भोपाल। मजबूत प्रशासक, कुशल संगठनकर्ता, रणनीतिकार और पर्यावरणविद के रूप में अनिल माधव दवे ने जो पहचान बनाई वो उनके बहुआयामी व्यक्तित्व का सबूत है, लेकिन दवे ऐसे वक्त दुनिया छोड़ गए जब उनकी सबसे ज्यादा जरूरत थी। नर्मदा संरक्षण के महत्व को उन्होंने बहुत पहले ही समझ लिया था।
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने नर्मदा के दोनों ओर पेड़ लगाने की जो योजना तैयार की है, ठीक वैसी ही योजना दवे ने 9 साल पहले बना ली थी। उन्होंने नर्मदा संरक्षण के लिए मनरेगा के तहत हरियाली चुनरी योजना का प्रस्ताव दिया था, जिसके तहत नर्मदा के दोनों ओर पेड़ लगाने की योजना थी। हालांकि यह योजना उस वक्त लागू नहीं हो पाई और फाइलों में उलझकर रह गई। 2003 में दिग्विजय सिंह को हराने में भी अनिल माधव दवे की सबसे महत्पूर्ण भूमिका थी। इसके बाद ही उनकी कुशल रणनीतिकार के रूप पहचान बनी।
नदी और पर्यावरण संरक्षण के लिए जाने जाने वाले राजनेता अनिल माधव दवे का गुरुवार को निधन हो गया।शुक्रवार को उनका अंतिम संस्कार होशंगाबाद के नजदीक नर्मदा किनारे बांद्राभान में किया जाएगा। उन्होंने बांद्राभान में ही अपने अंतिम संस्कार की इच्छा जताई थी।
राज्य सरकार ने दवे के निधन पर दो दिन का राजकीय शोक घोषित किया है, इस दौरान सरकार के सभी कार्यक्रम रद्द कर दिए गए हैं। वहीं होशंगाबाद में आधे दिन का अवकाश घोषित किया गया है। अनिल माधव दवे के दादा दादासाहब दवे जनसंघ मप्र के पहले अध्यक्ष थे। दवे नर्मदा समग्र नाम के एनजीओ के संयोजक थे। यह एनजीओ नर्मदा संरक्षण के लिए काम करता है।
मेरे नाम पर कोई स्मारक, पुरस्कार या प्रतियोगिता न हो
दवे ने वर्ष 2012 में अपना इच्छा पत्र लिखा था, जिसमें उन्होंने मृत्यु के बाद की कुछ इच्छाएं जाहिर की थीं। दवे ने कहा था कि मेरा दाह संस्कार बांद्राभान में किया जाए। उत्तर क्रिया के रूप में सिर्फ वैदिक कर्म हो। कोई दिखावा या आडंबर न हो। मेरी स्मृति में कोई भी स्मारक, प्रतियोगिता जैसे विषय न चलाएं। जो मेरी स्मृति में कुछ करना चाहते हैं वे पौधे रौपने और उसे बड़ा करने का काम करें। इसमें भी मेरे नाम का उपयोग न करें।
जावली : चुनावी राजनीति में सबसे पहले दिया वार रूम का कांसेप्ट
अनिल दवे को भाजपा में चुनाव प्रबंधन का महारथी माना जाता था। 2003 के विधानसभा चुनाव में भाजपा की सरकार बनाने में उनके चुनाव प्रबंधन ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। चुनावी राजनीति में वार रूम की अवधारणा देने वाले दवे पहले व्यक्ति थे। उन्होंने तत्कालीन नेता प्रतिपक्ष गौरीशंकर शेजवार के बंगले में चुनाव के लिए एक वार रूम बनाया, जिसको जावली नाम दिया गया। अनिल दवे शिवाजी से प्रभावित थे और वार रूम के लिए जावली नाम भी वहीं से मिला। इस वार रूम में दिग्विजय सिंह को शिवाजी के दुश्मन अफजल शाह का नाम दिया गया। उल्लेखनीय है कि शिवाजी ने अफजल शाह को जावली नाम के जंगल में घेरकर मारा था। अनिल दवे इस वार रूम में महत्वपूर्ण सदस्यों में से एक थे।
श्रीमान बंटाढार का नामकरण
अनिल माधव दवे ने ही विधानसभा चुनावों में दिग्विजय सिंह को श्रीमान बंटाढार का नाम दिया था। दिग्विजय सिंह को इसी नाम से संबोधित कर भाजपा ने चुनाव प्रचार किया था। 2003, 2008 और 2013 के विधानसभा चुनाव में भाजपा के चुनावी प्रबंधन की जिम्मेदारी अनिल दवे ने ही संभाली और पार्टी को जीत दिलाई। उन्हें पार्टी में बूथ लेवल मैनेजमेंट के लिए भी जाना जाता है। 2003 में भाजपा में आने से पहले दवे संघ प्रचारक के रूप में काम करते थे। पार्टी में उन्हें कुशल संगठक माना जाता है।
छात्र संघ चुनाव में हेलीकॉप्टर से प्रचार करने वाले को हराया
अनिल माधव दवे ने इंदौर के गुजराती कॉलेज से एमकॉम किया। उस समय छात्र संघ चुनाव में उन्होंने पंकज संघवी के खिलाफ चुनाव लड़ा था। पंकज संघवी ने छात्र संघ चुनाव में हेलीकॉप्टर से कॉलेज में पर्चे बांटे थे, जबकि अनिल दवे छात्रों से जमीनी संपर्क कर बेहद कम खर्च में चुनाव जीत कॉलेज के प्रेसीडेंट बने।
18 घंटे में विमान से पूरी की थी नर्मदा यात्रा
कम ही लोगों को पता है कि अनिल दवे अमेच्योर पायलट थे। दवे ने एनसीसी एयर विंग कैडेट के तौर पर हवाई जहाज उड़ाना सीखा था। उन्होंने नौसेना विमान से 18 घंटे में नर्मदा के उद्गम स्थल से अंतिम छोर तक यात्रा की थी, ऐसा करने वाले वे पहले व्यक्ति थे। इसके बाद उन्होंने नाव से 19 दिन में नर्मदा की यात्रा की थी।
विश्व हिंदी सम्मेलन के आयोजक
2015 में भोपाल में हुए विश्व हिंदी सम्मेलन के आयोजन की जिम्मेदारी अनिल माधव दवे की ही थी। वे आयोजन समिति के अध्यक्ष थे और शानदार आयोजन का श्रेय उन्हें ही दिया गया। इसके बाद दवे सिंहस्थ के दौरान उज्जैन में आयोजित वैचारिक महाकुंभ के सूत्रधार रहे।
अनिल माधव दवे : एक परिचय
जन्म : 6 जुलाई 1956
स्थान : बड़नगर
पिता का नाम : माधव लाल दवे
शिक्षा : एमकॉम, गुजराती कॉलेज, इंदौर
सांसद : 2009 में पहली बार राज्य सभा सदस्य बने।
केंद्रीय मंत्री : 5 जुलाई 2016 को पहली बार केंद्रीय राज्य मंत्री बने।
एनजीओ : नर्मदा समग्र नाम के एनजीओ से नर्मदा नदी की सफाई और संरक्षण के काम किए।
पुस्तकें : सृजन से विसर्जन तक, फ्रॉम अमरकंटक टू अमरकंटक, संभल के रहना घर में छुपे हुए गद्दारों से, चंद्रशेखर आजाद, शताब्दी के पांच काले पन्ने, नर्मदा समग्र यात्रा वृतांत, समग्र ग्राम विकास, बियांड ओपन हैगन किताबें लिखीं।
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