(नरेंद्र अग्रवाल) सिमडेगा जिला मुख्यालय से करीब 10 किमी दूर है बीरूगढ़ का ऐतिहासिक सूर्य मंदिर। बीरू में पुराने तालाब के पास टीले पर बड़े पत्थरों से निर्मित यह मंदिर सातवीं सदी का है। मंदिर में 7 अश्वों के रथ पर भगवान सूर्य सवार हैं और उनके अगल-बगल में पत्नी संध्या और छाया की प्रतिमाएं हैं। बड़े पत्थरों से बने मंदिर की दीवारों पर एक विशाल पत्थर से छत बनाई गई है।
जो निर्माणशैली की अद्भुत कारीगरी को दर्शाता है। प्राचीन काल में सिमडेगा को बीरू-कैसलपुर परगना के नाम से जाना जाता था, जहां राजा कतंगदेव का राज था। यह कलिंग साम्राज्य का हिस्सा भी रहा। मंदिर खंडहर में तब्दील हो चुका था, 2015 में फिर से पूजा शुरू हुई।
18वीं सदी का मंदिर- रानी के कहने पर पदमा के राजा ने बनवाया था
ईचाक के परासी मंडा टोला का सूर्य मंदिर 225 साल पुराना है, ऊंचाई करीब 70 फीट है
(अनिल कुमार) हजारीबाग बड़ा अखाड़ा के महंत विजया दास ने बताया कि पदमा राजा रामनारायण सिंह ने रानी के कहने पर साल 1800 के आसपास सूर्यमंदिर बनवाया था। उन्होंने ही तालाब का निर्माण कराया था। सूर्य की पहली किरण मंदिर पर पड़े, इसे ध्यान में रखकर वास्तुशास्त्र के हिसाब से इसे बनवाया गया है।
मंदिर के पीछे दो कमरे से होकर पदमा किले तक सुरंग बनी हुई है। पदमा राजघराने की महारानी छठ पर्व पर अपनी सखियों के साथ इसी सुरंग से होकर अस्ताचलगामी और उदीयमान सूर्य को अर्घ्य देने पहुंचती थीं। तब से यहां पर छठ पूजा हो रही है। मान्यता है कि यहां 5 दिनों तक स्नान करने से चर्मरोग नहीं होते हैं।
पिठोरिया में है सूरजमंडा, यहां हैं 2000 साल पुरानी मूर्तियां
(राम मनोहर मिश्रा) झारखंड में सूर्यदेव की उपासना का प्रमाण नागवंश की स्थापना यानी फणिमुकुट राय के समय का है। खुदाई में सूर्य की मूर्ति भी प्राप्त हुई है, जो मूड़हर पहाड़ के सामने मदरा मुंडा की मूर्ति के पास गढ़बारी के सामने सूरजमंडा में आज भी खंडित अवस्था में रखी हुई हैं। सूर्य की मूर्ति के पैर ही फिलहाल बचे हुए हैं। सूरजमंडा में गांव के लोग पूजा के लिए आते हैं।
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