इंदौर .सीनियर नेशनल कुश्ती में 72 किलो भार वर्ग में कामिनी यादव ने ब्रॉन्ज़ मेडल जीता है। यह मेडल उन्होंने अपने लिए नहीं अपनी 9 साल की बच्ची की ख्वाहिश पूरी करने के लिए जीता है। कामिनी कुश्ती छोड़ चुकी थीं लेकिन उनकी बेटी उन्हें दोबारा अखाड़े में जोर आजमाइश करते देखना चाहती थीं। इस कुश्ती में उनकी दायें हाथ की अंगुली उतर गई, घुटना ट्विस्ट हो गया, लेकिन चेहरे पर इन चोटों का दर्द नहीं, बेटी की इच्छा पूरी करने का संतोष नज़र आ रहा था। मिट्टी से मैट तक का कामिनी का सफ़रनामा जानिए उन्हीं के शब्दों में...
- “मैं और मेरे पति अनिल यादव रेसलर्स रहे हैं। हमारे घर में मेडल्स और ट्रॉफीज़ सजी हैं।
- बेटी एंजल हमारी तस्वीरें देख रोमांचित होती थी। वो मेरे साथ अखाड़े में जाती है जहां मैं लड़कियों को कुश्ती सिखाती हूं।
- उसने एक दिन मुझे कहा कि आपको और पापा को तस्वीरों में ही कुश्ती करते देखा है। अब रूबरू देखना चाहती हूं।
- कुश्ती खेले मुझे 9 साल हो गए थे। उतनी हिम्मत नहीं जुटा पा रही थी मैं। बेटी कई दिनों तक लगातार मुझसे मैदान में उतरने को कहती रही।
- फिर मैंने इस चैम्पियनशिप के बारे में सुना। डेढ़ महीने ट्रेनिंग की और उतर गई मैदान में। इंज्योर हो गई हूं, लेकिन मुझे कुश्ती करते देखने, मेडल पाने की खुशी जो एंजल की आंखों में दिखी वही मेरी सफलता है।
- मेरी बेटी डॉक्टर बनना चाहती है, लेकिन मुझे पता है कि, वो कुश्ती ज़रूर करेगी।’
कॉमनवेल्थ गेम्स में 3 बार मेडल जीते
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