Friday, 23rd May 2025

संगठन नाराज:विंध्य प्रदेश की मांग उठाने वाले BJP विधायक नारायण त्रिपाठी को प्रदेश अध्यक्ष ने किया तलब, हो सकती है कार्रवाई

Sat, Jan 16, 2021 7:48 PM

  • आरोप- पार्टी से अनुमति लिए बिना ही बैठकें कर रहे हैं त्रिपाठी
 

विंध्य प्रदेश की आवाज बुलंद करने वाले बीजेपी विधायक नारायण त्रिपाठी को प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा ने तलब किया है। त्रिपाठी पर पार्टी से अनुमति लिए बिना ही बैठकें करने और बयान देने का आरोप है। सूत्रों का कहना है कि त्रिपाठी से पार्टी के वरिष्ठ नेता भी नाराज हैं। ऐसे में उनके खिलाफ कार्रवाई हो सकती है। पार्टी सूत्रों का कहना है कि त्रिपाठी को आज ही प्रदेश कार्यालय में बुलाया गया है।
विधानसभा के मानसून सत्र में कमलनाथ सरकार का समर्थन कर सुर्खियों में आने वाले सतना जिले की मैहर सीट से विधायक त्रिपाठी पिछले एक माह से विंध्य प्रदेश बनाने की मांग को लेकर क्षेत्रीय नेताओं को जोड़ने की कवायद कर रहे हैं। इसी सिलसिले में उन्होंने पिछले रविवार को अपने निवास पर बैठक बुलाई थी। जिसमें विंध्य प्रदेश के गठन को लेकर रणनीति बनाई गई थी। त्रिपाठी एक बड़ा आंदोलन खड़ा करने की तैयारी में हैं। उन्होंने विंध्य के सभी जिलों में सभाएं और संवाद का कार्यक्रम तय कर लिया है।
त्रिपाठी ने इसको लेकर मीडिया में बयान दिया था कि पूर्व पीएम स्व अटलजी भी छोटे राज्यों के पक्षधर थे। लिहाजा विंध्य प्रदेश बनना चाहिए। उन्होंने कहा था कि एमपी का विभाजन होगा और विंध्य प्रदेश बनेगा। उनका कहना है कि विंध्य की अब तक उपेक्षा होती रही है इसलिए उसे अलग प्रदेश बनना जरूरी है।
छह दशक से उठ रही मांग
पिछले छह दशक से मप्र में पृथक विंध्य राज्य की मांग उठ रही है। दो साल पहले भोपाल में हुए विंध्योत्सव कार्यक्रम में भी इस आशय की मांग उठाई गई थी। नवंबर 1956 में जब मप्र का गठन हुआ, तब यह मांग सामने आई थी। मप्र विधानसभा के अध्यक्ष एवं कांग्रेस के वरिष्ठ नेता रहे स्व. श्रीनिवास तिवारी भी इस मांग के समर्थक थे। उन्होंने इस मुद्दे पर विधानसभा में राजनीतिक प्रस्ताव भी रखा था। उन्होंने उप्र व मप्र के बघेलखंड व बुंदेलखंड को मिलाकर नया राज्य बनाने की मांग उठाई थी।
केंद्र को भेजा जा चुका प्रस्ताव
विंध्य से सांसद-विधायक रहे स्व. सुंदरलाल तिवारी ने भी सरकार को पत्र लिखकर यह मांग बुलंद की थी। मार्च 2000 में मप्र विधानसभा ने पृथक विंध्य प्रदेश बनाने का संकल्प पारित कर केंद्र सरकार को भेज दिया था। केंद्र सरकार ने जुलाई 2000 में छत्तीसगढ़, झारखंड और उत्तरांचल के गठन को हरी झंडी दे दी, लेकिन विंध्य का प्रस्ताव छूट गया था।

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