मल्टीमीडिया डेस्क। आषाढ़ महीने के शुक्ल पक्ष की एकादशी को देवशयनी एकादशी कहते हैं, जब भगवान विष्णु सोने को चले जाते हैं। इसके बाद से ही सभी मांगलिक कार्य बंद हो जाते हैं। चार महीने के बाद कार्तिक शुक्ल पक्ष की एकादशी को देवउठनी एकादशी कहते हैं, जब विष्णुजी अपनी नींद से जागते हैं।
इसे प्रबोधिनी एकादशी, देव उठनी एकादशी व्रत, देव उठनी ग्यारस के नाम से भी जाना जाता है। आषाढ़ से लेकर कार्तिक एकादशी के चार चार महीनों के दौरान भगवान विष्णु के शयनकाल की अवस्था में होने के कारण इस दौरान कोई शुभ कार्य जैसे, शादी, गृह प्रवेश आदि नहीं होते हैं। इस बार देव प्रबोधिनी एकादशी 31 अक्टूबर को है।
दिवाली के 11 दिन बाद आने वाली यह एकादशी काफी महत्वपूर्ण है क्योंकि इस दिन तुलसी का शालिग्राम से विवाह होता है। इसीलिए देवउठनी एकादशी को तुलसी विवाह उत्सव भी कहा जाता है।
शादी के लिए इंतजार
हालांकि, देवउठनी एकादशी के बाद सभी तरह के शुभ कार्य शुरू हो जाते हैं। मगर, इस बार देव जागने के 18 दिन बाद भी कोई वैवाहिक मुहूर्त नहीं है। बृहस्पति के पश्चिमास्त होने और सूर्य के 16 नवंबर को राशि बदलकर वृश्चिक में आने के तीन दिन बाद 19 नवंबर से शादियों की शुरुआत होगी। इसके बाद से दिसंबर तक शादियों के महज 14 मुहूर्त ही हैं।
31 को है तुलसी विवाह
कार्तिक शुक्ल एकादशी को तुलसीजी और विष्णुजी का विवाह कराने की प्रथा है। ये त्योहार दिवाली के 11 दिन बाद मनाया जाता है, जो इस साल 31 अक्टूबर को है।
तुलसी विवाह की विधि
तुलसी विवाह के लिए तुलसी के पौधे को सजाकर उसके चारों तरफ गन्ने का मंडप बनाना चाहिए। तुलसी जी के पौधे पर चुनरी या ओढ़नी चढ़ानी चाहिए। इसके बाद शादी के रीति-रिवाजों के अनुसार ही तुलसी विवाह की भी रस्में भी निभानी चाहिए। इस दिन तुलसी जी के साथ विष्णु जी की मूर्ति घर में स्थापित करनी चाहिए। तुलसी के पौधे और विष्णु जी की मूर्ति को पीले वस्त्रों से सजाना चाहिए।
द्वादशी के दिन तुलसीजी और विष्णुजी की पूजा करके व्रत खोलना चाहिए। तुलसी के टूटकर गिरे हुए पत्तों को खाना शुभ होता है। इस दिन गन्ना, आंवला और बेर का फल खाने से जातक के सभी पाप नष्ट हो जाते हैं।
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