रायगढ़. टाटा इंस्टीटूट ऑफ सोशल साइंस व स्थानीय सामाजिक संगठन जनचेतना मिलकर कोयला खदान क्षेत्रों में खदान से होने वाला सामाजिक, आर्थिक व सांस्कृतिक बदलाव और नुकसान का आंकलन करने के लिए सामाजिक सर्वे कर रही है। यह सर्वे 17 नवम्बर से शुरू हुआ है और यह 11 दिसंबर तक चलेगा।
जिला के तमनार क्षेत्र में कई कोयला खदाने चल रही है और यहां हजारों लोग विस्थापित हुए हैं। पूर्व में यह कहा जाता रहा है कि खदानों के कारण स्थानीय लोगों पर प्रभाव पड़ा है और उनके जीवन में भारी बदलाव आया है जिससे उनकी संस्कृति भी छिन्न भिन्न हो गई है। हजारों की संख्या में यहां से लोगों का पलायन हुआ। दूसरे प्रान्तों की संस्कृति यहां ऐसी हावी हुई कि पता ही नहीं चलता कि किसने किसकी संस्कृति को अपना लिया है। इसके अलावा सामाजिक अंतर्विरोध भी मुखर हुआ। जिसके कारण सामाजिक मान्यताएं भी बिखरीं। इस क्षेत्र में ज्यादातर आदिवासी निवासरत हैं और इस समुदाय को मानव जाति का प्रारंभ माना जाता है। ऐसे में सरकारें भी इन्हें व इनकी संस्कृति को बचाने के लिए प्रयासरत रहती है, लेकिन खदानों और उद्योगों से सबसे ज्यादा यह तबका प्रभावित है। इसके अलावा वनोपज पर निर्भर इस समुदाय की आजीविका भी संकटों से घिरी है। जब वन ही खत्म हो गए तो उनकी आर्थिक स्थिति का क्या होगा जिनकी वनों पर ही निर्भरता थी। ऐसे में उनकी आर्थिक स्थिति पर बड़ा प्रभाव भी पड़ा है। इन्हीं तमाम बातों को लेकर यह अध्ययन दल लोगों से मिलकर, उनके साथ बैठकर इसका हल भी ढूंढने के प्रयास करेंगे। यह शोधदल फिलहाल लगातार वहां के लोगों से मिलकर अध्ययन करने जुटी है।
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