Saturday, 24th May 2025

दुर्लभ निशानियां:यह है 200 साल पुरानी डकैत पुतली बाई गैंग की बंदूक, ग्वालियर में पोस्टेड रहे SI ने बताया- 1978 में कैसे पाई थी यह गन

Wed, Dec 23, 2020 2:26 AM

सफेद कलर का सफारी शूट, पैर में चप्पल और कंधे पर टंगी 200 साल पुरानी बंदूक। 80 साल के ये बुजुर्ग बाबूलाल चाैहान मंगलवार को सेंट्रल म्यूजियम पहुंचे। वे यहां म्यूजियम देखने नहीं, बल्कि एक दुर्लभ बंदूक को पुरातत्व विभाग को सौंपने आए थे। यह कोई साधारण बंदूक नहीं थी, बल्कि ग्वालियर-चंबल संभाग की डकैत पुतली बाई की गैंग की थी, जिसे वे अपने पिता भेरुलाल चौहान से किए गए वादे के अनुसार सरकार को सौंपने आए थे।

चौहान ने इसके पहले भी एक बंदूक दान की थी। वह बंदूक महाराजा तुकोजीराव ने उनके पिता को दी थी।
चौहान ने इसके पहले भी एक बंदूक दान की थी। वह बंदूक महाराजा तुकोजीराव ने उनके पिता को दी थी।

बाबूलाल चौहान ने बताया कि 'मैं 1978 में ग्वालियर के थाना आरोन में सब इंस्पेक्टर के पद पर पदस्थ था। किसी जमाने में ग्वालियर-चंबल संभाग में पुतलीबाई डकैत की तूती बोला करती थी। बनेरी गांव के रुद्र सिंह जो कि पुलिस के साथ ही डकैतों का भी मुखबिर हुआ करता था। उसने मुझे बताया कि पुतली बाई की एक बंदूक यहां के रहने वाले लाखन सिंह के पास है। यह बंदूक बहुत ही दुर्लभ है। इसके बाद मैंने उसे बुलाया और मीटिंग कर उससे 1982 में यह बंदूक ले ली थी।'

बंदूक जमा करने को लेकर कलेक्टर द्वारा जारी पत्र।
बंदूक जमा करने को लेकर कलेक्टर द्वारा जारी पत्र।

उन्होंने बताया कि 'मैंने करियर की शुरुआात 1963 में शिक्षा विभाग से की थी। 10 साल नौकरी के बाद 1977 में पुलिस विभाग में सब इंस्पेक्टर के पद पर ज्वाॅइन किया। उन्होंने बताया कि उस समय डकैत का इतना डर था कि जिसका दबदबा होता था कि वही सरपंच हुआ करता था। किसी और की ताकत नहीं थी कि वह सरपंच बन सके।

इंदौर के पटेल नगर में रहने वाले 80 वर्षीय रिटायर्ड इंस्पेक्टर बाबूलाल चाैहान ने बताया कि उनका जन्म इंदौर में ही हुआ था। उन्होंने बताया कि हमारे पास एक और बंदूक थी, जो मेरे पिता जी को महाराजा तुकोजीराव ने दिलवाई थी। 1929 में शिप्रा के पास स्थित बरलई गांव जागीर थी। यहां पर कलेक्टर थे। उस समय पिता जी ने बंदूक के लिए जागीर से सर्टिफिकेट लिया था। वह बंदूक मेड इन इंग्लैड थी। पिता जी आर्य समाज में लालाजी के साथ काम करते थे। लालाजी महाराज के अंडर में थे। उस समय जातिवाद को लेकर विवाद होते थे, इसलिए बंदूक होना जरूरी होती थी।

सिंगल नाल की बोल्ट सिस्टम है बंदूक
चाैहान ने बताया कि इसके पहले भी मैं दुर्लभ बंदूक पिता जी के कहने पर दान कर चुका हूं। भोपाल में बहुत पहले इंग्लैंड के पुरातत्व विभाग ने इस बंदूक की कीमत 80 हजार रुपए आंकी थी। उन्होंने बताया कि यह बंदूक सिंगल नाल है। साथी ही ,यह बोल्ट सिस्टम है, जबकि 12 बोर में बंदूक बोल्ट सिस्टम नहीं आती है। 12 बोर अपने यहां तोड़ने वाली होती है, लेकिन यह पुलिस के जैसी है, इसलिए इसकी कीमत ज्यादा है।

बंदूक देकर पिताजी से किया वादा पूरा किया
पिता जी भेरूलाल चाैहान ने था कि ये पुरानी और दुर्लभ चीजें हैं। इन्हें संग्रहालय में रखें, जिससे लोग देखकर कुछ सीखें और ऐसी वस्तुओं को दान करने के लिए आगे आएं। महाराज ने जाे बंदूक मेड इन इंग्लैंड मुझे दी थी, वह हाेलकरकालीन दुर्लभ निशानियों में से एक है। मेरी मौत के बाद उसे सरकार को सौंप देना। यह बंदूक 1816 में इंग्लैंड में बनी थी।

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