दुनिया की सबसे ऊंची चोटियों पर भारत का परचम लहराने वाले कर्नल नरेंद्र बुल का गुरुवार को दिल्ली में निधन हो गया। वे 87 साल के थे। कर्नल बुल की मदद से ही भारत सियाचिन पर अपना कब्जा बरकरार रख पाया था। उनकी रिपोर्टों के आधार पर तब प्रधानमंत्री रहीं इंदिरा गांधी ने भारतीय सेना को ऑपरेशन मेघदूत चलाने की इजाजत दी थी।
इसी के बाद सेना सियाचिन पर कब्जा करने के मिशन पर आगे बढ़ी। अगर ऐसा नहीं किया जाता तो इस ग्लेशियर का पूरा हिस्सा पाकिस्तान के कब्जे में चला जाता।
सेना ने कहा- कर्नल बुल अपने पीछे बहादुरी की गाथाएं छोड़ गए
सेना ने कर्नल बुल को श्रद्धांजलि देते हुए लिखा कि वे ऐसे सोल्जर माउंटेनियर हैं, जो कई जनरेशन को प्रेरणा देंगे। वे नहीं रहे, लेकिन अपने पीछे साहस, बहादुरी और समर्पण की गाथाएं छोड़ गए हैं।
चार उंगलियां खोकर भी कई चोटियों पर फतह हासिल की
नरेंद्र बुल कुमार का जन्म रावलपिंडी में 1933 में हुआ था। उन्हें 1953 में कुमाऊं रेजिमेंट में कमीशन मिला था। उनके तीन और भाई भारतीय सेना में रहे थे। नंदादेवी चोटी पर चढ़ने वाले वह पहले भारतीय थे। उन्होंने 1965 में माउंट एवरेस्ट, माउंट ब्लैंक (आल्प्स की सबसे ऊंची चोटी) और बाद में कंचनजंघा की चढ़ाई की थी।
पहले के अभियानों में चार उंगलियां खोने के बाद भी उन्होंने इन चोटियों पर जीत हासिल की थी। 1981 में उन्होंने अंटार्कटिका टास्क फोर्स के मेंबर के रूप में उन्होंने शानदार भूमिका निभाई।
कर्नल बुल 1965 में भारत की पहली एवरेस्ट विजेता टीम के डिप्टी लीडर थे। बुल उनका निकनेम था। उन्होंने हमेशा इसे अपने नाम के साथ रखा। उन्हें कीर्ति चक्र, पद्म श्री, अर्जुन पुरस्कार और मैकग्रेगर मेडल से सम्मानित किया गया था।
'बुल को सियाचिन सेवियर कहा जाता था'
रिटायर्ड लेफ्टिनेंट जनरल संजय कुलकर्णी ने कहा कि उन्हें सियाचिन को बचाने वाले के तौर पर जाना जाता है। उन्होंने ही पहली बार सियाचिन ग्लेशियर एरिया कब्जे करने की पाकिस्तान की साजिश का पता लगाया था। इसके बाद बाकी इतिहास है। कुलकर्णी भी उन पहले सैनिकों में से हैं, जो ग्लेशियर के टॉप पर पहुंचे थे। वे तब कैप्टन हुआ करते थे और अपनी प्लाटून के साथ वहां गए थे।
ऑपरेशन मेघदूत चलाकर सेना ने बचाया था सियाचिन
कर्नल बुल ने 1970 के दशक के आखिर और 1980 के दशक की शुरुआत में सियाचिन ग्लेशियर एरिया में कई अभियान चलाए। इसी दौरान 1977 में उन्होंने पाकिस्तान के मंसूबे भांप लिए थे। 13 अप्रैल 1984 को सेना ने ऑपरेशन मेघदूत शुरू कर सियाचिन पर कब्जा कर लिया।
इसके तहत दुनिया की सबसे ऊंचाई वाले युद्ध क्षेत्र में पहली बार हमला किया गया था। सेना ने यह ऑपरेशन बखूबी पूरा करते हुए पूरे सियाचिन ग्लेशियर पर कब्जा कर किया था।
Comment Now