नोएडा। इलाहाबाद हाईकोर्ट द्वारा आरुषि मर्डर केस में तलवार दंपती को बरी कर दिया है। जानकारी के अनुसार डासना जेल में बंद तलवार दंपति को इस फैसले के बाद आज रिहा कर दिया जाएगा। हालांकि, जेल अधिक्षक ने कहा है कि उन्हें इस बाबत अब तक कोई आदेश नहीं मिला है और जब तक आदेश नहीं मिलता तब रिहाई नहीं होगी।
वहीं वकील का कहना है कि जेल अधिक्षक को रिहाई का आदेश दोपहर तक मिल जाएगा और तलवार दंपती शाम 4 बजे तक रिहा हो जाएंगे।
तलवार दंपती के बेकसुर होने से उठे कई सवाल
हालांकि कोर्ट ने दोनों को बरी कर दिया है, लेकिन उलझन और भी बढ़ गई। लोगों की जेहन में दो सवाल कौंध रहे हैं। पहला आरुषि-हेमराज को किसने मारा और दूसरा यह कि क्या उन्हें किसी ने नहीं मारा? अदालत ने तो साक्ष्यों के आधार पर फैसला सुनाया, लेकिन इसने गौतमबुद्ध नगर पुलिस के साथ ही देश की सबसे बड़ी जांच एजेंसी सीबीआई की साख पर सवाल खड़ा कर दिया।
फॉरेंसिक साक्ष्य जुटाने में लापरवाही
दुनिया में किसी भी हत्याकांड का पर्दाफाश तीन साक्ष्यों पर ही निर्भर करता है। प्रत्यक्ष, फॉरेंसिक व परिस्थितिजन्य साक्ष्य। आरुषि हत्याकांड में कोई प्रत्यक्ष साक्ष्य नहीं था। आरुषि और हेमराज के शव मिलने के बाद नोएडा पुलिस के पास फॉरेंसिक साक्ष्य जुटाने का मौका था, जिसे उन्होंने गंवा दिया। हत्याकांड के 15 दिनों बाद सीबीआई जांच करने आई। उसने फॉरेंसिक साक्ष्य जुटाए, लेकिन तब तक बहुत कुछ धुल और घुल चुका था।
सर्विलांस के आगे फॉरेंसिक को नहीं मिली तवज्जो दरअसल, 2008 तक नोएडा पुलिस पर पूरी तरह से सर्विलांस सिस्टम हावी हो चुका था। ज्यादातर केस सर्विलांस के सहारे सुलझ रहे थे। आरुषि हत्याकांड को भी नोएडा पुलिस सर्विलांस की मदद से खोल देने के गुमान में थी। उसने यही किया। डॉ. राजेश तलवार का मोबाइल सर्विलांस पर लेकर उन्हें गिरफ्तार भी किया, लेकिन दुनिया के सामने सच नहीं रख सकी।
पुलिस ने फॉरेंसिक साक्ष्य जुटाने में दिखाई लापरवाही
-आरुषि और हेमराज दोनों का शव मिलने के बाद सीन ऑफ क्राइम को सील नहीं किया गया।
- सीन ऑफ क्राइम पर पुलिस अधिकारियों के साथ बड़ी संख्या में मीडिया प्रतिनिधि व अन्य लोग थे मौजूद। कई सुबूत हुए नष्ट।
-सीन ऑफ क्राइम की वीडियोग्राफी नहीं हुई।
-सीन ऑफ क्राइम के पास पड़ी एक-एक चीज की बारीकी से जांच नहीं हुई। छत पर मौजूद खून से सने पंजे के निशान और फुट प्रिंट को नहीं लिया गया।
-आरुषि के नाखून में चमड़े का अंश था, उसकी जांच नहीं कराई गई।
-आरुषि के बिस्तर पर बाल पड़े थे, उनकी जांच भी नहीं हुई।
-छत पर जगह-जगह पड़े खून के सैंपल नहीं लिए गए। सीबीआई जब तक सैंपल लेती, उससे पहले बारिश हो गई, जिसमें वह धुल गए।
-हेमराज के कमरे में शराब की बोतल पर मौजूद फिंगर प्रिंट को नहीं लिया गया।
-तलवार दंपती समेत अन्य लोगों के फिंगर और फुट प्रिंट नहीं लिए गए थे।
-तलवार दंपती के घटना के वक्त पहने कपड़े को जब्त नहीं किया गया।
-खोजी कुत्ते का सहारा नहीं लिया गया था।
इन सवालों के नहीं मिले थे जवाब
-हत्या पहले हेमराज की हुई या आरुषि की।
-सीबीआइ के अनुसार, गोल्फ स्टिक के वार से आरुषि की हत्या हुई थी। फिर हेमराज को कैसे मारा गया। अगर ऐसा था तो आरुषि की गर्दन काटने की जरूरत क्यों पड़ी?
-गर्दन काटने के लिए किस हथियार का इस्तेमाल हुआ?
-हेमराज का फोन कहां गया?
-आला-ए-कत्ल कहां गया?
-15 मई 2008 की रात हेमराज के मोबाइल पर निठारी के पीसीओ से फोन आया था। वह फोन किसने और क्यों किया था।
सही थी नोएडा पुलिस की जांच : ब्रजलाल
तत्कालीन एडीजी कानून व्यवस्था ब्रजलाल ने कहा है कि आरुषि की हत्या के बाद नोएडा पुलिस मौके पर पहुंची थी। डॉ. राजेश तलवार ने पुलिस को तुरंत बता दिया कि नौकर हेमराज ने आरुषि को मार डाला। वह नेपाल भाग गया। यही लिख कर भी दिया। जिस आधार पर नोएडा पुलिस ने केस दर्ज किया।
पुलिस छत पर जाकर दरवाजा खोलना चाह रही थी। डॉ. राजेश तलवार ने चाभी नहीं दी। वह आरुषि के पोस्टमार्टम के बाद अंतिम संस्कार कर हरिद्वार के लिए निकल गए। वह मोदीनगर पहुंचे थे। लेकिन, हेमराज का शव मिलने पर नोएडा पुलिस ने जब फोन किया तो उन्होंने मेरठ में होने की जानकारी दी थी। वह मोबाइल पर हत्या के मामले में जमानत कैसे होती है, इसकी जानकारी ले रहे थे।
उन्होंने कहा कि इन सब कारणों से डॉ. राजेश तलवार और डॉ. नूपुर तलवार शक के घेरे में आए थे। एक आधार यह भी था कि अगर बाहरी हत्यारा होता तो वह हेमराज की हत्या के बाद छत के गेट पर ताला लगाने की जहमत नहीं उठाता। उसका मकसद भागना होता। इससे जाहिर हो रहा था कि हेमराज का शव ठिकाने लगाने की योजना थी।
इस आधार पर भी तलवार दंपती ही शक के दायरे में आते हैं। मैं अब भी इस बात से सहमत हूं कि नोएडा पुलिस की जांच सही थी। तलवार दंपती ने ही आरुषि-हेमराज की हत्या की है। सीबीआइ और निचली अदालत ने भी इस थ्योरी को माना। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने भी जांच को गलत नहीं माना है। बल्कि, संदेह के लाभ के आधार पर बरी किया है।
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