जब सफलता मिल जाए तो ध्यान रखें सुंदरकांड की ये बातें
Sat, Oct 14, 2017 7:29 PM
रामायण के सुंदरकांड में हनुमानजी ने हमें बताया है कि सफल होने पर थोड़ा खामोश हो जाना चाहिए। हमारी सफलता की कहानी कोई दूसरा बयान करे, तो कामयाबी में चार चांद लग जाते हैं।
जामवंतने सुनाई हनुमानजी की सफलता की गाथा
लंका जलाकर और सीताजी को संदेश देने के बाद उनका रामजी की ओर लौटना सफलता की चरम सीमा थी। वह चाहते तो अपने इस काम को स्वयं श्रीरामजी के सामने बयान कर सकते थे।
जैसा हम लोगों के साथ होता है, हम लोग अपनी सफलता की कहानी स्वयं दूसरों को न सुनाएं, तो कइयों का तो पेट दुखने लगता है, लेकिन हनुमानजी जो करके आए, उसकी गाथा श्रीराम को जामवंत ने सुनाई।
तुलसीदासजी ने लिखा है कि-
नाथपवनसुत कीन्हि जो करनी। सहसहुं मुख न जाइ सो बरनी।।
पवनतनयके चरित्र सुहाए। जामवंत रघुपतिहि सुनाए।।
जामवंत श्रीराम से कहते हैं कि- हे नाथ! पवनपुत्र हनुमान ने जो करनी की, उसका हजार मुखों से भी वर्णन नहीं किया जा सकता। तब जामवंत ने हनुमानजी के सुंदर चरित्र (कार्य) श्रीरघुनाथजी को सुनाए।।
सुनतकृपानिधि मन अति भाए। पुनि हनुमान हरषि हियं लाए।।
सफलता की गाथा सुनने पर श्रीरामचंद्र के मन को हनुमानजी बहुत ही अच्छे लगे। उन्होंने हर्षित होकर हनुमानजी को फिर हृदय से लगा लिया। परमात्मा के हृदय में स्थान मिल जाना अपने प्रयासों का सबसे बड़ा पुरस्कार है।
Comment Now