नई दिल्ली। पहले बैंकों में कैशियर के पास पासबुक प्रिंट करने के लिए एक व्यक्ति बैठा रहता था, जो खाते में पैसे डालने या निकालने के बाद उसकी इंट्री पासबुक में करता था। मगर, आटोमैटिक प्रिंटर मशीन के आने के बाद से पिछले एक दशक में यह मैनुअल काम लगभग खत्म हो गया है।
इसके साथ ही जगह-जगह एटीएम खुलने, ऑनलाइन ट्रांजेक्शन होने और डिजिटल करेंसी का चलन बढ़ने के बाद से कैशियर का काम भी खत्म होता जा रहा है। कभी बैंकिंग इंडस्ट्री सबसे ज्यादा नौकरियां मुहैया कराने वाला क्षेत्र हुआ करता था।
इंफॉर्मेशन टेक्नोलॉजी के बढ़ने के साथ हा इस क्षेत्र में रोजगार के अवसर दिनों-दिन बढ़ते जा रहे थे। मगर, अब इसका उल्टा होता जा रहा है और टेक्नोलॉजी की मदद से इंसानों की तुलना में काम की रफ्तार तेज हो रही है और रोजगार के अवसरों में कमी होती जा रही है।
अब पासबुक अपडेशन, कैश डिपॉजिट, नो योर कस्टमर का वैरीफिकेशन, सैलरी अपलोड्स डिजिटल होते जा रहे हैं और नौकरियां कम होती जा रही हैं। प्राइवेट सेक्टर के बैंक जैसे एक्सिस बैंक, एचडीएफसी और आईसीआईसीआई रोबोट्स को अपनाकर टेक्नोलॉजी की हदों को बढ़ा रहे हैं।
वे केंद्रीयकृत ऑपरेशन्स के जरिए कई सारी चीजें जैसे लोन प्रॉसेसिंग और वित्तीय उत्पाद कस्टमर्स को बेच रहे हैं। इससे मैनुअल काम की जरूरत खत्म होती जा रही है। अब 75 फीसद लोग चेकबुक के लिए आवेदन ऑनलाइन करते हैं, जबकि पहले इसके लिए उन्हें बैंक की ब्रांच में आना होता था।
नकद जमा करने के लिए भी मशीनें लग गई हैं और कैश निकालने के लिए एटीएम पहले से ही मौजूद हैं, तो कैशियर की जरूरत खत्म हो गई है। पहले हर महीने सैलरी अपलोड करने के लिए कई लोगों की जरूरत होती थी, अब यह काम भी आटोमेडेट होता जा रहा है।
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