भोपाल ।मध्यप्रदेश में हर साल स्वाइन फ्लू का मरीज मिलते ही अलर्ट जारी कर दिया जाता है। सरकार दावा कर रही है कि इलाज के पूरे इंतजाम हैं। दवाओं की कमी नहीं है। लेकिन, सच्चाई यह है कि स्वाइन फ्लू से पीड़ित बच्चों के इलाज के लिए सीरप तक नहीं मिल रहा है। स्वास्थ्य विभाग के अफसरों का कहना है कि सीरप की जगह टैबलेट तोड़कर दी जा रही है। इससे कोई दिक्कत नहीं है। हैरानी की बात तो यह है कि सीरप तीन साल से नहीं आया है।
दरअसल, तीन साल पहले तक सीरप की सप्लाई केंद्र सरकार कर रही थी। इसके बाद राज्यों को खरीदने के लिए कहा गया, मध्य प्रदेश पब्लिक हेल्थ सप्लाई कॉरपोरेशन ने सीरप खरीदने के लिए पिछले तीन सालों में किसी दवा कंपनी से अनुबंध ही नहीं किया। इस वजह से बच्चों को सीरप की जगह टैबलेट तोड़कर देनी पड़ रही है। बता दें कि स्वाइन फ्लू का खतरा 5 साल से छोटे बच्चों या 60 साल से ज्यादा उम्र वालों को अधिक रहता है।
बच्चों को स्वाइन फ्लू की ए कैटेगरी में ही दवा देना जरूरी होता है। इस तरह स्वाइन फ्लू के पॉजीटिव, संदिग्ध दोनों तरह के मरीजों को दवा देनी होती है। कुल संदिग्ध व पॉजिटिव मरीजों में दो साल से कम उम्र वाले करीब 5 फीसदी होते हैं, जिन्हें सीरप की जरूरत पड़ती है। स्वास्थ्य विभाग के एक अधिकारी ने बताया कि मप्र प्रदेश पब्लिक हेल्थ सप्लाई कॉरपोरेशन जल्द ही रेट कांट्रैक्ट कर सीरप की खरीदी करेगा।
टैबलेट देने से यह डर
- तय मात्रा में डोज नहीं मिल पाता
- टैबलेट को शहद के साथ दिया जाता है, शहद खुली या खराब होने पर बच्चे को नुकसान हो सकता है।
- हाथ से टैबलेट तोड़ने पर इंफेक्शन का डर रहता है।
- सीरप बच्चे आसानी से पी लेते हैं, लेकिन दवा के बारीक टुकड़े न किए जाएं तो बच्चे नहीं पीते।
कोई दिक्कत नहीं
सीरप नहीं होने से कोई दिक्कत नहीं आती। टैबलेट को उतनी ही मात्रा में तोड़कर शहद के साथ दिया जाता है। वैसे भी सीरप दो साल से छोटे बच्चों को दिया जाता है। इस उम्र के मरीज इक्का-दुक्का ही रहते हैं। डॉ. केएल साहू, संचालक, स्वास्थ्य सेवाएं
उतना ही असर
सीरप दो-तीन साल से नहीं आ रहा है, लेकिन इससे कोई दिक्कत नहीं है। टैबलेट तोड़कर बच्चों को खिलाई जाती है। उसका असर भी उतना ही होता है। डॉ. लोकेन्द्र दवे,एचओडी, पल्मोनरी मेडिसिन, हमीदिया अस्पताल
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