गुजरात: 32 साल बाद पहली बार जाति के आधार पर चुनाव, 3 आंदोलनों से बने हालात
Sun, Oct 29, 2017 4:23 PM
अहमदाबाद. करीब 32 साल बाद गुजरात में चुनाव एक बार फिर जातिगत समीकरणों के आधार पर लड़े जा रहे हैं। 1985 में कांग्रेस नेता माधवसिंह सोलंकी ने क्षत्रिय, दलित, आदिवासी और मुस्लिम को साधकर 149 सीटें जीती थीं। तब यह सोची-समझी रणनीति थी, लेकिन इस बार के चुनाव जातीय आंदोलनों के कारण खुद ही जातिगत हो गए हैं। पिछले दो सालों में 3 बड़े आंदोलन राज्य में हुए हैं। इन आंदोलनों से हुए नुकसान को कम करने के लिए केंद्र और गुजरात की बीजेपी सरकार ने हिमाचल चुनाव की तारीख आने के बाद से गुजरात में एलानों की झड़ी लगा दी। इसमें पाटीदार आंदोलनकारियों के 400 से ज्यादा केस वापस लेने का फैसला, सफाईकर्मियों की अनुकंपा नियुक्ति, एसटी इम्प्लॉई को एचआरए पेमेंट के फैसले समेत करीब 35 एलान शामिल हैं। एक बड़ा एलान किसानों को तीन लाख तक कर्ज के ब्याज से छूट देने की है। ज्यादातर किसान ओबीसी, आदिवासी और पाटीदार हैं। सबक सिखाने की अपील...
- इधर कांग्रेस भी जातिगत आंदोलनों को पीछे से समर्थन देकर इनका साथ जुटाने की कोशिश में है। ओबीसी आंदोलन के बड़े नेता अल्पेश ठाकोर तो कांग्रेस में शामिल भी हो चुके हैं।
- पटेल आंदोलन के नेता हार्दिक पटेल भले ही अभी कांग्रेस के साथ नहीं हैं, लेकिन वे अपनी स्पीच में बीजेपी को सबक सिखाने की अपील करते रहे हैं।
- अहमदाबाद में
राहुल गांधी के साथ मुलाकात के उनके सीसीटीवी फुटेज भी चर्चा में रहे हैं।
- कांग्रेस की पाटीदारों को साथ लाने की कोशिश इससे भी समझी जा सकती है कि पार्टी के बड़े पाटीदार नेता और हाईकोर्ट के वकील बाबूभाई मांगूकिया ने पाटीदार अांदोलन के कई नेताओं के केस भी लड़े हैं। - कुल मिलाकर यहां बिल्कुल वैसा ही जाति आधारित चुनाव हो रहा है जैसा उत्तर प्रदेश में होता है।
विकास पर भी सफाई देनी पड़ रही है
- बता दें कि 2003 से ही
नरेंद्र मोदी ने वायब्रेंट गुजरात की शुरुआत कर कट्टर हिंदूवादी इमेज की बजाय विकास पुरुष के रूप में अपना मेक-ओवर शुरू कर दिया था, लेकिन इस बार गुजरात चुनाव में यह करीब दो दशक में पहला मौका है जब बीजेपी को विकास पर भी सफाई देनी पड़ रही है।
- यह सब उसके बाद और बढ़ गया जब- विकास पागल हो गया है, जैसे जुमले तेजी से गुजरात में लोगों की जुबान पर चढ़ रहे हैं।
सॉफ्ट हिंदुत्व
- वहीं दूसरी ओर कांग्रेस यहां पहली बार सॉफ्ट हिंदुत्व की ओर भी जा रही है। कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी अब तक गुजरात दौरों के दौरान लगातार मंदिर जा रहे हैं।
- सौराष्ट्र के द्वारका मंदिर से दौरा शुरू करने वाले राहुल अब तक पांच प्रमुख मंदिर जा चुके हैं।
- वहीं, दूसरी ओर कांग्रेस में इस बार प्रदेश के सबसे बड़े मुस्लिम नेता
अहमद पटेल भी अहम भूमिका में नहीं है। कांग्रेस मुस्लिम वोटर्स का जिक्र नहीं कर रही है।
बीजेपी 1995 से पूर्ण बहुमत में
- गुजरात यूनिवर्सिटी के सोशलॉजी डिपार्टमेंट के एचओडी और पॉलिटिकल एनालिस्ट गौरांग जानी कहते हैं कि ये चुनाव विकास के मुकाबले जातिवाद का नहीं है, लेकिन विकास के खिलाफ सामाजिक विरोधाभास सामने आया है। विकास से गुजरात की जनता रूबरू है। अब देखना है कि जनता करती क्या है।
- बता दें कि गुजरात में बीजेपी 1995 से पूर्ण बहुमत में है। 2007 और 2012 के गुजरात विधानसभा चुनाव में मोदी ने कांग्रेस की कमजोर लीडरशिप और बीजेपी सरकार के विकास के कामों को मुद्दा बना कर चुनाव में जीत हासिल की।
- अब कांग्रेस बीजेपी के उसी विकास को झूठा बताते हुए मुद्दा बना रही है। हालांकि, 2017 के विधानसभा चुनाव बीजेपी के लिए चुनौती से भरे माने जा रहे हैं। वजह, इस चुनाव में नरेंद्र मोदी गुजरात में नहीं हैं। उनकी गैर मौजूदगी में तीन साल में गुजरात दो मुख्यमंत्री देख चुका है।
- बीजेपी के लगभग दो दशक से लगातार शासन में होने के चलते गुजरात में एक समूची नई पीढ़ी जन्म कर युवा हो गई है।
- इस पीढ़ी को पता ही नहीं है कि गुजरात में कांग्रेस का शासन कैसा था। ऐसे हालात में 2017 में बीजेपी अब कांग्रेस शासन की नाकामियां गिनवाए तो यह बात लोगों को अपील नहीं करती है।
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