मल्टीमीडिया डेस्क। देवउठनी एकादशी या देवप्रबोधिनी एकादशी पर देवताओं के उठने के साथ ही मंगल कार्यों की शुरुआत हो जाती है। हम बताएंगे कि देवताओं के सोने और जागने के पीछे की कहानी-
पद्मपुराण में एक रोचक कहानी मिलती है। कहा जाता है कि श्रीहरि विष्णु के सोने और जागने की आदतों से परेशान होकर एक दिन देवी लक्ष्मी ने श्रीहरि से कहा, हे देव! कभी तो आप सालों साल दिन-रात जागते रहते हैं और कभी सालों तक सोते रहते हैं। आपसे अनुरोध है कि आप अपनी नींद को लेकर नियम बना लें। आप हर साल निद्रा लिया करें।
माता लक्ष्मी की यह बात सुनकर नारायण मुस्कुराए और बोले- आप सही कह रही हैं देवी। मेरे इस अनियमित क्रम से देवताओं और आपको काफी कष्ट उठाना पड़ता है। इसलिए आपके कहे अनुसार मैं हर साल वर्षा ऋतु के चार महीने तक शयन किया करूंगा, ताकि आपको और देवगणों को कुछ अवकाश मिल सके। इस काल में जो भी भक्त संयम के साथ मेरी आराधना करेंगे, उनके घर में आपके साथ निवास करूंगा।
यही कारण है कि देवशयनी से प्रारंभ होने वाला श्रीहरि का चातुर्मासीय योगनिद्रा काल कार्तिक शुक्ल एकादशी को पूर्ण हो जाता है।
धरतीवासी जगत के पालनहार समेत समस्त देवी शक्तियों को 'उठो देव, बैठो देव, अंगुरिया चटकाओ देव' की मनुहार के साथ जगाते हैं।
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