भोपाल। गुजरात के गिर अभयारण्य के एशियाटिक लॉयन (सिंह) को श्योपुर के कुनो पालपुर अभयारण्य लाने के प्रयास करना तो दूर वन अफसरों ने उनके बारे में सोचना ही बंद कर दिया है। अफसरों ने मान लिया है कि कुनो में सिंहों को लाने की संभावना धुंधली हो चुकी हैं, इसलिए विभाग ने गुपचुप तरीके से पांच माह पहले दूसरी योजना पर काम शुरू कर दिया। अब चिड़ियाघरों में जन्में सिंह व शावकों को कुनो में बसाकर आबादी बढ़ाने की बात हो रही है।
नई योजना में इंदौर चिड़ियाघर के सिंह शावकों को कुनो भेजने की तैयारी है। इन शावकों का जन्म फरवरी 2017 में हुआ है। विभाग इन्हें विशेष बाड़े में रखेगा। जबकि देश के दूसरे चिड़ियाघरों से युवा सिंह (नर/मादा) लाकर अभयारण्य में सिंहों की आबादी बढ़ाने का दावा किया जा रहा है।
ऐसे हालात तब हैं जब सुप्रीम कोर्ट चार साल पहले (वर्ष 2013) मप्र को सिंह देने का फैसला सुना चुका है, लेकिन राज्य सरकार इस मामले में अपनी तरफ से कोशिश करने को तैयार नहीं है। क्योंकि गुजरात के मुख्यमंत्री रहते हुए नरेंद्र मोदी ने प्रदेश को सिंह देने से साफ इनकार कर दिया था। विभाग की योजना का खुलासा वन्यप्राणी मुख्यालय से प्राप्त दस्तावेजों से हुआ है। ये दस्तावेज आरटीआई एक्टिविस्ट अजय दुबे ने लिए हैं।
27 साल में नहीं हो पाई शिफ्टिंग
विलुप्त प्रजातियों में शामिल एशियाटिक सिंहों को महामारी जैसी स्थिति से बचाने के लिए वर्ष 1991 में भारत सरकार ने सिंहों को गुजरात से बाहर एक-दो जगह बसाने का निर्णय लिया था। भारतीय वन्यजीव संस्थान देहरादून के वैज्ञानिकों से सिंहों के पुनर्वास के लिए अनुकूल वातावरण तलाशने पांच राज्यों में सर्वे कराया था। वैज्ञानिकों ने कुनो का वातावरण सिंहों के अनुकूल बताया था। यहां वर्ष 2004 में विकास कार्य पूरे कर लिए गए। 17 गांवों को भी शिफ्ट किया जा चुका है।
इसलिए पड़ी जरूरत
वर्ष 1980 के दशक में गिर में संक्रमण फैलने से बड़ी संख्या में सिंहों की मौत हुई थी। तब वन्यजीव संस्थान देहरादून ने गुजरात जाकर पड़ताल की थी और केंद्र सरकार को रिपोर्ट सौंपी थी कि देश में सिर्फ गिर में मौजूद सिंहों को बचाने के लिए उनके दूसरे बसेरे तैयार करने होंगे।
सीएम से करेंगे चर्चा
एशियाटिक सिंहों की पुनर्वास को लेकर वन अफसर गुजरात सरकार को फायदा पहुंचाने का काम कर रहे हैं।
इस संबंध में हम जल्द ही मुख्यमंत्री से मिलेंगे और ऐसे पत्राचार को रोकने की मांग करेंगे - अजय दुबे, आरटीआई एक्टिविस्ट
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