गुरुवार, 11 फरवरी को माघ मास की अमावस्या है। इसे मौनी अमावस्या कहा जाता है। गुरुवार को ये तिथि होने से इसका महत्व और अधिक बढ़ गया है। अमावस्या पर पितर देवताओं के लिए धूप-ध्यान विशेष करने की परंपरा है। उज्जैन के ज्योतिषाचार्य पं. मनीष शर्मा के अनुसार अमावस्या पर चंद्र दिखाई नहीं देता है, लेकिन उसकी महा नाम की कला पूरे प्रभाव में होती है।
हिन्दी पंचांग के एक माह में दो पक्ष होते हैं। एक पक्ष 15 दिनों का होता है। शुक्ल पक्ष में चंद्र की कलाएं बढ़ती हैं यानी चंद्र बढ़ता है। कृष्ण पक्ष में चंद्र घटता है और अमावस्या पर दिखाई नहीं देता है।
पं. शर्मा के अनुसार चंद्र की सोलह कलाएं बताई गई हैं और सोलहवीं कला को अमा कहा जाता है। इस तिथि पर सूर्य और चंद्र एक साथ एक ही राशि में स्थित होते हैं। इस संबंध में स्कंदपुराण में लिखा है कि-
अमा षोडशभागेन देवि प्रोक्ता महाकला।
संस्थिता परमा माया देहिनां देहधारिणी।।
अर्थ- अमा को चंद्र की महाकला गया है, इसमें चंद्र की सभी सोलह कलाओं की शक्तियां रहती हैं। इस कला का क्षय और उदय नहीं होता है।
अमावस्या तिथि के स्वामी पितृदेव माने गए हैं। इसलिए अमावस्या पर पितरों की तृप्ति के लिए तर्पण, श्राद्ध कर्म और, धूप-ध्यान और दान-पुण्य करने का महत्व है। अमावस्या पर किसी पवित्र नदी में स्नान करने की परंपरा है। इस दिन मंत्र जाप, तप और व्रत करने की परंपरा है। स्नान के बाद सूर्यदेव को जल चढ़ाएं और ऊँ सूर्याय नम: मंत्र का जाप करना चाहिए।
इस दिन किसी शिव मंदिर में तांबे के लोटे में जल भरें और शिवलिंग पर चढ़ाएं। ऊँ नम: शिवाय मंत्र का जाप करें। हनुमानजी के सामने दीपक जलाएं और हनुमान चालीसा का पाठ करें।
इस तिथि पर जरूरतमंद लोगों को काले का दिन दान करें। गुरु ग्रह के लिए बेसन के लड्डू शिवलिंग पर चढ़ाएं। चने की दाल का दान करें। सूर्यास्त के बाद तुलसी के पास दीपक जलाएं और परिक्रमा करें। ध्यान रखें तुलसी को स्पर्श न करें। शाम को तुलसी को छूना नहीं चाहिए।
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