाल। मानवाधिकार हनन के निराकरण के लिए राजधानी का मप्र मानव अधिकार आयोग में हजारों प्रकरण लंबित है। जिससे यहां दर्ज शिकायतों का निपटारा न होने से कई पीड़ित परेशान हो रहे हैं। 10 दिसम्बर को मानव अधिकार दिवस मनाया जाता है, लेकिन मानव अधिकार आयोग में प्रकरण का निपटारा न होने से कई पीड़िताओं के अधिकारों का हनन हो रहा है। ऐसे में

महिलाएं, बच्चे एवं समाज के सभी अधिकारों की रक्षा के लिए गठित आयोग मप्र में सिर्फ नाम के रह गए हैं। यही कारण है कि राज्य महिला आयोग, बाल अधिकार संरक्षण आयोग या राज्य मानव अधिकार आयोग पीड़ितों को न्याय नहीं दिला रहे हैं। ये तीनों प्रमुख आयोग सिर्फ अनुशंसा एवं नोटिस जारी करने तक सीमित हो गए हैं। जिन्हें न तो शासन गंभीरता से ले रही है और न ही अधिकारी इनकी सुन रहे हैं। ऐसे में इन तीनों आयोग में पीड़िताएं अपना दर्द सुना-सुनाकर थक गई हैं, लेकिन उनकी समस्याओं का कोई निराकरण नहीं हो पा रहा है।

छह साल से अध्यक्ष का पद खाली

मप्र मानव अधिकार आयोग में 6 साल से अध्यक्ष का पद खाली होने से कई मामले लंबित है। छह साल में लगभग 7 हजार मामले पेंडिंग है। कार्यकारी अध्यक्ष के सहारे काम चल रहा है, जिसके चलते मामलों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है। लंबित मामलों की संख्या में मप्र चौथे स्थान पर आ गया है। प्रदेश में मानव अधिकार हनन से जुड़े मामलों पर संज्ञान लेकर संबंधितों को नोटिस जारी करने का काम अच्छी तरह से होता है। लेकिन आयोग के नोटिसों का जवाब संबंधित अधिकारी और सरकारी विभाग समय से नहीं देते हैं। बार-बार नोटिस जारी करने के बाद भी जवाब नहीं दिया जाता है। जिसकी वजह से सरकार भी आयोग की अनुशंसाओं पर अमल नहीं करती है। राज्य सरकार भी मानव अधिकार आयोग को मजबूत बनाने के पक्ष में नहीं है, यही कारण है कि सालों से आयोग को अध्यक्ष नहीं मिला है।

बॉक्स

वर्ष प्राप्त शिकायतें लंबित शिकायतें

2012-13 12340 11425

2013-14 12843 8953

2014-15 11344 3585

2015-16 11393 2002

2016-17 9535 2106

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राज्य महिला आयोग

राज्य महिला आयोग की अध्यक्ष 20 जनवरी 2016 में पदभार ग्रहण किया। इसके बाद अब तक 15 हजार 528 मामले पंजीकृत हुए। जिसमें लगभग 8 हजार केस को निपटाएं, जबकि 6 हजार 330 पेंडिंग मामले हैं। जिसमें अब तक 14 मामलों पर अनुशंसा की गई है। वहीं 2 हजार से अधिक मामलों पर नोटिस जारी किया गया है, लेकिन पीड़िताओं को राहत नहीं मिल रही है। दो से तीन बार बेंच में बुलाकर फाइल बनाया जाता है उनके दर्द को सुना जाता है, लेकिन निराकरण कुछ नहीं होता है। आयोग की तरफ से अनुशंसाएं की जाती हैं, लेकिन सुनवाई नहीं होती है। प्रदेश में महिलाओं पर बढ़ते अपराधों को संज्ञान में लेकर आयोग संबंधित जिलों की पुलिस को नोटिस भी जारी करता है, लेकिन पुलिस प्रशासन आयोग को जवाब देना भी उचित नहीं समझते हैं। वर्तमान में महिला आयोग वित्तीय संकट के दौर से गुजर रहा है।

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बाल अधिकार संरक्षण आयोग

राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग के अध्यक्ष राघवेंद्र शर्मा 20 मार्च 2016 को बनें । आयोग में पुराने 1700 मामले थे और नए 800 मामले आए, जिसमें 400 मामले पेंडिंग है। बीते एक साल में आयोग ने 300 मामलों पर अनुशंसाएं की, लेकिन अमल अभी तक 50 से 60 मामलों में ही हुई है। वर्तमान अध्यक्ष ने स्कूलों से लेकर बच्चों के अधिकारों के हनन को लेकर शासन से अनुशंसा की है, लेकिन सभी अनुशंसाएं फाइलों में दबी है।

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वर्जन

- पिछले कार्यकाल के लगभग 3 हजार मामले पेंडिंग थे। साथ ही कई मामले के आवेदक और अनावेदक नहीं आते हैं, जिसके कारण भी सुनवाई नहीं हो पा रही है। पीड़ितों के मामलों पर अनुशंसा की जाती है, लेकिन समय लगता है।

लता वानखेड़े, अध्यक्ष, राज्य महिला आयोग

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- बच्चों की सुरक्षा और संरक्षण के काम में लापरवाही बरतने वाले जिम्मेदार अधिकारियों और विभागों के खिलाफ सीधे तौर पर कोई एक्शन नहीं ले सकते हैं, केवल अनुशंसा कर सकते हैं। बीते साल में करीब 320 अनुशंसाएं की हैं, जबकि अमल 50 से 60 पर हुई है।

राघवेंद्र शर्मा, अध्यक्ष, बाल संरक्षण आयोग

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सदस्यों के पद खाली होने से प्रदेश में मानव अधिकार हनन से जुड़े 1221 प्रकरण लंबित हैं। पेंडिंग मामलों को लेकर तेजी से काम कर रहा है, जल्द ही पेंडेंसी खत्म हो जाएगी।

एलआर सिसोदिया, पीआरओ, मानवाधिकार आयोग

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