राजनाथ सिंह ‘सूर्य’, नई दिल्ली। पांच दिसंबर, 1992 को रात लगभग आठ बजे उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री कल्याण सिंह के आवास पर भोजन करने के बाद भाजपा के तत्कालीन अध्यक्ष मुरली मनोहर जोशी और लोकसभा में विपक्ष के नेता लालकृष्ण आडवाणी कार से अयोध्या के लिए रवाना हुए। अटल बिहारी वाजपेयी दिल्ली लौट गए। मैं जोशी जी और कलराज मिश्र के साथ था।
लगभग साढ़े ग्यारह बजे हम अयोध्या पहुंचे। आडवाणी जी सोने चले गए। जोशी जी ने भाजपा, विश्व हिंदू परिषद, बजरंग दल के प्रमुखों की बैठक बुलाई और उनसे यह जानना चाहा कि कल की व्यवस्था किस प्रकार की है। उन्होंने बड़े स्पष्ट शब्दों में जानना चाहा कि कोई गड़बड़ी तो नहीं होगी।
हमें बताया गया कि वैसे तो बीबीसी की इस खबर से कारसेवकों में काफी उत्तेजना है कि छह दिसंबर को कारसेवक सरयू में स्नान कर वहां की बालू और जल लाकर शिलान्यास स्थल के पास डालते हुए निकल जाएंगे। मगर, उनको नियंत्रण में रखने के लिए सुरक्षा का काफी प्रबंध किया गया है।
विभिन्न प्रांतों के प्रमुख भी अपने प्रांत के लोगों को समझाने में लगे थे। जोशी जी ने भी पूछा कोई गड़बड़ी तो नहीं होगी। सब काम से आश्वस्त होकर हम सोने चले गए। प्रात: काल लगभग साढ़े दस बजे हम उस स्थान पर पहुंचे, तो देखा कि कारसेवक बालू और जल डाल रहे थे। एक मशीन से उसे समतल किया जा रहा था।
विवादित स्थल के चारों ओर ऊंची-ऊंची लोहे की बाड़ बनाई गई थी। उसके बाद सुरक्षाकर्मियों का घेरा था और तीसरा घेरा संघ के स्वयंसेवकों का था, जो सफेद कमीज और हाफ पैंट पहने थे। यह घेरा जहां कारसेवक बालू और पानी डाल रहे थे, उसके सबसे नजदीक था।
लगभग 100 मीटर की दूरी पर एक भवन की छत पर मंच बना था, जहां लालकृष्ण आडवाणी, संघ के सरकार्यवाह शेषाद्रि जी तथा विश्व हिंदू परिषद के अध्यक्ष अशोक सिंघल सहित तमाम लोग मौजूद थे। बहुत से पत्रकार, टीवी कैमरामैन और छायाकार भी थे, क्योंकि वहां से दृश्य साफ दिखाई पड़ रहा था।
मुझे कुछ पत्रकारों ने बताया कि कारसेवक बीबीसी की खबर से बहुत उत्तेजित हैं। एक के बाद एक नेताओं का भाषण चल रहा था। प्राय: सभी भाषणों का एक ही निचोड़ रहा था, राम जन्मभूमि पर मंदिर बनवाकर ही दम लेंगे। जिस समय प्रमोद महाजन भाषण देने खड़े हुए उसी समय कारसेवकों में हलचल मची। वे घेरेबंदी की तरफ बढ़ रहे थे।
जयश्री राम के नारे के साथ कुछ कारसेवक संघ स्वयंसेवकों से उलझ रहे थे। उन्हें समझाने के लिए मंच से शांत रहने की अपील के साथ ही उमा भारती को नीचे भेजा गया। थोड़ी देर में वह कुछ पुलिसकर्मियों के साथ वापस लौटती दिखाई पड़ीं। मंच पर लौटने पर पता चला कि पुलिस उन्हें कारसेवकों से बचाकर लाई है।
मंच से शांत रहने की अपील की जा रही थी। इसी बीच अशोक सिंघल स्वयं कारसेवकों को समझाने के लिए नीचे गए। कुछ देर में उनकी सुरक्षा में लगे कर्मी उनको लेकर मंच पर लौट आए। पता चला कि उमा भारती के साथ जो हुआ, वही उनके साथ हुआ। कारसेवकों और सुरक्षा व्यवस्था में लगे लोगों की धक्कामुक्की के बीच मंच से उन्हें शांत रहने की अपील की जाती रही।
शेषाद्रि जी ने तो हिंदी, अंग्रेजी, कन्नड़, तमिल, तेलुगु, मलयालम, तथा अन्य भारतीय भाषाओं में भी अपील की, लेकिन सुरक्षा घेरा तोड़ने पर उतारू कारसेवकों पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा। लगभग साढ़े बारह बजे कुछ व्यक्ति विवादित ढांचे के गुंबद पर चढ़े हुए दिखाई पड़े। मंच से उन्हें नीचे आने की अपील की गई, लेकिन ऊपर चढ़ने वाले लोगों की संख्या बढ़ती गई।
उनमें से कुछ के हाथों में लोहे की वे छड़ें थीं, जिनके सहारे बाड़ लगाई गई थी। उन छड़ों से उन्होंने गुंबद पर प्रहार करना शुरू किया। यह दृश्य देखकर आडवाणी जी खिन्न होकर मंच से नीचे उतरकर कमरे में चले गए। उनके साथ जोशी जी तथा कुछ अन्य प्रमुख नेता भी मंच से नीचे आ गए। कारसेवकों में जैसे उन्माद पैदा हो गया और पहला गुंबद लगभग ढाई बजे गिरा दिया गया। उसके बाद वे अन्य दोनों गुंबदों में भी जुट गए।
मुझसे डॉ. जोशी ने कहा- ये पता लगाओ कितने लोग घायल हुए हैं, उनकी हालत कैसी है। मैं पास के अस्पताल में गया जहां फैजाबाद के सीएमओ डॉ. वीबी सिंह से मुलाकात हुई। उन्होेंने बताया कि पचास से साठ लोग भर्ती हुए हैं, किसी को भी घातक चोट नहीं है।
उन्होंने कुछ लोगों के मारे जाने की अफवाह का खंडन किया। चारों तरफ बस एक ही चर्चा थी कि बीबीसी के समाचार से उत्तेजना फैली है। बीबीसी के संवाददाता मार्क टूली अयोध्या में ही थे। लगभग सात बजे जब मैं पैदल जा रहा था तो एक तरफ से भाई साहब, भाई साहब की आवाज आई। देखा तो दैनिक जागरण के वरिष्ठ संपादक विनोद शुक्ल और मार्क टूली माथे पर राम नामकी लपेटे खड़े हैं।
दोनों के डील-डौल और रंग में समानता से यह भेद करना कठिन था कि दोनों में शुक्ल कौन है और कौन टूली। मैंने पूछा-यहां क्यों छिपे हैं? विनोद शुक्ल ने कहा, आप तो जानते ही हैं, कारसेवक मार्क को ढूंढ़ रहे हैं। हमें जानकी महल ट्रस्ट तक पहुंचा दीजिए जहां हमारी कार खड़ी है।
स्थानीय निवासी होने के कारण गलियों से उनको कार तक सुरक्षित पहुंचाने में मुझे कोई कठिनाई नहीं हुई। जिस समय पहला गुबंद गिरा दिया गया और कारसेवक शेष दो गुंबदों को तोड़ रहे थे, एक अफवाह फैली कि फैजाबाद में तैनात गोरखा रेजीमेंट की टुकड़ी आ रही है और वह डिग्री कॉलेज तक पहुंच गई है, लेकिन सेना की कोई भी टुकड़ी विवादित स्थल तक नहीं आई।
अफवाह यह भी उड़ी कि डिग्री कॉलेज से उसे वापस बुला लिया गया। सेना की ओर से इस अफवाह का न तो कोई खंडन हुआ और न ही पुष्टि। अपने आकलन के अनुसार कई खोजी पत्रकार इस प्रकरण के बारे में लिख रहे थे।
पिछले दिनों दक्षिण भारत के एक पत्रकार ने लिखा कि गोरखा रेजीमेंट को भेजने का निर्णय इसलिए वापस ले लिया गया, क्योंकि उसका नारा है ‘राजा रामचंद्र की जय’। डर यह था कि कहीं रेजीमेंट भी कारसेवकों के साथ न मिल जाए।
जो भी हो, तमाम प्रकार की अफवाहों के बीच लगभग चार बजे जब शेष दो गुंबद धराशायी होने के करीब थे, यह समाचार आया कि कल्याण सिंह ने मुख्यमंत्री पद से त्यागपत्र दे दिया है। पांच बजे शेष दोनों गुंबद भी गिरा दिए जा चुके थे और तमाम कारसेवक गिरे हुए ढांचे के ईंट पत्थर को उठाकर ले जा रहे थे।
लगभग सात बजे शेषाद्रि जी के साथ जब मैं उस स्थान पर पहुंचा, तो देखा कि बड़ी संख्या में महिलाएं जहां ढांचा था, उसे समतल करने में लगी हुई हैं। उन्होंने जिस स्थल को समतल किया था, वहीं आज रामलला विराजमान हैं। ढांचा गिरने से जोशी जी और आडवाणी जी इतने हतप्रभ थे कि वे तुरंत लखनऊ चले आए।
मैं शेषाद्रि जी तथा कुछ अन्य लोगों के साथ फैजाबाद अस्पताल में भी भर्ती कारसेवकों को देखने गया, जिनकी संख्या लगभग तीन दर्जन रही होगी और सवेरे लगभग तीन बजे हम लोग लखनऊ लौट आए। जब-जब छह दिसंबर आता है मेरे सामने छह दिसंबर, 1992 का संपूर्ण दृश्य प्रत्यक्ष हो जाता है।
इस घटना का अपनेअपने ढंग से बखान जारी है। लिब्राहन कमीशन भी बैठा, सुलह-सफाई के भी कई दौर चले। अब मामला सर्वोच्च न्यायालय में पहुंच गया है।
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