रविवार, 7 फरवरी को माघ महीने के कृष्णपक्ष की षट्तिला एकादशी है। इस दिन तिल खाने और उनका दान करने के साथ ही पूजा में इस्तेमाल करने की परंपरा है। स्कंद पुराण के वैष्णव खंड के एकादशी महात्म्य में इस एकादशी व्रत का महत्व बताया गया है। महाभारत में भी बताया गया है कि इस एकादशी पर तांबे के लोटे में तिलभर दान करने से कई यज्ञों का फल मिल जाता है। पद्म और विष्णु धर्मोत्तर पुराण के मुताबिक, इस दिन तिलों का छ प्रकार से प्रयोग करने से हर तरह के पाप खत्म हो जाते हैं।
छह तरह से तिल का उपयोग
1. तिल के तेल से शरीर की मालिश की जाती है।
2. पानी में तिल मिलाकर नहाते हैं।
3. तिल मिला पानी पिया जाता है।
4. तिल से बनी मिठाइयां खाई जाती हैं।
5. तिल से हवन में आहुतियां दी जाती है।
6. सिर्फ तिल या तिल से बनी चीजों का दान किया जाता है।
षटतिला एकादशी पर पानी में तिल डालकर नहाने, तिल का उबटन लगाने, तिल मिला पानी पीने और तिल खाने से सेहत अच्छी रहती है। ठंड की वजह से होने वाली बीमारियों से भी बचा जा सकता है। उबटन और तिल के पानी से नहाने पर स्कीन अच्छी रहती है। तिल का दान और उनसे हवन करने का खास महत्व है।
व्रत और पूजा विधि
एकादशी पर सूर्योदय से पहले नहाकर साफ कपड़े पहने और भगवान विष्णु की मूर्ति के सामने बैठकर व्रत का संकल्प लें।
व्रत करने वाले को दिनभर अन्न नहीं खाना चाहिए। अगर ऐसा न हो पाए तो एक समय फलाहार कर सकते हैं। इसके बाद भगवान विष्णु की विधि-विधान से पूजा करें।
पूजा किसी ब्राह्मण से करवाना चाहिए। भगवान विष्णु की मूर्ति को पंचामृत से नहलाएं। पूजा करते वक्त ऊँ नमो भगवते वासुदेवाय मंत्र का जाप करें।
भगवान विष्णु को फूल, फल और तिल का नैवेद्य लगाएं और दीपक जलाएं।
इसके बाद व्रत की कथा सुनें। दूसरे दिन यानी द्वादशी पर ब्राह्मणों को भोजन कराएं और दान देकर आशीर्वाद प्राप्त करें।
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