इंदौर। जिस हादसे में एमवायएच के एनआईसीयू में भर्ती 47 नवजातों की जान पर बन आई थी, उसकी जांच सोमवार को सिर्फ एक घंटे में पूरी हो गई। समिति को हादसे के लिए जिम्मेदारी तय करना थी, लेकिन उसके सदस्य डॉक्टर और कर्मचारियों की तारीफ कर लौट गए। उन्होंने कहा हादसे तो होते रहते हैं। समय पर डॉक्टर, स्टाफ मुस्तैदी नहीं दिखाते तो कई नवजात मौत की नींद सो जाते। समिति ने यह जरूर स्वीकारा कि अस्पताल में बिजली का लोड क्षमता से ज्यादा है।
एनआईसीयू में गुरुवार शाम आग लग गई थी, जिसके बाद यहां भर्ती 47 नवजातों को खिड़कियों के रास्ते छत पर पहुंचाकर जान बचाई गई। शासन ने इस मामले में एमजीएम मेडिकल कॉलेज के पूर्व डीन डॉ. अशोक वाजपेई और पीडब्ल्यूडी के इंजीनियर एमके शुक्ला को जांच का जिम्मा सौंपा, ताकि हादसे की जिम्मेदारी तय की जा सके। समिति सोमवार सुबह 11 बजे अस्पताल पहुंची।
टीम ने एनआईसीयू का दौरा किया। इसके बाद दोनों सदस्य अस्पताल अधीक्षक डॉ. वीएस पाल और मेडिकल कॉलेज के डीन डॉ. शरद थोरा के साथ अधीक्षक कक्ष में चले गए। एक घंटे में समिति का दौरा पूरा हो गया। फिर दोनों सदस्य चाचा नेहरू अस्पताल पहुंचे। वहां भी आधा घंटा चर्चा हुई। डॉ. वाजपेई ने बताया समिति ने रिपोर्ट शासन को सौंप दी है।
किसी को जिम्मेदार ठहराने नहीं, व्यवस्थाएं देखने आए हैं
डॉ. वाजपेई ने कहा अस्पताल के डॉक्टर और कर्मचारियों की वजह से ही 47 बच्चों को समय रहते एनआईसीयू से बाहर निकाला जा सका। उनका सम्मान होना चाहिए। उन्होंने कहा वे किसी की जिम्मेदारी तय करने नहीं, बल्कि व्यवस्थाएं देखने आए हैं। अस्पताल में बिजली का लोड क्षमता से ज्यादा है, जिसकी जांच करना पीडब्ल्यूडी का काम है।
आज आ सकते हैं कमिश्नर
चिकित्सा शिक्षा आयुक्त राधेश्याम जुलानिया मंगलवार को एमवायएच का दौरा कर सकते हैं। इसे देखते हुए सोमवार को दिनभर तैयारियां चलती रहीं। अस्पताल प्रबंधन ने नर्सिंग स्टाफ सहित सभी कर्मचारियों को समय पर अस्पताल पहुंचने की हिदायत दी।
रंगाई-पुताई पर लाखों खर्च, नवजातों के लिए मदद चाहिए
रंगाई-पुताई पर दो साल पहले लाखों खर्च करने वाला एमवाय अस्पताल हादसे के बाद नवजातों के इलाज के लिए लोगों से मदद मांग रहा है। नवजातों का इलाज पीआईसीयू में चल रहा है। हाल ही में अस्पताल प्रबंधन ने अपील जारी कर गुहार लगाई है कि एनआईसीयू में नवजातों के लिए वार्मर, वेंटिलेटर सहित अन्य साधन खरीदना हैं।
जो भी आर्थिक मदद करना चाहे, वह संपर्क कर सकता है। दो साल पहले अस्पताल के कायाकल्प के नाम पर करोड़ों रुपए खर्च किए जा चुके हैं, लेकिन इस दौरान बिजली के कामकाज पर ध्यान ही नहीं दिया गया। हादसे के बाद जागे अस्पताल प्रबंधन ने पीडब्ल्यूडी को पत्र लिखकर लोड जांचने को कहा है।
होता रहा निर्माण, बढ़ती रही मशीनें
चार साल के दौरान अस्पताल में ट्रामा सेंटर, टीबी एंड चेस्ट विभाग, सहारा वार्ड, स्त्री एवं प्रसूति विभाग में आईसीयू, एसएनसीयू, मॉड्यूलर ओटी सहित कई निर्माण हुए। इन सभी में भारी-भरकम मशीनें भी लगाई गईं, लेकिन कभी बिजली के लोड पर ध्यान नहीं दिया गया। सूत्र बताते हैं कि इस दौरान पीडब्ल्यूडी ने कभी लोड चेक नहीं किया और न अस्पताल प्रबंधन ने इसकी जरूरत महसूस की। अस्पताल में जल्दी ही बोनमेरो ट्रांसप्लांट यूनिट भी शुरू होगी।
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