Thursday, 22nd May 2025

बदल रही पहचान:अबूझमाड़ के 100 परिवार बना रहे झाड़ू, तीन महीने में कमाए 60 लाख

Sat, Jan 2, 2021 7:47 PM

जिस अबूझमाड़ को अबूझ माना जाता है, वो अब दूसरों के लिए अर्थ का आदर्श प्रस्तुत कर रहा है। यहां वनवासियों ने यहां की विशेष घास टिलगुम को पहचाना, जो झाड़ू बनाने में काम आती है। ओरछा इलाके में नदी के पार के गांव हितुलवाड़ा की महिलाओं ने इसी से घर पर झाडू बनाने का काम शुरू किया। आज आलम यह है कि पिछले तीन महीने में ही करीब 60 लाख का इन लोगों ने कारोबार कर लिया। इस व्यवसाय में 100 परिवार जुड़े हुए हैं। आदिवासियों के इस स्टार्टअप को एसडीओ आशीष कोटरवानी ने मदद दी। आदिवासियों से 900 क्विंटल झाड़ू खरीदे गए।

दिल्ली समेत देश के कई हिस्सों में जा रहा यह झाड़ू
झाड़ू का जब प्रचार बढ़ने लगा तो नारायणपुर की महिला स्व सहायता समूह ने इसे बढ़ाने का काम अपने हाथ में लिया। उन्होंने इसमें सुधार किया। इन झाडूओं की बिक्री के लिए ट्रायफेड से एमओयू किया गया। पहला एमओयू ही 15 लाख रूपए का हुआ और ट्रायफेड ने इन झाडूओं को देश की राजधानी दिल्ली में बाजार उपलब्ध करवा दिया। अभी दिल्ली में अबूझमाड़ के झाडू बिक रहे हैं। इसके अलावा कोलकाता, नागपुर समेत छत्तीसगढ़ के सभी शहरों में अबूझमाड़ के झाड़ू सप्लाई हो रहे हैं। अबूझमाड़ इलाके में टिलगुम घास को पहाड़ी घास कहते हैं। यहां यह प्राकृतिक तौर पर ही मिलती है। इस पहाड़ी घास से पहले भी झाड़ू बनते थे, लेकिन बाजार नहीं मिला था।

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