पेरिस। अमेरिका और इजरायल ने गुरुवार को ऐलान किया कि वह संयुक्त राष्ट्र शैक्षणिक, वैज्ञानिक व सांस्कृतिक संगठन (यूनेस्को) से अलग हो जाएगा। अमेरिका ने यूनेस्को पर इजरायल विरोधी रुख रखने का आरोप लगाया है। अमेरिका का संयुक्त राष्ट्र की इस एजेंसी से अलग होने का फैसला 31 दिसंबर 2018 से प्रभावी होगा। तब तक वह यूनेस्को का पूर्णकालिक सदस्य बना रहेगा।
इससे फंड की कमी से जूझ रहे यूनेस्को की परेशानियां और बढ़ सकती हैं। इस संगठन को दिए जाने वाले अमेरिकी फंड पर राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप नाराजगी जताते रहेहैं। यूनेस्को को अमेरिका से हर साल आठ करोड़ डॉलर (करीब 520 करोड़ रुपये) की मदद मिलती है।
यूनेस्को का मुख्यालय पेरिस में है। संयुक्त राष्ट्र का यह संगठन 1946 से काम कर रहा है। अमेरिकी विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता हीथर नौअर्ट ने कहा, "यह फैसला हल्के में नहीं लिया गया है। यह अमेरिकी चिंताओं को जाहिर करता है कि इस संगठन में बुनियादी सुधार की जरूरत है।"
उन्होंने बताया कि इस बारे में यूनेस्को महासचिव को सूचित कर दिया गया है। इसके कुछ घंटे बाद इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने भी अमेरिकी फैसले को साहसिक बताते हुए यूनेस्को से बाहर आने का एलान कर दिया।
उल्लेखनीय है कि अमेरिका ने साल 2011 में फलस्तीन को यूनेस्को का पूर्णकालिक सदस्य बनाने के फैसले के विरोध में इसके बजट में अपना योगदान नहीं दिया था। इससे पहले फॉरेन पॉलिसी पत्रिका ने भी एक रिपोर्ट में दावा किया था कि 58 सदस्यीय यूनेस्को के नए महानिदेशक का चुनाव कर लिए जाने के बाद अमेरिका इससे अलग होने का एलान कर सकता है।
यूनेस्को ने जताया अफसोस
यूनेस्को ने अमेरिका के अलग होने के फैसले पर खेद जताया है। यूनेस्को महासचिव एरिना बोकोवा ने बयान में कहा, "अमेरिका के विदेश मंत्री रेक्स टिलरसन से आधिकारिक सूचना मिली है। अमेरिका का यूनेस्को से अलग होने का फैसला अफसोसजनक है।"
Comment Now