Thursday, 22nd May 2025

कम ब्याज दर के बावजूद कंपनियों को नहीं मिल पा रहा सस्ता कर्ज

Mon, May 1, 2017 6:20 PM

नई दिल्ली। बैंकों की तरफ से कर्ज की दरों में कमी आने के बावजूद उद्योग अभी भी सस्ते कर्ज से महरूम हैं। कंपनियों का मानना है कि वे कर्ज की निचली दरों का फायदा उठाने की स्थिति में अभी नहीं हैं। हालांकि कर्ज की लागत को परेशानी बताने वाली कंपनियों की संख्या पिछले साल के मुकाबले इस साल घटी है।

फिक्की के नवीनतम बिजनेस कॉन्फिडेंस सर्वे के नतीजों से संकेत मिलता है कि नोटबंदी के कदम का अर्थव्यवस्था पर असर अनुमान के मुकाबले काफी तेजी से कम हुआ है। साथ ही अर्थव्यवस्था में नकदी बढ़ाने (रीमोनेटाइजेशन) से कॉरपोरेट सेक्टर के लिए हालात अब सामान्य होते लग रहे हैं।

सर्वे के मुताबिक कारोबार जगत का भरोसा नए सिरे से बढ़ता दिख रहा है। नोटबंदी से मांग सिकुड़ जाने की वजह से पिछली तिमाही में इस भरोसे को काफी चोट पहुंची थी। सर्वे में हिस्सा लेने वाली कंपनियों का कहना है कि मौजूदा दशाओं और प्रदर्शन स्तर में सुधार हुआ है। अगले छह महीनों में उन्हें बेहतर बिक्री की उम्मीद है।

इसे मौजूदा साल में बेहतर आर्थिक विकास का संकेत माना जा सकता है। फिक्की उद्योग जगत के बीच हर तिमाही में बिजनेस कॉन्फिडेंस सर्वे कराता है। इसमें सभी सेक्टर और व्यापक भौगोलिक क्षेत्र की कंपनियां शामिल होती हैं। ताजा सर्वेक्षण मार्च-अप्रैल, 2017 में किया गया है। इसमें करीब 185 कंपनियों ने हिस्सा लिया है।

ब्याज की ऊंची दरों के चलते पिछले कुछ वर्ष उद्योग जगत के लिए काफी भारी गुजरे। लेकिन कर्ज की दरों को नीचे लाने के लिए रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने जनवरी, 2015 और अक्टूबर, 2016 के बीच रेपो रेट में 1.75 फीसद तक की कटौती की। इसके बाद बैंकों ने भी अपनी कर्ज दरों में कमी की है।

इन सब हालात को देखते हुए सर्वे में शामिल कंपनियों से यह पूछा गया कि क्या वे हाल में बैंकों द्वारा कर्ज दरें घटाने का कोई फायदा उठाने की स्थिति में हैं? अचरज की बात है कि करीब 67 फीसद कंपनियों ने इसका नकारात्मक जवाब दिया।

इससे संकेत मिलता है कि ज्यादातर कंपनियों को कम दर पर कर्ज उपलब्धता का फायदा नहीं मिल पा रहा है, लेकिन जिन कंपनियों ने यह स्वीकार किया कि उन्हें घटती ब्याज दर का फायदा मिला है, उन्होंने बताया कि उन्हें कर्ज दर में 0.10 से लेकर दो फीसद तक का लाभ मिला है।

इसी तरह कर्ज की बात करें तो, सर्वे में यह शिकायत करने वालों की संख्या में गिरावट आई है कि कर्ज की उपलब्धता और लागत ने उनके कदम रोक रखे हैं।

मौजूदा सर्वे में हिस्सा लेने वाली 39 फीसद कंपनियों ने यह बताया कि कर्ज की लागत उनके लिए परेशानी की बात है। पिछले सर्वे में 43 फीसद कंपनियों ने ऐसी बात कही थी।

प्रदर्शन के बारे में बात करें तो अप्रैल, 2017 से सितंबर, 2017 की अवधि के लिए करीब 65 फीसद कंपनियां यह उम्मीद कर रही हैं कि उनकी बिक्री अच्छी रहेगी।

42 फीसद फर्मों को मुनाफे में बढ़त की उम्मीद है, जबकि 40 प्रतिशत को मौजूदा स्तर से ज्यादा निवेश की। 31 फीसद कंपनियों को मौजूदा स्तर से ज्यादा निर्यात होने की उम्मीद है।

जबकि 27 फीसद कंपनियां अपने वर्कफोर्स को बढ़ाने के लिए और भर्ती करने की तैयारी कर रही हैं। अर्थव्यवस्था में मांग की स्थिति में सुधार हो रहा है, लेकिन कंपनियां अभी भी उस बिंदु से दूर हैं, जहां वे कीमत के मामले में अपनी मर्जी से कुछ निर्णय ले सकें।

कच्चे माल की लागत बढ़ती जा रही है। मौजूदा सर्वे में शामिल हर 10 में से करीब छह कंपनियों ने यह कहा कि कच्चे माल की लागत उनके कारोबारी प्रदर्शन में अड़चन बन रही है।

इससे कंपनियां कीमतों के मामले में पुनर्विचार को मजबूर हो रही हैं। कंपनियों को कीमत के मोर्चे पर कुछ मनमाफिक करने में अभी नौ से 12 महीने का समय लग सकता है, क्योंकि वे अब भी अपनी पूरी क्षमता का इस्तेमाल नहीं कर रही हैं।

कंपनियों की क्षमता के इस्तेमाल की स्थिति में भी सुधार हुआ है। ताजा सर्वे में 43 फीसद कंपनियों ने माना है कि वे 75 प्रतिशत तक क्षमता का इस्तेमाल कर रही हैं। पिछली तिमाही में कंपनियों की यह संख्या 40 फीसद थी।

नोटबंदी का असर काफी हद तक कम हो गया है, लेकिन आर्थिक प्रदर्शन में सुधार से तैयार होने वाले स्वाभाविक वातावरण की गति धीमी है।

पिछले सर्वे में करीब 80 फीसद फर्मों ने कहा था कि नोटबंदी की वजह से मांग सिकुड़ी है। लेकिन मौजूदा सर्वे में इस आंकड़े में गिरावट आई है। लेकिन अब भी यह करीब 60 फीसद पर टिका हुआ है।

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