Friday, 23rd May 2025

छात्र संघ चुनाव..30 साल पहले ...बीते लम्हो की कुछ यादे

Mon, Oct 30, 2017 3:18 AM

राजधानी भोपाल सहित अन्य शहरों में 30 साल पहले होने वाले छात्र संघ चुनावो की कुछ सुनहरी यादे आज भी मन मस्तिष्क पर अटल है और लम्हो के एलबम में छाई रहती है । बात 1975 से 1985 के बीच की है , जब छात्र राजनीति औऱ छात्रसंघ चुनाव अपने पूरे शवाब पर होते थे । राजनीति की अनेक दिग्गज हस्तिया इन चुनावों का संचालन करती थी । जो यूनियन चुनाव लड़ती,  उनका रिमोट पूरी तरह राजनीतिक दलों  के पास होता । किसको कहा लड़वाना है और कौन जीत सकता है, ये पहले से तय हो जाता ।फिर पूरे चुनाव का खर्चा भी यही दल उठाते । बावजूद इसके पैसे की तंगी हमेशा बनी रहती । अनेक बार उम्मीदवार ही एन वक्त पर पाला बदल देता ।  सीआर ओर यूआर की किडनेपिंग भी जरूरत पड़ने पर  अमूमन हो ही जाती थी। प्रत्यक्ष तरीके से होने वाले चुनाव की सुगबुगाहट सत्र प्रारम्भ होने के साथ ही शुरू हो जाती । दांव पेंच ओर खेमेबाजी क्लास रूम के बाहर जारी रहती ।पढाकूओ पर इन सबका कोई असर नही होता ।छात्र नेता  अमूमन क्लास से गायब रहते ।जैसे जैसे चुनाव का महीना सितम्बर नजदीक आता वैसे वैसे कॉलेज केम्पस की रौनक बढ जाती । कॉलेज के बाहर स्थित चाय समोसे की गुमठियो की बिक्री में निरन्तर इजाफा होने लगता । कभी कभी कोई बात छोटी से बड़ी लड़ाई- झगड़े में भी तब्दील हो जाती ।पुलिस को हर हरकत की जानकारी होती और समय पर विरोध के बावजूद पहुंच जाती । प्रायः होस्टल छात्र राजनीति का अखाड़ा बन जाते और होस्टलर की एकजुटता बेमिसाल मानी जाती थीउस दौर में । हमीदिया और पॉलिटेक्निक के लिए कृपाल की छोटी सी होटल हमेशा गुलजार रहती । यंहा के समोसे , कचोड़ी ,चाय का स्वाद चख चुके अनेक दिग्गज छात्रनेता आज राजनीति के चरम पर है ।इनमे से कई तो राष्ट्रीय राजनीति पर दस्तक दे चुके है।
     चुनाव प्रचार के लिए कालेज  परिसर ही उपयुक्त स्थान रहता । बाद का समय और छुट्टी का दिन डोर टू डोर केन्वासिंग में गुजरता । कम खर्च में पम्फलेट ,पोस्टर ,बेनर छपवाकर बांटे ओर दीवारों पर चिपकाये जाते । सिटी बसों पर भी इनका नजारा होता । आचार संहिता तो होती पर उसका पालन होता नही दिखता । नारो ओर शोरगुल से कॉलेज परिसर गुंजयमान रहते । ऐसा लगता मानो असेम्बली का इलेक्शन हो रहा हो । रैली भी निकलती और ढोल ढमाके भी । प्रचार के  लिए सबके पास वाहन नही होते। जुगाड़ के वाहन की तलाश की  जाती । खुली जीप मिल जाये तो फिर क्या कहना , 10-12 आराम से एडजस्ट हो जाते । घर घर जाकर वोट देने की अपील की जाती । जुगाड़ का वाहन न मिले तो सरकारी और प्राइवेट बस का सहारा  लेकर गंतव्य तक पहुंचा जाता , फिर वँहा से पैदल 2 घर घर तक जाना होता था । लेकिन इन सबमे बहुत मजा आता । राजनीति का क, ख, ग सीखने का इससे अच्छा मौका कोई दूसरा नही हो सकता था  । गर्ल्स कॉलेज के चुनाव भी गर्म जोशी के साथ लड़े जाते । उस दौर की गीतांजलि शर्मा, सुषमा अग्निहोत्री, इला अग्निहोत्री, ऋचा अनुरागी, यास्मीन अलीम,भारती पाराशर छात्र राजनीति में हमेशा  सक्रिय ओर चर्चित रही ।पुरुषों में सर्व श्री सुरेश पचौरी,शिवराज सिंह चौहान, गुफरान ए आजम,चतुर नारायन शर्मा,आरिफ अकील,विनय सेंगर,मानक अग्रवाल, प्रेम ढींगरा, हसनात सिद्धिकी, अशरफ अली, यू पी सिंह, कैलाश परमार,साजिद अली,अखिलेश कुमार सिंह,अरविंद जैन,छोटाबाबू राय,राजेश व्यास, राजकुमार पटेल, रविशंकर पांडे,अशोक चतुर्वेदी, देवेंद्र सिंह ठाकुर, दीपक जोशी, आलोक संजर,राजीव सिंह आदि अनेक ऐसे नाम है जो छात्र राजनीति के चमकते सितारे रहे है ओर कालांतर में उन्होंने जो  मुकाम हासिल किया, वो सबके सामने हैI

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