Thursday, 22nd May 2025

19 साल की उम्र में ही झड़ गए थे इस एक्टर के बाल, ऐसे मिला फिल्मों में ब्रेक

Wed, Sep 20, 2017 5:51 PM

इंदौर.पिछले दिनों शहर में एक बेहतरीन नाटक खेल कर गए। जितने बेहतरीन एक्टर और राइटर हैं, उतने ही कमाल के किस्सागो भी हैं सौरभ। भास्कर से गुफ्तगू में कई किस्से सुनाए। 19 साल की उम्र में सिर से बाल झड़ जाने से हुई कैफियत से लेकर सत्या जैसी हिट फिल्म के बाद छह साल तक काम न मिलने तक के कई किस्से सुनाए। चुनिंदा किस्से हम शेअर कर रहे हैं :

"जानते हैं दुनिया में सबसे ज्यादा चुटकुले किन्होंने लिखे हैं, यहूदियों ने...। पूरी दुनिया में यही जोक्स आज भी सुनाए जा रहे हैं। पाकिस्तान में इनके किरदार पठान, इंग्लैंड में आइरिश और हिंदुस्तान में सरदार हैं। असल में यहूदियों ने अपनी जिंदगी में इतने ज़ुल्म, इतने दर्द देखे थे कि यह हास्य उनके लिए जीने की ज़रूरत बन गया था... मेरा अनुभव जिंदगी के बारे में यही है कि जहां जितना दर्द है, वहां उतना हास्य होगा। जहां जितनी तकलीफें हैं, वहां ह्यूमर उतना ही तीखा और तेज़ होगा। असल में ट्रेजेडी और कॉमेडी एक दूसरे के साथ गलबहियां करते हुए चलती हैं। कभी देखिए तो सही ग़म में मुस्कराकर। बेशक़ दु:ख कम नहीं होगा, लेकिन उसे सहने की ताक़त आ जाएगी। हास्य आपको थाम लेगा।' रूबरू हैं सौरभ शुक्ला... मलंग, फक्कड़, स्पष्टवादी सौरभ।
 
 
मुझे किसी ने कहा था तुम स्टेज पर खड़े होते हो और तुम्हें देखकर लगता है यार क्या कमाल है यह आदमी। असल में रंगमंच ही मेरी जगह है। मेरा डोमेन है ये। जबकि 19 साल की उम्र में मेरे सारे बाल झड़ गए थे। बहुत घबराता था मैं कि अब एक्टर कैसे बनूंगा। लेकिन मुझे मिला जो मैं चाहता था। लाइट का फोकस मुझ पर आता है और एक बार फिर मुझे इत्मीनान हो जाता है कि सौरभ यही है तेरी जगह। हर किसी की अपनी एक जगह होती है। जैसे मैं टेबल टेनिस खेलता हूं। मेरे टीचर जब कोर्ट में पहुंचते हैं और रैकेट लेकर जब वो झुकते हैं तो लगता है यार क्या बात है। क्या बॉडी लैंग्वेज है। हर किसी का एक डोमेन है। लोग अक्सर दूसरों के डोमेन में खुद को तलाशते हैं। अपने आप से मिल ही नहीं पाते। मेरा डोमेन मेरा स्टेज, मेरा क्राफ्ट है। सबसे झूठ बोलो कोई प्रॉब्लम नहीं है। खुद से मत बोलो। खुद को खुश रखो। दिल की सुनो। जिंदगी सब सिखा देगी।
 
 
मैं आज मुंबई में हूं तो शेखर कपूर की वजह से
 
जब बैंडिट क्वीन की कास्टिंग हो रही थी तब में दिल्ली में रेपर्टरी कम्पनी में काम करता था। फिल्म की लीड एक्ट्रेस सीमा बिस्वास का एक प्ले होने वाला था। मैं भी था उसमें। डायरेक्टर शेखर कपूर ड्रामा देखने आए। उन्होंने मुझे बुलाया और पूछा बड़ा इंट्रेस्टिंग है भई तुम्हारा चेहरा। फिल्म करोगे मेरे साथ। उन दिनों मुझे तीन काम मिले हुए थे। इंग्लैंड की एक सीरीज़, बर्तलूची की एक फिल्म और दूरदर्शन के तीन सीरियल। मुझे तो लग रहा था हिंदुस्तान का सबसे बड़ा आदमी मैं ही हूं। चोट ऐसी हुई कि तीनों प्रोजेक्ट किसी न किसी वजह से कैंसिल हो गए। तब तक बैंडिट क्वीन की कास्टिंग भी हो गई। शेखर एक बार फिर आए प्ले देखने। मुझे बुलाया और चुपचाप मुझे देखते रहे...फिर उठकर चले गए। उन दिनों तिग्मांशु धूलिया शेखर के असिस्टेंट हुआ करते थे। मैंने उससे पूछा कि ये आखिर क्या था। उसने बताया टिकट कटा दिया है, बैंडिट क्वीन की वर्कशॉप में आ जाना। सच कहूं मैं आज मुंबई में हूं तो शेखर कपूर की वजह से।
 
 
उनकी सुनते तो सत्या बनती ही नहीं
सत्या बनाई तो शूटिंग के बाद इंडस्ट्री के 60 लोगों के लिए फिल्म का ट्रायल रखा। सभी नामी-गिरामी थे। सभी ने एक सुर में कहा कि इससे ज्यादा भद्दी फिल्म नहीं देखी अब तक। शुक्रवार को थिएटर में जनता के साथ हम भी बैठे थे। इंटरवल तक ऑडियंस पूरी तरह फिल्म के साथ हो चुकी थी। इसलिए मैं अब मास और क्लास के चक्कर में पड़ता ही नहीं हूं। वैसे भी दिल से किए गए अधिकतर काम सही ही होते हैं। गैलीलियो को यकीन था कि दुनिया चपटी नहीं गोल है। यकीन है तो सब है।

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