Friday, 23rd May 2025

1400 बच्चों के श्रम से 2 साल बाद रोज पैदा होगी डेढ़ करोड़ की ऑक्सीजन

Tue, Oct 24, 2017 5:57 PM

धीरज गोमे, उज्जैन। पर्यावरण संरक्षण की दिशा में उज्जैन के 25 स्कूलों के 1400 बच्चों ने एक संस्था के सहयोग से दो साल बाद रोज करीब डेढ़ करोड़ रुपए की ऑक्सीजन पैदा करने का प्रण लिया है। इसे पूरा करने के लिए हर बच्चे ने नीम के दो फीट के पौधे लगाए हैं। ये पौधे 5 फीट के होने पर शिप्रा तट पर रोपे जाएंगे।

पर्यावरणविदों के अनुसार एक नीम का पेड़ 10 हजार रुपए कीमत की ऑक्सीजन छोड़ता है। इस तरह 1400 पेड़ों से हमें प्रतिदिन 1.40 करोड़ स्र्पए की ऑक्सीजन प्राप्त होगी। खास बात यह है कि दो साल बाद जिस बच्चे का पौधा सबसे अच्छी स्थिति में होगा उसे एक लाख रुपए पुरस्कार में दिए जाएंगे।

प्लांटेशन के जरिए शिप्रा नदी को प्रवाहमान करने के उद्देश्य से 60 वर्षीय पर्यावरण मित्र राजीव पाहवा ने नेचुरल ऑक्सीजन इंडस्ट्री की स्थापना की है। उनके मार्गदर्शन में ही 1400 बच्चों ने ग्रीन वॉरियर्स चैरिटी बनाई है और हर बच्चा वन विभाग से प्राप्त नीम के पौधे की दो साल तक नियमित देखभाल कर उसे पेड़ बनाएगा।

बाद में पौधा शिप्रा किनारे रोपा जाएगा। पहचान के लिए हर पौधे पर 11 डिजिट का विशेष कोड होगा, जिससे वार्ड, स्कूल, बच्चे की पहचान हो सकेगी। प्रोजेक्ट 10 साल का है, जिसके तहत 10 साल में 15 हजार नीम के पौधे शिप्रा किनारे रोपे जाने हैं।

हर पौधे की सतत मॉनीटरिंग होगी और तीन-तीन माह में मूल्यांकन। दो साल बाद सबसे अच्छी ग्रोथ वाले पौधे के संरक्षक बच्चे को 1 लाख स्र्पए का पुरस्कार दिया जाएगा। जिस स्कूल के अधिकांश बच्चों का परिणाम बेहतर होगा, उस स्कूल प्रबंधन को भी 21 हजार स्र्पए पुरस्कार मिलेगा।

ऑक्सीजन सिलेंडर 2500 का

अस्थमा जैसी श्वांस की बीमारियों के रोगियों को जिस ऑक्सीजन सिलेंडर की जरूरत होती है, वह प्रतिदिन 2500 रुपए में पड़ता है। इसको आधार मान कर हिसाब लगाया गया है कि 1400 नीम के पेड़ से हर दिन 1.40 करोड़ स्र्पए की ऑक्सीजन प्राप्त हो सकेगी।

45 हजार पौधों की देखभाल

एक दशक पहले तक व्यवसाय करने वाले राजीव पाहवा ने शादी की, लेकिन पत्नी की सहमति से निसंतान रहे। बाद में संपूर्ण जीवन शिप्रा संरक्षण के लिए काम करने का संकल्प लिया। दो साल में वे 400 पौधे स्वयं रोप चुके हैं और युवाओं से भी वे कई पौधे लगवा चुके हैं। वर्तमान में वे 45 हजार पौधों की देखभाल स्वयं नियमित कर रहे। पॉलीथिन बंदी और मिट्टी की गणेश प्रतिमा को लेकर भी वे जागरूकता अभियान चला चुके हैं।

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