युवाओं का कौशल विकास यानी उन्हें हुनरमंद बनाने के लिए औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थान (आईटीआई) शुरू किए गए। इस वक्त राजधानी में 3 आईटीआई हैं, लेकिन यहां दी जाने वाली ट्रेनिंग ही 50-50 साल पुरानी मशीनों की वजह से प्रासंगिक नहीं रह गई है। इन संस्थानों में मशीनें तो पुरानी हैं ही, छात्रों के मुताबिक ट्रेनिंग देने का तरीका भी पुराना ही है। जो ट्रेड पूरी तरह कंप्यूटर और साफ्टवेयर पर शिफ्ट हो गए, उनकी ट्रेनिंग अब ब्लैकबोर्ड पर और मैनुवल तरीके से दी जा रही है। इन्हें अपग्रेड करने की बात कई बार उठी है, लेकिन अब तक हालात सुधरने नहीं हैं।
राजधानी रायपुर में अभी सड्डू में दो और माना में एक आईटीआई संस्थान काम कर रहे हैं। माना कैंप में खुले इस संस्थान में आज भी लेथ मशीनों से ही छात्रों को ट्रेनिंग दी जा रही है। भास्कर टीम परिसर में पहुंची तो इनकी बिल्डिंग और क्लासरूम भी पुराने, अंधेरे सीलनभरे कमरे ही हैं। ट्रेनिंग देने वाले एक्सपर्ट बच्चों को हथौड़े और पेचकस से ही काम करना सिखा रहे हैं। खुद छात्रों ने स्वीकार किया कि संभवत: इसी वजह से इन्हें कोर्स पूरा करने के बाद भी इलेक्ट्रीशियन या फिटर से ज्यादा का जाॅब नहीं मिल रहा है। एक प्राचार्य ने नाम नहीं छापने की शर्त पर बताया कि राजधानी के किसी आईटीआई से कोई भी छात्र मल्टीनेशनल तो दूर, देश की बड़ी कंपनियों में नौकरी में नहीं है।
प्रदेश में 175 आईटीआई 20 हजार से ज्यादा सीटें
राज्यभर में करीब 175 सरकारी आईटीआई हैं। इनमें 20 हजार से ज्यादा सीटें हैं। सभी आईटीआई में 35 इंजीनियरिंग ट्रेड और 12 नॉन इंजीनियरिंग ट्रेड हैं। इन संस्थानों में इलेक्ट्रिशियन, फिटर, टर्नर, मोटर मैकेनिक, डीजल मैकेनिक, इंस्ट्रूमेंट मैकेनिक, इलेक्ट्रॉनिक मैकेनिक, रेफ्रिजरेशन एंड एयर कंडिशनिंग (आएसी), ड्राफ्टमैन सिविल, वेल्डर, सर्वेयर, कारपेंटर, कंप्यूटर ऑपरेटर एंड प्रोग्रामिंग (कोपा), स्टेनो हिंदी, स्टेनो इंग्लिश, सीविंग टेक्नोलॉजी आदि की ट्रेनिंग दी जाती है। सभी मशीनें 20 से 40 साल तक पुरानी हैं।
नए जमाने में इतनी पुरानी ट्रेनिंग
ट्रेनिंग के लिए रखे फोर-व्हीलर कबाड़, मशीनें सड़ रही हैं मैदान में
1. आईटीआई माना कैंप
सारी मशीनें 50 साल पुरानी हैं। ऑटोमोबाइल की ट्रेनिंग देने के लिए पुरानी कार-जीप हैं। सब कबाड़ हो चुकी हैं। टेक्नालाॅजी भी बदल चुकी है। कुछ और ट्रेनिंग मशीनें इतनी खराब हैं कि खुले मैदान में छोड़ दी गई हैं। क्लासरूम पुराने सरकारी स्कूल की तरह ही दिखाई देते हैं। दरवाजे टूटे हैं और लैब का और बुरा हाल है। हथौड़ी और पेचकस जैसे औजार अलमारियों में बंद रखे गए हैं। वहां कुछ नए उपकरण पैक दिखे, अब तक खुले नहीं हैं। ट्रेनिंग का माध्यम ब्लैकबोर्ड है। कंप्यूटर पर कोई काम नहीं करवाते।
2. आईटीआई सड्डू
यहां कटिंग एंड टेलरिंग ट्रेड का नाम बदलकर सीविंग टेक्नोलॉजी कर दिया गया, लेकिन सीविंग सिखाने के लिए उन्हीं मशीनों का इस्तेमाल हो रहा है, जो 1975 में लगाई गई थीं। जबकि सिलाई मशीनों की तकनीक भी बदल चुकी है। यहां भी ड्राफ्टमैन सिविल के छात्र हाथ से नक्शे बना रहे हैं, जबकि यह पूरा काम एक दशक पहले से साफ्टवेयर और कंप्यूटर पर शिफ्ट हो चुका है। ट्रेनिंग का सिस्टम 3 दशक से नहीं बदला है। यहां इंजीनियरिंग और नॉन इंजीनियरिंग व्यवसाय के 17 ट्रेड संचालित है। सभी पढ़ाई एक और दो साल के सिलेबस पर आधारित है।
3. महिला आईटीआई
यहां केवल चार ट्रेड में ट्रेनिंग दी जा रही है। स्टेनो हिंदी, कंप्यूटर ऑपरेटर एंड प्रोग्रामिंग, आर्किटेक्चर, इंटीरियर डेकोरेशन। स्टेनो हिंदी और कंप्यूटर ऑपरेटर एंड प्रोग्रामिंग कर रही लड़कियों को बाहर थोड़ी नौकरी भी मिल जाती है, लेकिन आर्किटेक्चर और इंटीरियर डेकोरेशन का प्रशिक्षण चार दशक पुराने तरीकों पर ही चल रहा है। ट्रेनिंग के बाद नौकरी भी नहीं मिलती है, इसलिए इनकी सीटें नहीं भर रही हैं। इस साल इंटीरियर डेकोरेशन की 48 में 14 सीटें ही भर पाई हैं। आर्किटेक्चर की भी 24 में से 12 सीटों में ही प्रवेश हुआ है।
सीधी बात
उमेश पटेल, तकनीकी शिक्षा मंत्री
सवाल:आईटीआई में 20 से 50 साल पुरानी मशीनों से छात्रों को क्या सिखाया जा रहा?
जवाब: पुरानी मशीनें बदल रहे हैं, निजी संस्थाओं की ओर से भी आधुनिक प्रशिक्षण दे रहे हैं।
सवाल: पुरानी मशीनों पर ध्यान क्यों नहीं?
जवाब: प्राइवेट पार्टनर के साथ भी हाईटेक ट्रेनिंग दे रहे। विभाग प्रशिक्षण के लिए कंप्यूटर भी दे रहा।
सवाल: छात्रों को हाईटेक करने या नई मशीनों की खरीदी की कोई योजना है?
जवाब: जहां मशीनें नहीं थी या पुरानी थी वहां चरणबद्ध उपलब्ध करा रहे। पिछले साल ही इलेक्ट्रिकल, मैकेनिकल फिटर आदि में नई मशीनें लग गई हैं। बाकी जगहों के लिए भी मशीनें भेजने 25 करोड़ का बजट है।
सभी संस्थानों से मांगे हैं प्रस्ताव
"राजधानी समेत राज्यभर के आईटीआई संस्थानों को अपग्रेड करने के लिए प्रस्ताव मांगे गए हैं। संस्थानों को हाईटेक या किसी भी तरह की मशीन की जरूरत है उसे पूरा किया जाएगा। पुरानी मशीनें जरूरत के अनुसार लगातार रिप्लेस की जा रही हैं।"
-अवनीश कुमार शरण, डायरेक्टर तकनीकी शिक्षा संचालनालय
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