हर साल श्रावण मास की शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को नाग पंचमी मनायी जाती है। हिन्दू धर्म में यह त्योहार बहुत ही महत्वपूर्ण माना गया है। इस खास दिन नाग देव के साथ भगवान शिव की पूजा और रूद्राभिषेक करना शुभ माना जाता है। नागदेवता की पूजा करने से कालसर्प दोष दूर होता है। हिन्दू पंचांग के अनुसार सावन के इस माह यानी 13 अगस्त 2021 शुक्रवार के दिन नागपंचमी पड़ रही है। यह पर्व भी भगवान शिव से संबंधित होता है इस खास तिथि पर भक्त उपवास रखकर शाम के समय नागों की पूजा करते हैं। इस दिन चांदी, सोना, लकड़ी, मिट्टी की कलम व हल्दी चंदन की स्याही से पांच फन वाले नाग बनाए जाते हैं उन्हें दूध, दही, पंचामृत, खीर, कमल आदि से उनकी पूजा की जाती है। चलिए आज हम इस शुभ अवसर पर देश के प्रमुख नाग मंदिरों और उनके महत्व के बारे में जानते हैं।
30 हजार सांपो वाला यह मन्नारसला श्रीनागराज मंदिर केरल के अलप्पुझा जिले के हरीपद गांव में स्थित है। इस मंदिर के रास्ते भर में पेड़ों पर लगभग 30 हजार से ज्यादा सांपों की आकृति बनाई गई है। 16 एकड़ क्षेत्र में फैला यह मंदिर हरे-भरे जंगलों से घिरा हुआ है। नागराज को समर्पित इस मंदिर में नागराज तथा उनकी जीवन संगिनी नागयक्षी देवी की प्रतिमा स्थित है। यह मंदिर दुनियाभर में मन्नार टेंपल के नाम से भी जाना जाता है। यह मंदिर भारत के 7 आश्चर्यों में से एक है। इस मंदिर में उरूली कमजाहथाल नामक विशेष पूजा की जाती है, जो बच्चे की इच्छा रखने वाली महिलाओं के लिए फलदायी मानी जाती है। अगर आप भी कुछ ऐसी ही मन्नत रखते हैं तो एक बार जरूर इस मंदिर में जाकर नागराज के दर्शन करें।
भीलट देव नाग देवता के रूप में भी पूजे जाते हैं।
मध्यप्रदेश के बड़वानी जिले की राजपुर तहसील के नागलवाड़ी गांव में भीलट नाग देव शिखरधाम स्थित है। श्रावण मास में शिखरधाम तक कावड़िए भी जाते हैं। नागपंचमी पर्व पर भीलट देव का 5 दिवसीय मेले का भी आयोजन किया जाता है। ऐसा माना जाता है कि भीलट देव का जन्म माता-पिता की कठोर तपस्या के बाद लगभग 853 वर्ष पूर्व मध्यप्रदेश के हरदा जिले के नदी किनारे स्थित ग्राम रोलगांव पाटन में हुआ था। जब भीलट देव का जन्म हुआ तो शिव पार्वती ने उनके माता पिता से वचन मांगा की मैं तुम्हारे घर पर रोज दूध दही मांगने आऊंगा और आपने जिस दिन मुझे नहीं पहचाना तो इस बालक को उठा ले जाऊंगा।
एक दिन ऐसा ही हुआ और शिव जी बालक को उठाकर ले गए और उस स्थान पर नाग रख दिए। फिर से बालक के माता पिता ने शिव जी की तपस्या की तब शिव जी प्रकट होकर उनसे कहा कि तुमने अपना वादा नहीं निभाया इसलिए आपके पास जो नाग है उसकी पूजा आप दोनो रूप में करो भीलट और नाग के। तब से ही यह भीलट देव दोनो रूप में पूजे जाते हैं।
देश का एक मात्र तक्षक नाग मंदिर
मध्यप्रदेश राज्य के खरगोन जिले में खंडवा रोड पर ग्राम बिलाली से कुंछ ही दूरी पर स्थित नागराज का अतिप्राचीन तक्षक नाग का मंदिर स्थापित है। ऐसी मान्यत है कि तक्षक नाग ने धनवंतरी को डसा था। नाग ने यह उस चमत्कार के बाद किया जब यहां मौजूद एक वृक्ष को फूंफकार कर सुखा दिया गया था। इस सूखे पेड़ को ऋ़षि धनवंतरी ने पुनः हरा भरा कर दिया था। तक्षक नाग को अशंका थी कि वे राजा परीक्षित को पुनः जीवित कर सकते हैं। इस दौरान उनकी दो शिष्या सगुरा व भगुरा को भी भ्रम में रखकर तीर्थजल नहीं लाने दिया।
तत्पश्चात तक्षक नाग ने न केवल परीक्षित को डसा और सात दिनों बाद उनकी मृत्यु हो गई थी। शमिक ऋषि पर तपस्या के दौरान राजा परीक्षित ने उनके गले में मृत सर्प डाल दिया था। इस कृत्य से क्रोधित शमिक ऋषि के पुत्र श्रृंगी ऋषि ने राजा परीक्षित को श्राप दिया था कि उन्हें सातवें दिन तक्षक नाग डसेगा।
साल में सिर्फ एक बार ही खुलता है ये नाग मंदिर
मध्यप्रदेश के उज्जैन के महाकाल मंदिर परिसर में नागचंद्रेश्वर का मंदिर स्थित है। इस मंदिर की खासियत यह है कि ये सिर्फ साल में एक ही बार नाग पंचमी के दिन खुलता है। ऐसा माना जाता है कि इस मंदिर में भगवान नागचंद्रेश्वर का दर्शन करने के बाद व्यक्ति को भविष्य में सर्प से कोई भय नहीं रहता। ऐसा करने से वह सर्पदोष से मुक्त हो जाता है। इस दिन यहां पर कालसर्प दोष दूर करने के लिए लोग विशेष पूजा करते हैं।
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