फाइजर ने ब्रिटेन की तरह अमेरिका में भी कोरोना वैक्सीन के आपात इस्तेमाल की अनुमति मांगी है। अमेरिका इस पर अभी विचार कर रहा है। इस बीच देश में इस बात को लेकर बहस तेज हो गई है कि टीका लगाने में प्राथमिकता किसे मिले। अमेरिका ने वैक्सीन के लिए अब तक जितने करार किए हैं, उसके हिसाब से अभियान चले तो पूरे देश का टीकाकरण जुलाई-अगस्त तक हो पाएगा।
इसलिए सभी को शुरुआत में टीका लगना संभव नहीं है। इसी के मद्देनजर पहले किसे वाली बहस शुरू हुई है। इसमें बुजुर्गों और गंभीर बीमारी झेल रहे लोगों के पक्ष में तर्क है कि संक्रमित होने पर इनकी मृत्यु की आशंका ज्यादा होती है। वहीं, अतिआवश्यक सेवाओं से जुड़े लोगों (एसेंशियल वर्कर्स) के पक्ष में कहा जा रहा है कि वे सबसे ज्यादा खतरा झेल रहे हैं।
इसलिए उन्हें पहले टीका लगना चाहिए। कोरोना के कारण बढ़ी आर्थिक असमानता पर ध्यान देने की मांग भी हो रही है। गरीब और अश्वेत लोगों पर इस महामारी की मार ज्यादा पड़ी है। लिहाजा उन्हें प्राथमिकता मिलनी चाहिए, यह भी कहा जा रहा है। अमेरिका में गरीब तबके की आवाज उठाने के लिए बने राष्ट्रीय गठबंधन के प्रमुख विलियम जे बार्बर ने कहा, ‘यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि गरीब और कम आय वालों का नंबर आखिर में न आए।’
एसेंशियल वर्कर्स को पहले टीका तो पहले चरण में ही आधी आबादी को लगाना पड़ेगा
अमेरिका के फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन (एफडीए) के पूर्व कमिश्नर डॉ. स्कॉट गोटिलेब ने कहा, ‘अगर आपका लक्ष्य मानव जीवन की कम से कम क्षति है तो सबसे पहले बुजुर्ग लोगों को टीका लगना चाहिए। लेकिन अगर वायरस के प्रसार पर रोक लगानी है तो पहले एसेंशियल वर्कर्स को प्राथमिकता दी जानी चाहिए।’ हालांकि, गोटिलेब द्वारा सुझाए गए दूसरे विकल्प को अपनाने पर अमेरिकी प्रशासन के सामने एक नई तरह की समस्या पेश आ सकती है। दरअसल अमेरिका में एसेंशियल वर्कर्स की जो परिभाषा है, उसके मुताबिक 70 फीसदी अमेरिकी कामगार इसी श्रेणी में आते हैं। इनमें किराना दुकान पर बही-खाता संभालने वाले से लेकर परमाणु ऊर्जा के क्षेत्र में काम करने वाले पेशेवर तक सभी कामगार शामिल हैं।
इस हिसाब से अगर एसेंशियल वर्कर्स को टीकाकरण में प्राथमिकता दी जाती है तो अमेरिका को पहले ही चरण में देश की करीब आधी आबादी को टीका लगाना पड़ेगा। व्यावहारिक रूप से यह एक मुश्किल काम है। संभवत: यही कारण है कि देश में एक तबके ने अब यह मांग करना शुरू कर दिया है कि टीकाकरण के लिए एसेंशियल वर्कर्स की नई सूची बनाई जाए। या फिर एसेंशियल वर्कर्स की परिभाषा को बदल दिया जाए। सरकार इस पर विचार कर रही है।
शिक्षक एसेंशियल वर्कर हो या नहीं, चर्चा इस पर भी
बहस का एक मसला यह भी है कि शिक्षकों को एसेंशियल वर्कर माना जाए या नहीं। कोरोनाकाल में स्कूल बंद होने से शिक्षक घर से ऑनलाइन क्लास ले रहे हैं। इसीलिए एक तबके का मानना है कि उन्हें एसेंशियल वर्कर क्यों माना जाए।
करीब 500 ने माना: टीका लगने के बाद भी सावधानी बरतते रहेंगे
अमेरिकी महामारी विशेषज्ञों के एक बड़े तबके का मानना है, ‘अभी हमें कोरोना से बचाव की सावधानियां बरतनी होंगी। देश की 70% आबादी को टीका लगने तक मास्क और सामाजिक दूरी जैसी सावधानियां अपनानी होंगी।’ न्यूयॉर्क टाइम्स ने देश के 700 विशेषज्ञों पर एक अनौपचारिक सर्वे कराया। इसमें से सिर्फ 30% ने कहा कि टीका के बाद ही वे अपनी आदतों में कुछ बदलाव करेंगे।
उनका कहना था कहा कि यदि अत्यधिक असरदार टीके व्यापक रूप से वितरित किए गए तो अमेरिकी आगामी गर्मी में अधिक आजादी से रह पाएंगे। इन्हीं में से एक मिशीगन स्टेट यूनिवर्सिटी के असिस्टेंट प्रोफेसर कैली स्ट्रट्ज हैं। उनके मुताबिक, ‘उम्मीद है कि टीके के उत्साहजनक परिणामों से अगले साल हमारी सामान्य जिंदगी पटरी पर लौट आएगी।’ हालांकि सर्वे में शामिल ज्यादातर विशेषज्ञों ने कहा कि टीका के बाद सामान्य गतिविधियों को सुरक्षित रूप से शुरू करने में एक साल से कहीं ज्यादा समय लग सकता है। यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया में महामारी विज्ञान के प्रोफेसर करिन मिशेल्स ने तो यहां तक कहा कि टीके के बावजूद कई लोगों की जिंदगी में शायद कोरोना के पहले जैसी बहार न लौटे।
Comment Now