छत्तीसगढ़ में ठंड के सीजन में टमाटर की बंपर पैदावार होती है। खासकर दुर्ग और जशपुर के इलाकों में। हर साल यहां टमाटर इतने सस्ते हो जाते हैं कि किसानों को तुड़ाई का पैसा भी नहीं निकलता। धमधा में इस बार भी बंपर पैदावार हुई और कई जगह टमाटर फेंके जा रहे हैं, लेकिन जशपुर में अब टमाटर की फसल लेने का तरीका बदला है जिसके कारण किसान फायदे में हैं।
भिलाई : उत्पादन इतना ज्यादा हो गया कि मांग कम हो गई, किसान परेशान
छत्तीसगढ़ में टमाटर का गढ़ कहे जाने वाले धमधा में टमाटर की बंपर पैदावार हो रही है। उत्पादन इतना हो गया कि मार्केट में टमाटर की डिमांड कम पड़ गई है। डिमांड कम पड़ते ही किसानों को रेट मिलना बंद हो गया है। 1 रुपए किलो में टमाटर थोक व्यापारियों को किसान बेच रहे हैं। इससे किसानों को न तो मुनाफा मिल रहा है और न ही टमाटर की पैदावार में आई लागत निकल रही है। दैनिक भास्कर की टीम धमधा के कन्हारपुरी, जाताघर्रा और बेरला के पंडरीतराई गांव में पहुंची, जहां किसान काफी परेशान दिखे। बेरला के किसान छयेश बताते हैं कि कोरोनाकाल के कारण ऐसा पहली बार हुआ है कि दिसंबर से लेकर जनवरी तक टमाटर का निर्यात अन्य राज्यों में नहीं हुआ है। शेष|पेज 8
मार्केट में टमाटर की खपत नहीं है। इस बार नासिक और बैंगलोर से भी टमाटर छत्तीसगढ़ आ रहा है। टमाटर खेत में डंप करने ’और बाजार में रेट नहीं मिलने के पीछे तीसरी बड़ी वजह मौसम भी है। बादल छा जाने के कारण टमाटर में कीट लगने का संकट मंडरा रहा है। इसलिए किसान समय रहते तोड़ रहे हैं। ताकि पेड़ में लगे-लगे टमाटर सड़ न जाएं।
ग्राउंड रिपोर्ट: कीमतें गिरने के बड़े कारण: मौसम की बेरुखी से लेकर ज्यादा प्रोडक्शन और निर्यात नहीं
कन्हारपुरी, धमधा: टमाटर की पैदावारी करने वाले कन्हारपुरी के किसान सुरेश पटेल ने बताया कि इस बार खरीदार नहीं मिल रहे। न लोकल में टमाटर की खपत है और न ही अन्य राज्यों में हम टमाटर भेज पा रहे हैं। इसलिए खेत में ही टमाटर तोड़कर रखे हुए हैं। मार्केट ले जाएंगे तो परिवहन का खर्चा अतिरिक्त लगेगा। अब खेत में ही डंप कर रहे हैं। सरकार किसानों की मदद के लिए आगे आए।
पेंड्रीतराई बेरला: एक सीजन में ही 20 एकड़ एरिया में टमाटर की फसल लेने वाले किसान छयेश कुमार बताते हैं कि इस बार मार्केट के साथ-साथ मौसम ने भी साथ नहीं दिया। बादल छाए रहने की वजह से टमाटर में कीट लगने का संकट है। अगर टमाटर में कीट लगा तो पौधे को नुकसान पहुंचाएगा जिसकी वजह से फसल चौपट हो जाएगी। इसलिए टमाटर को तोड़ रहे हैं। इस चक्कर में भी प्रोडक्शन ज्यादा हो गया है।
जाताघर्रा धमधा: 16 एकड़ में टमाटर की खेती करने वाले किसान धनेश वर्मा परेशान है। धनेश ने बताया कि मार्केट में रेट नहीं मिल रहा है। टमाटर की लागत तो निकल ही नहीं रहा है। टमाटर तोड़ने वाले मजदूरों को देने के लायक रुपए भी नहीं मिल रहे। इस बार अन्य राज्यों में टमाटर नहीं जा रहा है। जबकि हाइब्रिड टमाटर को छत्तीसगढ़ अन्य राज्यों से भेज रहे हैं। इससे लोकल किसानों को काफी नुकसान हो रहा है। जबकि पिछले साल यूपी, बिहार, कोलकाता, दिल्ली, हरियाणा, पश्चिम बंगाल और कर्नाटक तक टमाटर की सप्लाई किए।
हर तरफ से किसानों को मुसीबत, क्योंकि...
कर्ज के लिए बैंक दे रहा नोटिस: टमाटर की फसल के लिए धमधा क्षेत्र के सैकड़ों किसानों ने लोन लिया था। जाताघर्रा के धनेश ने बताया कि उन्होंने 15 लाख रुपए लोन लिया था। उनके जैसे सैकड़ों किसान है। लेकिन बेमौसम बारिश की वजह से टमाटर की फसल बर्बाद हो गई। लेकिन उन्हें बीमा नहीं मिला। बीमा का प्रीमियम हर महीने दिया। जब क्लेम की बारी आई तो उन्हें घुमाने लगे। अब खेत बेचकर लोन चुकाने की नौबत आ गई है।
प्रोसेसिंग यूनिट में भी खपत नहीं: टमाटर के नुकसान को देखते हुए कुथरेल और सिमगा में प्राइवेट कैचअप प्लांट की स्थापना की गई। तब ये तय किया गया था कि दुर्ग जिले के धमधा व आसपास के किसानों का टमाटर यहां प्लांट में बेचा जाएगा। लेकिन लाखों टन उत्पादन वाले इस राज्य में महज सैकड़ों टन की क्षमता वाले प्लांट की स्थापना कर दी गई है। इससे अधिकांश किसानों को राहत नहीं है।
लागत का गणित: 1 किलो टमाटर उत्पादन में 10 रुपए खर्चा लेकिन मिल रहा सिर्फ 1 रुपए
टमाटर उत्पादन करने वाले किसानों को कितना रेट मिलता है, यह जानेंगे तो आपको हैरानी होगी। किसान धनेश बताते हैं कि एक किलो टमाटर पैदावार करने में 10 रुपए तक खर्चा आता है। बड़े स्केल में टमाटर की पैदावार करते हैं इसलिए हर किसान लाखों रुपए खर्च करता है। टमाटर के बीज से लेकर मजदूर, मल्चिंग शेड, पानी, बिजली और खाद-बीज में एक किलो टमाटर के पीछे 10 रुपए तक खर्च हो जाता है। लेकिन मार्केट में हमें सिर्फ 1 रुपए किलो मिल रहा है। यानि कि 9 रुपए का नुकसान सीधा हो रहा है।
एक नजर टमाटर की पैदावार पर
प्रोसेसिंग यूनिट खुलेगी
"टमाटर के लिए कुथरेल में प्रोसेसिंग यूनिट लगाई गई है। टमाटर की पैदावार ज्यादा है तो प्रोसेसिंग यूनिट में संपर्क कर टमाटर खपा सकते हैं। सरकार तीन और प्रोसेसिंग यूनिट खोलने वाली है। जिस पर काम चल रहा है।"
-सुरेश कुमार ठाकुर, डिप्टी डायरेक्टर, उद्यानिकी विभाग, दुर्ग
जशपुर : फसल में बदलाव, अब मिश्रित खेती, उत्पादन घटाकर बढ़ा रहे मुनाफा
जशपुर के पत्थलगांव, बागबहार और कोतबा की बात करें, तो पिछले 40 साल से हर साल यह खबर आती थी कि यहां के किसान टमाटर फेंक रहे हैं, क्योंकि कीमत नहीं मिल पा रही। लेकिन इस बार उसी सीजन में यहां के किसान टमाटर 10 रुपए किलो तक बेच रहे हैं। ये टमाटर एक समय यहां 50 पैसे से एक रुपए किलो तक बिकते थे। दरअसल यहां किसानों ने तकनीक में और फसल लेने के तरीके दोनों में बदलाव किया है। दो साल पहले यहां के किसानों ने मिश्रित खेती करने की सोची। प्रशासन ने भी इसमें साथ दिया। किसानों को इस बात के लिए प्रेरित किया गया कि वो अपनी पूरी जमीन पर टमाटर न लगाएं, बल्कि आधे हिस्से में ही टमाटर लगाएं।
किसानों को दूसरी सब्जियों के उत्पादन से जोड़ने के लिए क्रेडा विभाग की मदद से कई किसानों की बाड़ी में सोलर पंप भी लगाए गए। किसानों ने हर साल हो रहे नुकसान से बचने के लिए मिश्रित खेती को अपना लिया और सिर्फ दो साल के भीतर ही उसके परिणाम सामने आने लगे हैं। अब किसान टमाटर बेचकर भी मुनाफे में हैं और फसल को फेंकने या सड़ने के लिए बाड़ी में छोड़ देने की नौबत नहीं है।
प्रोसेसिंग यूनिट तो लगी ही नहीं...
किसानों को फसल की अच्छी कीमत दिलाने के लिए प्रदेश सरकार और जिला प्रशासन ने कई कदम उठाए। इसकी शुरुआत 2007 में हुई थी। जब तात्कालीन सीएम डॉ.रमन सिंह ने किसानों को टमाटर की अच्छी कीमत दिलाने के लिए पत्थलगांव तहसील के लुड़ेग में टमाटर प्रोसेसिंग यूनिट स्थापित करने की घोषणा की और प्रोसेसिंग यूनिट लगा भी दी, पर चालू होने के चंद महिनों बाद ही उसमें ताला लग गया। आधा क्विंटल प्रति घंटा उत्पादन क्षमता वाली यूनिट को पुराने तकनीक व कम क्षमता होने का हवाला देकर बंद कर दिया। 2015 में टमाटर की कीमत में आए गिरावट के बाद किसानों ने एनएच पर फसल को फेंककर विरोध जताया था।
1980 से हो रहा है टमाटर उत्पादन
1980 में अविभाज्य मध्यप्रदेश के वक्त जब पुष्पा देवी सिंह रायगढ़ लोकसभा की सांसद थीं उस वक्त उनकी विशेष पहल पर किसानों को टमाटर के नए हाईब्रीड बीज दिए गए। किसानों ने मोटे छिलके वाले गुदादार टमाटर उगाना शुरू किया। यहीं से टमाटर के लाभकारी व्यवसाय से किसान जुड़ गए। 1980 में ही पत्थलगांव में तात्कालीन केन्द्रीय मंत्री हरिकिशन शास्त्री पहुंचे थे। जिन्होंने टमाटर उत्पादन की तारीफ की थी और इसे अच्छा बाजार मुहैया कराने की बात कही थी। 2017 तक टमाटर उत्पादन का एरिया 1 लाख 57 हजार एकड़ तक पहुंच गया है। वहीं टमाटर उत्पादक किसानों की संख्या भी अब 11 हजार के पार थी।
बिचौलियों को हटाया
टमाटर का उत्पादन अधिक था तब शुरुआती सीजन में बिचौलिए किसानों की बाड़ी में जाकर पूरा माल खरीद लेते थे। गांव-गांव से टमाटर बाहर की मंडियों में भेज दिया जाता था। पर अब किसान खुद ही टमाटर लेकर मंडी पहुंचते हैं और दाम खुद तय करते हैं।
रायपुर में दो महीने पहले 70-80 रुपए था, लोकल टमाटर बाजार में आया तो अब 5-10 रु. किलो बिक रहा
राजधानी में 5 से 10 रुपए किलो। 20 दिन पहले तक यह टमाटर 25 से 30 रुपए किलो था। लोकल टमाटर के कारण रेट गिरा। बेंगलुरु और नासिक से अभी टमाटर नहीं आ रहा है। यहीं दो महीने पहले टमाटर 70-80 रुपए तक बिका था। रायपुर जिले समेत दुर्ग, कवर्धा व बेमेतरा में स्थानीय किसानों के साथ हरियाणी व गुजराती किसान भी टमाटर की फसल लेते हैं। छत्तीसगढ़ युवा प्रगतिशील किसान संघ के अध्यक्ष हितेश वरु का कहना है कि पिछले कुछ सालों से टमाटर की खेती करने वालों किसानों की संख्या बढ़ी तो नहीं है, कम भी न के बराबर है। इन एरिया में ही 500 से ज्यादा किसान इसकी खेती कर रहे हैं, जिसका दायरा 5000 एकड़ से ज्यादा है।
एक एकड़ में टमाटर की खेती में करीब 1 लाख रुपए का खर्च आता है, अच्छी फसल व दाम रहे तो हर एकड़ में 30-40 टन फसल आ जाता है। 12 महीने में सिर्फ यही खेती होती है, अगस्त में लगाने के साथ मार्च तक चलता है, इसके बाद इसकी सफाई व तैयारी में 3-4 महीने लग जाते हैं। इस बार दिसंबर से रेट कम होने लगा, 22-25 रुपए प्रति किलो ही निकला, अब 2-3 रुपए तक आ गया है। इससे किसानों को घाटा होता है। नवंबर में प्रति एकड़ महीनेभर में मुश्किल से 10 टन ही फसल निकलता होगा, जबकि जनवरी-फरवरी में एक एकड़ से 40 टन तक मिल जाता है, लेकिन कीमत नहीं मिलती है। अब मजदूरी व ढुलाई में पैसा लग जाएगा तो क्यों बेचने जाएंगे।
5 महीने ही लोकल टमाटर पर बाजार, अधिक पैदावार से कीमत कम
राजधानी के डूमरतराई थोक सब्जी बाजार के अध्यक्ष टी श्रीनिवास रेड्डी ने बताया कि प्रदेश में लोकल टमाटर सिर्फ अक्टूबर से फरवरी-मार्च तक ही आते हैं। बाकी के महीनों में बाहरी राज्यों पर डिपेंड रहना पड़ता है। शूरुआत में यहां के टमाटर को कीमत अच्छी मिलती है। इस बार तो थोक में 30 तक प्रति किलो गया। नवंबर से बाहरी टमाटर नहीं आते हैं, उन्हें लागत ही नहीं मिल पाएगी। लोकल व छोटे-छोटे बाजार में स्थानीय टमाटर आने से यहां भी 50-60 टन ही रोज टमाटर आ रहे हैं। इस कारण ही कीमत नहीं मिल रही है, अभी दाम और गिरेंगे। मार्च से बढ़ने शुरू हो जाते हैं।
बिलासुपर में टमाटर थोक में 4 रुपए किलो, किसानों को मिल रहे हैं केवल 2 रुपए, बाजार में 7-8 रुपए
जिले में इन दिनों रोज ही 650 टन टमाटर बिक्री के लिए तिफरा सब्जी मंंडी आ रहा है। इसमें दुर्ग-धमधा से 500 टन तो बिलासपुर जिले से 150 टन टमाटर मंडी में पहुंच रहा है। टमाटर की भारी आवक की वजह से यह थोक में 4 रुपए बिक रहा है। किसानों को प्रति किलो केवल दो रुपए ही मिल रहा है। चिल्हर में टमाटर 7 से 8 रुपए में मिल जा रहा है। किसानों को घाटा हो रहा है लेकिन उनके पास न कोई विकल्प और न उपाय। टमाटर की कीमत इस बार पखवाड़ेभर बाद घटी। पिछले साल दिसंबर के अंत व जनवरी के पहले सप्ताह में टमाटर की कीमत इतनी कम हुई थी। कोरोना काल में टमाटर की खेती करने वाले किसानों को घाटा नहीं हुआ इसलिए इस बार दो हजार हेक्टेयर में टमाटर की खेती हो रही है।
रकबा 30 फीसदी बढ़ा लेकिन किसानों को उपज की कीमत नहीं मिलने से नुकसान हो रहा है। शुरुआत में 10 से 12 रुपए किलो में टमाटर बिक रहा था लेकिन दुर्ग, धमर्धा व बेमेतरा इलाके से टमाटर की भरपूर आवक होने के कारण कीमत घटकर थोक में 4 रुपए तक हो गई है।
कीमत कम होने पर कुछ नहीं कर सकते-सिंह
हर साल टमाटर की कीमत कम होने की वजह से किसानों को घाटा होता है। उद्यानिकी विभाग के डिप्टी डायरेक्टर सीडी सिंह बताते हैं कि हम उत्पादन को तो बढ़ावा दे सकते हैं लेकिन बाजार पर नियंत्रण नहीं कर सकते। कीमत कम होने पर विभाग कुछ नहीं कर सकता लेकिन किसान चाहे तो प्रोसेसिंग यूनिट लगा सकते हैं। शासन द्वारा 25 फीसदी तक सब्सिडी दी जा रही है। पर किसान रुचि नहीं लेते।
समझिए... कीमत का गणित
तिफरा मंडी थोक व्यापारी संघ के अध्यक्ष मुकेश अघिजा बताते हैं कि तुड़ाई पर किसानों की जेब से प्रति कैरेट 10 रुपए, धमधा से यहां लाने पर भाड़ा 30 से 35 रुपए और 5 रुपए कमीशन लगता है। इस तरह 50 रुपए लग जा रहा है। 50 रुपए किसान को मिल रहा है। एक कैरेट में 25 किलो टमाटर होता है यानी दो रुपए किलो किसान को मिल रहा है।
अभी बाहर नहीं जा रहा, इसलिए कीमत नहीं
अभी छत्तीसगढ़ का टमाटर प्रदेश में ही खप रहा है। ओडिशा, बिहार, झारखंड में अच्छा उत्पादन है। यहां के टमाटर की मांग नहीं है। इन प्रदेशों में फरवरी में माल जाएगा। तब तक वहां का माल खत्म हो जाएगा। किसान मनीष कश्यप बताते हैं कि फरवरी में बिहार की मंडियों में मांग होगी। तब अच्छी कीमत मिलेगी। अभी 4 रुपए मिलने पर घाटा हो रहा है।
भास्कर टीम : यशवंत साहू, आशीष मिश्रा, संदीप राजवाड़े, सुनील शर्मा
Comment Now