जबलपुर। घरों से भागे या गुम हुए बच्चों को आसानी से खोज निकालने के लिए भारत सरकार ने 'द मिसिंग चाइल्ड ट्रैकिंग सिस्टम' नाम का पोर्टल बनाया है। महिला एवं बाल विकास विभाग ने 'अनमोल-टू' नाम की वेबसाइट भी तैयार की है, लेकिन गुम बच्चों को आसानी से ट्रेस करने ये सिस्टम भी फिलहाल नाकाफी है।
गुम बच्चों को खोजने या उनके घर तक पहुंचाने 'गूगल' का ही सहारा लिया जा रहा। गुम व अनाथ बच्चों को आश्रय देने वाली गोकलपुर स्थित संस्था बालगृह बच्चों को उनके घर पहुंचाने यहीं फंडा अपना रही है।
मजेदार बात ये है कि गूगल मैप की मदद और खुद के द्वारा गए प्रयासों से बालगृह के अधिकारियों ने पिछले 5 महीनों में 51 गुम बच्चों में से 44 बच्चों को उनके बिछड़े परिवार से भी मिलवा दिया है।
गूगल से ऐसे कर रहे सर्च
- रेलवे स्टेशन, पुलिस या चाइल्ड लाइन में मिला गुम बच्चा बालगृह पहुंचाया जाता है। ऐसे बच्चों की काउंसलिंग की जाती है। बच्चे द्वारा बताई गई जानकारी के आधार पर गूगल मैप में उनके शहर, मोहल्ले को सर्च करते हैं। फिर वहां के अधिकारी, शिक्षक से कन्फर्म कर उनके परिजनों से संपर्क करते हैं।
-गांव के मामलों में एनआईसी और एमआईएस पोर्टल की मदद से सरपंच, सचिव, आंगनबाड़ियों से संपर्क कर जानकारी ली जाती है। फिर बच्चों को उनके परिवार तक पहुंचाया जाता है। हालांकि ये सिस्टम मूकबधिर बच्चों को घर तक पहुंचाने नाकाफी है।
अजमेर के बच्चे को इसी फंडे से घर पहुंचाया
गूगल की मदद से बालगृह में पिछले 4 साल से रह रहे एक बच्चे को हाल ही में उसके परिजनों तक पहुंचाया गया। बच्चा अजमेर का रहने वाला था पर गुम कोलकाता से हुआ था। बच्चे के बताए मुताबिक पहले गूगल में उसका मोहल्ला फिर उसका स्कूल खोजा गया फिर वहां के शिक्षक से बात कर उसके परिजनों का पता लगाया गया। अधिकारियों का दावा है कि झारखंड, बिहार से आए 4 बच्चों को भी इसी तरीके से घर तक पहुंचाया गया।
मिसिंग चाइल्ड ट्रैकिंग सिस्टम का इस्तेमाल नहीं
मिसिंग चाइल्ड ट्रैक सिस्टम में गुम बच्चों की पूरी जानकारी फोटो सहित दर्ज की जाती है। यदि मप्र का बच्चा दूसरे राज्य में पहुंच गया और उसकी एंट्री मप्र के किसी जिले में की गई है। दूसरे राज्य में भी यदि इसी सिस्टम में एंट्री की गई है तो नाम सर्च करते ही उसी नाम के सभी बच्चों की जानकारी आपके सामने आ जाएगी।
ये है खामी
इस सिस्टम की खामी ये है कि बच्चे की सही लोकेशन ट्रेस नहीं हो पाती। उदाहरण के लिए यदि कोई बच्चा रहने वाला बालाघाट का है। छिदंवाड़ा में गुम है और वे जबलपुर स्टेशन में मिला है तो उसकी एंट्री बालाघाट में दर्ज होगी। जबलपुर में भी छिंदवाड़ा से गुम होना बताया जाएगा।
अनमोल-टू
बच्चों को आश्रय देने वाली रजिस्टर्ड संस्थाओं की जानकारी, बच्चों की पूरी डिटेल इस ऑनलाइन पोर्टल पर अपलोड की जाती है। भोपाल स्तर पर ऑनलाइन इसकी समीक्षा की जाती है। सभी संस्थाओं के ऑनलाइन लिंक होने के कारण ऐसे बच्चों की जानकारी आसानी से सर्च की जा सकती है।
ये है खामी
ये वेबसाइट अभी मप्र में ही संचालित है। इसका इस्तेमाल सिर्फ संबंधित सरकारी संस्थाएं ही कर रहीं। सभी संस्थाएं एक-दूसरे से लिंक तो हैं पर पूरा इस्तेमाल नहीं हो रहा है। वेबसाइट सिर्फ संस्थाओं की जानकारी किए गए कार्यों को लेखा-जोखा दर्ज करने तक सीमित है।
- बालगृह में पुलिस या चाइल्ड लाइन से लाए गए गुमशुदा बच्चे जो 2 से 3 साल से बालगृह में ही थे। गूगल की मदद से उनके घर-पते तलाश कर उनके परिजनों तक पहुंचाया गया है। मिसिंग चाइल्ड ट्रैकिंग सिस्टम और अनमोल-टू से मदद मिलती है, पर वो नाकाफी है। - कविता ऐड़े, अधीक्षक, बालगृह
- मिसिंग चाइल्ड ट्रैकिंग से बच्चों को ट्रेस करने डाटाबेस तैयार किया जा रहा है। इससे गुम बच्चों को खोजने में मदद मिलेगी। - अखिलेश शर्मा, महिला बाल विकास सशक्तिकरण अधिकारी
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