भोपाल। सरकारी स्कूलों का मर्जर (समेकित स्कूल मॉडल) की शुरुआत प्रदेश के बैतूल जिले से हो रही है। इसके तहत दस किलोमीटर के दायरे में आने वाले करीब 14 प्राइमरी-मिडिल स्कूलों को एक ही हाई या हायर सेकंडरी स्कूल में मर्ज किए जाएंगे। यह योजना वित्तीय रूप से सरकार के लिए फायदेमंद साबित होगी। इससे सरकार को प्रत्येक यूनिट पर करीब एक करोड़ रुपए की बचत होगी।
यह बचत शिक्षकों के वेतन, हॉस्टल, रसोई और साइकिल वितरण पर होने वाले खर्चों में कटौती होने से होगी। यही प्रोजेक्ट इसी साल से खंडवा में भी शुरू होगा। विधानसभा में स्कूल शिक्षा मंत्री विजय शाह ने इसकी घोषणा की थी। बैतूल विधायक हेमंत खंडेलवाल के मुताबिक बैतूल बाजार में प्रदेश का पहला समेकित स्कूल खुलेगा, जिसमें छात्रावास, स्पोर्ट्स सुविधाएं, लैब, ऑडिटोरियम सहित कई सुविधाएं होंगी। इसके लिए स्कूल का एक डिजाइन भी तैयार करवाया गया है।
गौरतलब है कि राज्य सरकार निजी स्कूलों जैसी सुविधा देने के लिए बैतूल और खंडवा से यह पायलट प्रोजेक्ट लागू कर रही है, जिसमें 15 प्राइमरी और मिडिल स्कूलों को मर्ज कर एक बड़े स्कूल में ज्यादा सुविधाओं के साथ बच्चों को पढ़ाया जाएगा।
जो स्कूल बंद होंगे, उसके बच्चे उस समेकित स्कूल में पढ़ेंगे और उनके आने-जाने के लिए बस की सुविधा उपलब्ध कराई जाएगी। इस प्रोजेक्ट के तहत वे स्कूल मर्ज किए जा रहे हैं, जिनमें बच्चों की संख्या कम है। इन स्कूलों में पढ़ाने वाले शिक्षकों को भी समेकित स्कूल समेत अन्य स्कूलों में ट्रांसफर किया जाएगा।
विधायक खंडेलवाल ने बनाई थी योजना, 19 शिक्षक कम लगेंगे
मूल रूप से समेकित स्कूलों की योजना को बैतूल विधायक हेमंत खंडेलवाल ने ही तैयार किया था, जिसे सरकार अब लागू करने जा रही है। समेकित विद्यालय में करीब 26 शिक्षक लगेंगे, जबकि मौजूदा व्यवस्था में 45 शिक्षक काम कर रहे हैं। ऐसे में 19 शिक्षकों के वेतन की 6 लाख 65 हजार रुपए की हर महीने बचत होगी। वहीं हॉस्टल और रसोई के खर्च में हर महीने 80 हजार रुपए की बचत होगी। अन्य खर्चों को मिलाकर साल भर में समेकित विद्यालय से करीब 96 लाख रुपए की बचत होने की संभावना है।
दिग्विजय सरकार ने खोले थे हर एक किमी पर स्कूल
प्रदेश की दिग्विजय सिंह सरकार ने शिक्षा गारंटी योजना शुरू की थी। जिसके तहत हर एक किमी पर प्राइमरी और तीन किमी पर मिडिल स्कूल खोले गए थे। इन स्कूलों के लिए पांच सौ रुपए प्रतिमाह पर गुरुजियों की भर्ती की गई थी। इसके पीछे सरकार का तर्क था कि हम हर बच्चे तक स्कूल पहुंचाने की कोशिश कर रहे हैं। जबकि भाजपा सरकार इसके विपरीत छोटे स्कूलों को खत्म कर रही है।
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