रतलाम। शहर के रेलवे कॉलोनी निवासी हंसराज राजपुरोहित के पैरों की ताकत बचपन में ही पोलियों के कारण खत्म हो गई। चलने के लिए भी हाथों का सहारा लेना पड़ता है। मगर इस 8 साल के बालक ने परिस्थितियों से हार नहीं मानी और अब ये दिव्यांग एक कुशल तैराक बन गया है। भविष्य में हंसराज का सपना इस खेल में देश और प्रदेश का नाम रौशन करने का है।
हंसराज के पिता उज्जैन के पीरहिंगोरिया में खेती करते हैं। वह रेलवे स्कूल में तीसरी में पढ़ता है। बड़े पापा भी दिव्यांग होकर रेलवे में कार्यरत हैं। हंसराज के परिजनों ने शहर के ही अब्दुल कादिर (10) को दोनों हाथ नहीं होने पर भी तैरता देखा। इसके बाद कोच राजा राठौर से हंसराज को तैराकी सिखाने का फैसला किया।
बिना रुके आधा घंटा तैराकी
कोच राठौर ने बताया कि शुरुआत में थोड़ी समस्या आई। रिंग के माध्यम से हंसराज को स्वीमिंग पुल में उतारा। पहले वह डरता था। 10 दिन के अंदर ही उसे बिना सहारे के पानी में उतार दिया। दोनों पैरों में जान नहीं होने के बावजूद वह अच्छी तैराकी करता है और आधे घंटे तक बिना रुके तैरता रहता है। इसमें वो बैक स्ट्रोक, फ्री स्टाइल तैराकी भी शामिल है।
दिव्यांगों बच्चों को प्रोत्साहन
कोच राठौर दिव्यांग बच्चों को प्रशिक्षण देते रहे हैं। हंसराज से पहले अब्दुल कादिर को उन्होंने राष्ट्रीय स्तर का तैराक बनाया। अब्दुल ने एक हादसे में दोनों हाथ गंवा दिए थे। कुछ अन्य दिव्यांग बच्चे भी उनसे प्रशिक्षण ले रहे हैं।
सभी के लिए आदर्श
हंसराज उन सभी के लिए आदर्श है जो जीवन की छोटी-छोटी समस्याओं से हार मान लेते हैं। 8 वर्षीय हंसराज दिव्यांग होने के बावजूद सिर्फ सफल तैराक बनने की राह पर है जबकि स्वस्थ्य शरीर होने के बाद भी लोग परिस्थितियों से डरकर गलत कदम उठाते हैं।
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