भारत की आजादी के बाद जब राज्यों के पुनर्गठन को लेकर आयोग बनाया गया तो आयोग को सबसे ज्यादा मुश्किलें नया मध्य प्रदेश बनाने में आईं।
दरअसल, यूं तो इसे चार राज्यों (मध्य प्रांत, पुराना मध्य प्रदेश, विंध्य प्रदेश और भोपाल) को जोड़कर ही बनाना था, लेकिन असल में इन राज्यों के विशालकाय भूभाग में रहने वाली जनता अलग-अलग विचार, जीवनशैली, खान-पान, रहन-सहन, लोक संस्कृति और आचार-विचार की थी।
लिहाजा इन्हें एक राज्य व्यवस्था के तहत ला पाना बहुत पेचीदा और अपनी तरह का अनूठा काम था। आखिरकार जब 1 नवंबर 1956 को मध्य प्रदेश बना तब यह महाकौशल, विंध्यप्रदेश, मालवा, निमाड़, मध्य भारत, भोपाल, सिरोंज, चंबल सहित अन्य क्षेत्रीय इलाकों को जोड़कर बना था।
इतिहास में इससे पहले ये राज्य कभी एक प्रशासनिक इकाई के अंतर्गत नहीं रहा था। प्राचीन काल में मध्य प्रदेश का एक बड़ा हिस्सा दण्डकारण्य कहलाता था। वर्तमान छत्तीसगढ़ उस समय कौशल कहलाता था तथा महाकौशल के उत्तरी जिलों का समावेश 'डाहल" के अंतर्गत था।
बस्तर का राज्य चक्रकूट या भ्रमरकूट कहलाता था। मालवा क्षेत्र अनूप और अवंति कहलाता था। बुंदेलखंड चेदि था, जिसे जेजाक भुक्ति या जुझौती भी कहा जाता रहा। बघेलखंड श्री चेदि का ही एक भाग था जिसे भट्टावेल या भट्टदेश कहा जाता था।
इतने विविध शासनों के कारण इन इलाकों के लोगों का एक प्रशासनिक सत्ता में रह पाना मुश्किल था। मगर कठोरता से लिए गए निर्णय ही इतिहास को दिशा देते हैं, लिहाजा भारी विविधताओं के बावजूद इन तमाम इलाकों की जनता को एक शासन के बैनर तले लाने का यत्न किया गया।
अंतत: मध्य प्रदेश बना और बहुत सारे मनमुटावों, सवालों, खुरापातों और अंदरूनी पक्षपातों के बावजूद सब एक छत्र के तले आ गए। फिर धीरे-धीरे पुरानी गैरजरूरी पहचान और अस्मिताएं पीछे छूटती चली गईं और इस शानदार प्रदेश ने अपनी जनता का दिल जीतते हुए उनके मन में एक अच्छे प्रदेश की छवि बना ली।
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