Thursday, 28th August 2025

शरद पूर्णिमा, समुद्र मंथन से इसी दिन हुआ था लक्ष्मी का उदय

Sun, Oct 1, 2017 8:44 PM

दशहरे के पांचवे दिन शरद पूर्णिमा का उत्सव मनाया जाता है। असल में यह सिर्फ धार्मिक त्योहार ही नहीं है, यह ऋतु परिवर्तन का उत्सव भी है, आध्यात्मिक, औषधिय और रचनात्मक उत्सव भी होता है।

वर्षा से शीत की तरफ बढ़ते दिनों का संक्रमण काल हुआ करता है शरद। उसी का उत्सव है शरद पूर्णिमा। अलग-अलग जगह पर अलग-अलग तरह से शरद-पूर्णिमा मनाई जाती है। लेकिन इस सबके पीछे दर्शन मौसम परिवर्तन का ही हुआ करता है।

आश्विन शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को शरद पूर्णिमा कहते हैं। इसे कोजागरी और रास पूर्णिमा भी कहते हैं। किसी-किसी स्थान पर व्रत को कौमुदी पूर्णिमा भी कहते हैं। कौमुदी का अर्थ है चांद की रोशनी। इस दिन चांद अपनी सोलह कलाओं से पूर्ण होता है। कुछ प्रांतों में खीर बनाकर रात भर खुले आसमान के नीचे रखकर सुबह खाते हैं। इसके पीछे यह मान्यता है कि चांद से अमृतवर्षा होती है।

इसे रास पूर्णिमा भी कहते हैं क्योंकि इसी दिन श्रीकृष्ण ने गोपियों के साथ महारास की शुरुआत की थी। इस पूर्णिमा पर व्रत रखकर पारिवारिक देवता की पूजा की जाती है। पौराणिक मान्यता के अनुसार समुद्र मंथन से इसी दिन लक्ष्मी का उदय हुआ था। इस दृष्टि से यह लक्ष्मी के आगमन का दिन माना जाता है। इसलिए अधिकतर जगहों पर इस दिन लक्ष्मी की पूजा की जाती है। मान्यता है कि इस दिन चंद्रमा पृथ्वी के अत्यंत समीप आ जाता है। कार्तिक का व्रत भी शरद पूर्णिमा से प्रारंभ होता है।

शरद ऋतु में मौसम एकदम साफ रहता है। इस दिन आकाश में न तो बादल होते हैं और न हीं धूल-गुबार। शरण पूर्णिमा की रात में चंद्रकिरणों का शरीर पर पड़ना बहुत शुभ माना जाता है। प्रति पूर्णिमा को व्रत करने वाले इस दिन भी चंद्रमा का पूजन करके भोजन करते हैं।

इस दिन शिव-पार्वती और कार्तिकेय की भी पूजा की जाती है। यही पूर्णिमा कार्तिक स्नान के साथ राधा-दामोदर पूजन व्रत धारण करने का भी दिन है। हिंदू धर्मशास्त्र में वर्णित कथाओं के अनुसार देवी-देवताओं के अत्यंत प्रिय पुष्प ब्रह्मकमल केवल इसी रात में खिलता है।

इस रात को ऐरावत हाथी पर बैठे इंद्रदेव और महालक्ष्मी की पूजा की जाती है। कहीं-कहीं हाथी की आरती भी उतारते हैं। इंद्र देव और महालक्षमी की पूजा में दीया, अगरबत्ती जलाते हैं और भगवा को फूल चढ़ाते हैं। लक्षमी और इंद्र देव रात भर घूम कर देखते हैं कि कौन जाग रहा है और उसे ही धन की प्राप्ति होती है। इसलिए पूजा के बाद रात को लोग जागते हैं। अगले दिन पुन: इंद्र देव की पूजा होती है।

बंगाल में शरद पूर्णिमा को कोजागोरी लक्ष्मी पूजा कहते हैं, महाराष्ट्र में कोजगरी पूजा कहते हैं और गुजरात में शरद पूनम। शरद पूर्णिमा पर तरह-तरह के की रस्मों का पालन किया जाता है। इस दिन खीर का भोग लगाया जाता है। दूध के बर्तन में चांद देखा जाता है। चंद्रमा की रोशनी में सूई में धागा डाला जाता है। खीर, पोहा, मिठाई रात भर चांद के लिए रखी जाती है।

शरद पूर्णिमा का चांद बदलते मौसम अर्थात मानसून के अंत का भी प्रतीक है। ऐसा माना जाता है कि इस दिन चांद धरती के सबसे निकट होता है इसलिए शरीर और मन दोनों को शीतलता देता है। इसका चिकित्सकीय महत्व भी है जो स्वास्थ्य के लिए अच्छा है।

हर प्रांत में शरद पूर्णिमा का कुछ-न-कुछ महत्व अवश्य है। विभिन्न स्थानों पर अलग-अलग भगवान को पूजा जाता है। परंतु अधिकतर स्थानों में किसी-न-किसी रूप में लक्षमी की पूजा अवश्य होती है।

कैसे मनाएं

1. इस दिन प्रात: काल स्नान करके आराध्य देव को सुंदर वस्त्राभूषणों से सुशोभित करके आह्वान, आसन, आचमन, वस्त्र, गंध, अक्षत, पुष्प, धूप, दीप नैवेद्य, ताम्बूल, सुपारी, दक्षिणा आदि से उनका पूजन करना चाहिए।

2. रात्रि के समय गौदुग्ध (गाय के दूध) से बनी खीर में घी और चीनी मिलाकर अर्धरात्रि के समय भगवान को अर्पण करें।

3. पूर्ण चंद्रमा के आकाश के मध्य स्थित होने पर उनका पूजन करें और खीर का नैवेद्य अर्पण करके, रात को खीर से भरा बर्तन खुली चांदनी में रखकर दूसरे दिन उसका भोजन करें और सबको प्रसाद दें।

4. पूर्णिमा का व्रत करके कथा सुनें। कथा सुनने से पहले एक लोटे में जल और गिलास में गेहूं, पत्ते के दोनों में रोली और चावल रखकर कलश की वंदना करके दक्षिणा चढ़ाएं। फिर तिलक करने के बाद गेहूं के 13 दाने हाथ में लेकर कथा सुनें, फिर गेहूं का गिलास उन्हें दे दें। लोटे के जल का रात को चंद्रमा को अर्घ्य दें।

पौराणिक मान्यता के अनुसार शरद पूर्णिमा की रात को चांद पूरी सोलह कलाओं से पूर्ण होता है। इस दिन चांदनी सबसे तेज प्रकाश वाली होती है। माना जाता है कि इस दिन चंद्रमा की किरणों से अमृत गिरता है। ये किरणें सेहत के लिए काफी लाभदायक मानी जाती है।

वैज्ञानिक दृष्टिकोण से देखा जाए तो माना जाता है कि इस दिन से मौसम में परिवर्तन होता है और शीत ऋतु की शुरुआत होती है। इस दिन खीर खाने को अच्छा माना जाता है क्योंकि अब ठंड का मौसम आ गया है इसलिए गर्म पदार्थों का सेवन करना शुरू कर दें। ऐसा करने से हमें ऊर्जा मिलती है।

शरद पूर्णिमा का चांद सेहत के लिए काफी फायदेमंद है। इसका चांदनी से पित्त, प्यास और दाह दूर हो जाते हैं। दशहरे से शरद पूर्णिमा तक रोज रात में 15 से 20 मिनट तक चांदनी का सेवन करना चाहिए। यह काफी फायदेमंद है।

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