नई दिल्ली। दिल्ली हाई कोर्ट ने टाटा संस द्वारा जापान की प्रमुख दूरसंचार कंपनी एनटीटी डोकोमो को क्षतिपूर्ति के तौर पर 1.17 अरब डॉलर देने के फैसले को कायम रखा है। संयुक्त वेंचर में विदेशी कंपनी की हिस्सेदारी खरीदने के लिए खरीदार को खोजने में उसके विफल रहने के कारण ऐसा किया गया है।
अदालत ने कहा कि इस राशि का भुगतान भारत में प्रभावी हो सकता है। इसके लिए भारतीय रिजर्व बैंक की विशेष अनुमति लेने की कोई जरूरत नहीं है।
जस्टिस एस मुरलीधर ने अपने फैसले में मामले में हस्तक्षेप संबंधी आरबीआइ की याचिका को भी खाजिर कर दिया है। कोर्ट का कहना है कि आरबीआइ भुगतान में पार्टी नहीं है।
डोकोमो और टाटा को इस मामले पर आर्बिटे्रशन के लिए जाना पड़ा था। वजह यह थी कि भारतीय कंपनी संयुक्त उद्यम टाटा टेलीसर्विसेज (टीटीएसएल) में जापानी दूरसंचार कंपनी की 26.5 फीसद हिस्सेदारी के लिए खरीदार नहीं खोज पाई थी। दोनों कंपनियों के बीच हुए शेयरधारिता करार के तहत डोकोमो के इस उपक्रम से पांच साल के अंदर निकलने पर टाटा को खरीदार खोजना था।
लंदन कोर्ट ऑफ इंटरनेशनल आर्बिट्रेशन (एलसीआए) ने जून, 2016 में डोकोमो के पक्ष में फैसला सुनाया था। साथ ही टाटा से करार की शर्तों को पूरा न कर पाने के कारण क्षतिपूर्ति के तौर पर जापानी कंपनी को 1.17 अरब डॉलर देने को कहा था।
हालांकि, टाटा ने भुगतान करने में आरबीआइ की ओर से अनुमति न मिलने का हवाला दिया था। इस भुगतान को प्रभावी कराने के लिए डोकोमो ने दिल्ली हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। बाद में दोनों कंपनियों ने टीटीएसएल के संबंध में दो साल पुराने विवाद को निपटाने के लिए एक समझौता किया था। शुक्रवार को कोर्ट ने टाटा संस और एनटीटी डोकोमो के बीच हुए इसी निपटान समझौते को सही ठहराया।
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