उमा भारती ने संन्यास दीक्षा के 30 वर्ष पूरे होने पर पारिवारिक बंधन से मुक्त होने का लिया संकल्प, कहलाएंगी 'दीदी मां'
Sat, Nov 5, 2022 9:26 PM
भोपाल। मध्यप्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती आजकल अपनी जुबान से कम और इंटरनेट मीडिया के जरिए ज्यादा मुखर हैं। वह अक्सर ट्वीट कर अपने आगामी कार्यक्रमों और योजनाओं के बारे में जानकारी देती रहती हैं। अब उन्होंने अपने आध्यात्मिक जीवन को लेकर अहम बात कही है। उन्होंने एक के बाद एक 17 ट्वीट करते हुए कहा कि वह परिवारजनों को सभी बंधनों से मुक्त करती हैं और खुद भी पारिवारिक बंधनों से मुक्त हो रही हैं। इसके साथ ही उन्होंने घोषणा की कि अब वह 'दीदी मां' कहलाएंगी। मेरे गुरु ने आदेश दिया था कि मैं समस्त निजी संबंधों एवं संबोधनों का परित्याग करके मैं मात्र दीदी मां कहलाऊं और समस्त विश्व समुदाय मेरा परिवार बने। मैंने भी निश्चय किया था कि अपने सन्यास दीक्षा के 30वें वर्ष के दिन मैं उनकी आज्ञा का पालन करने लग जाऊंगी। उमा भारती ने 17 नवम्बर 1992 को उडुपी, कर्नाटक के कृष्ण भक्ति संप्रदाय के महान संत- श्री विश्वेश तीर्थ महाराज (पेजावर स्वामी) से अमरकंटक में नर्मदा के तट पर संन्यास की दीक्षा ली थी। उमा ने कहा, जैन मुनि आचार्य विद्यासागर जी महाराज ही अब वही मेरे लिए गुरुवर हैं।
उमा भारती ने अपने ट्वीट्स में यह कहा.
मेरी संन्यास दीक्षा के समय पर मेरे गुरु ने मुझसे एवं मैंने अपने गुरु से 3 प्रश्न किए, उसके बाद ही संन्यास की दीक्षा हुई। मेरे गुरु के 3 प्रश्न थे- (1) 1977 में आनंदमयी मां के द्वारा प्रयाग के कुंभ में ली गई ब्रह्मचर्य दीक्षा का क्या मैंने अनुशरण किया है? (2) क्या प्रत्येक गुरु पूर्णिमा को मैं उनके पास पहुंच सकूंगी? (3) मठ की परंपराओं का आगे अनुशरण कर सकूंगी? तीनों प्रश्न के उत्तर में मेरी स्वीकारोक्ति के बाद मैंने उनसे जो तीन प्रश्न किए- (1) क्या उन्होंने ईश्वर को देखा है? (2) मठ की परंपराओं के अनुशरण में मुझसे भूल हो गई, तो क्या मुझे उनका क्षमादान मिलेगा? (3) क्या मुझे आज से राजनीति त्याग देना चाहिए?
उमा ने आगे कहा कि पहले दो प्रश्नों के अनुकूल उत्तर गुरुजी द्वारा मिलने के बाद तीसरे प्रश्न का उनका उत्तर जटिल था। मेरे परिवार से संबंध रह सकते हैं, किंतु करुणा एवं दया। मोह या आसक्ति नहीं। साथ ही, देश के लिए राजनीति करनी पड़ेगी। राजनीति में मैं जिस भी पद पर रहूं, मुझे एवं मेरी जानकारी में सहयोगियों को रिश्वतखोरी व भ्रष्टाचार से दूर रहना होगा। इसके बाद मेरी संन्यास दीक्षा हुई। मेरा मुंडन हुआ, मैंने स्वयं का पिंडदान किया। मेरा नया नामकरण संस्कार हुआ, मैं उमा भारती की जगह उमाश्री भारती हो गई।
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