अहमदाबाद. कभी-कभी ऐसा भी होता है कि खुद के ही हथियार भारी पड़ जाते हैं। ऐसा ही कुछ बीजेपी के साथ भी हो रहा है। इस बार के गुजरात विधानसभा चुनाव में कांग्रेस बीजेपी के ही पारंपरिक हथियारों से उस पर निशाना साध रही है। 2007 और 2012 के चुनावों में कांग्रेस की नीतियों की तुलना करें, तो इस बार के चुनाव में काफी अंतर देखने में आ रहा है। कांग्रेस ने अपनी पारंपरिक स्ट्रैटजी किनारे रख कैम्पेन का नया कलेवर अपनाया है। नरेंद्र मोदी को उनके ही गढ़ में मात देने के लिए कांग्रेस सोशल मीडिया पर आक्रामकता से लेकर सॉफ्ट हिंदुत्व जैसी स्ट्रैटजी अपना रही है। ये रणनीति मूलत: बीजेपी की रही है।
1. मजबूत कैंडिडेट को उसके घर में ही घेरो
- मोदी की हमेशा रणनीति रही है कि विरोधियों के सबसे मजबूत गढ़ पर पूरी ताकत से टूट पड़ो। इस बार कांग्रेस की यही पॉलिसी है।
रूपाणी के खिलाफ राजगुरु
- मुख्यमंत्री को घेरने के लिए राजकोट पश्चिम सीट पर विजय रूपाणी के खिलाफ सीट बदलते हुए इंद्रनील राजगुरु को मैदान में उतारा है।
बोखीरिया और मोढ़वाडिया
- इसी तरह बीजेपी के ताकतवर नेता बाबू बोखीरिया को हराने के लिए पोरबंदर में अर्जुन मोढ़वाडिया मैदान में उतरे हैं।
2007: पोरबंदर से अर्जुन मोढवाडिया जीते थे।
2012: इंद्रनील राजगुरु राजकोट पूर्व से जीते थे।
2. मुस्लिम तुष्टिकरण के बदले सॉफ्ट हिंदुत्व
- लोकसभा में हार के कारण हिंदू विरोधी छाप आंतरिक सर्वे में आने के बाद कांग्रेस सॉफ्ट हिंदुत्व की नीति अपना रही है।
मंदिरों में मत्था टेकते राहुल
- राहुल गांधी जब भी गुजरात के दौरे पर आते हैं, वे यहां के मंदिरों में मत्था जरूर टेकते हैं। ऐसा पहली बार देखा जा रहा है।
दंगों की यादें भूली
- सामान्य रूप से दंगों को लेकर बीजेपी को कोसने वाली कांग्रेस इस मुद्दे का जिक्र तक नहीं करती। इस बार गोधरा की चर्चा नहीं हो रही है।
2007: कांग्रेस का मुद्दा दंगा था और उसकी हार हुई थी।
2012: दंगे और एनकाउंटर को लेकर बीजेपी को घेरती रही।
3. सोशल मीडिया : जैसा सवाल वैसा जवाब
- 2014 में मोदी के सबसे असरदार रूप में इस्तेमाल किए गए इस हथियार का अच्छी तरह उपयोग करना कांग्रेस भी सीख गई है।
टीम बदली: प्रोफेशनल्स लाए
- राहुल गांधी ने गुजरात चुनाव के लिए पार्टी की सोशल मीडिया की नई टीम तैयार की है। पुरानी टीम को पूरी तरह से बदल दिया गया है।
आक्रामक प्रचार शुरू किया
- जिस भाषा में सवाल पूछा जाए, उसी भाषा में जवाब देने वाली कांग्रेस का एग्जाम्पल है- ‘विकास पागल हो गया है।’ यह जुमला काफी चर्चा में रहा।
2007: कांग्रेस की सोशल मीडिया पर पकड़ नहीं थी।
2012 : सोशल मीडिया को गंभीरता से नहीं लिया था।
4. दलित-पटेल को भी संभालने की नीति
- सोशल इंजीनियरिंग तो ठीक है, पर उसका पाया बदल गया है। विरोधी पाटीदारों को अपनी ओर खींचने की कांग्रेस ने पूरी कोशिश की है।
पाटीदारों से बातचीत
- बीजेपी से नाराज पाटीदार समुदाय को संभालने की नीति के रूप में आरक्षण के मुद्दे पर पाटीदार अनामत आंदोलन समिति (PAAS) से बातचीत को अहम माना जा सकता है।
ओबीसी के लिए अल्पेश
- ओबीसी आंदोलन का फायदा लेने के लिए उसके नेता अल्पेश ठाकोर को कांग्रेस में शामिल कर लिया। यह चुनाव रणनीति का ही हिस्सा है।
2007: पाटीदारों की उपेक्षा की भूल पार्टी को भारी पड़ी।
2012 : जीपीपी को पाटीदार लाए, कांग्रेस लाभ न ले सकी।
कौन-काैन सी स्ट्रैटजी बदली
- 2002 के नाम पर वोट मांगना: दंगों के नाम पर वोट मांगने वाली कांग्रेस अब इसे याद तक नहीं करती।
अल्पसंख्यकों से फोकस हटा
- अल्पसंख्यकों को ट्रम्प कार्ड मानने वाली कांग्रेस इस बार पटेल और ओबीसी को फर्स्ट प्रायोरिटी में रखा है।
मोदी पर हमला न करने की नीति
- 2007 में कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने मोदी को मौत का सौदागर कहा था। यह बयान पार्टी को भारी पड़ा। तब से कांग्रेस मोदी पर व्यक्तिगत हमले करने से बच रही है।
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