ग्वालों ने रविवार की सुबह 9 बजे गंगाजल का आचमन कर मौन व्रत की शपथ ली। गोवर्धन पर्वत मानकर 12 गांव की दौड़ कर 51 किमी लंबी परिक्रमा की। शाम को वार्ड क्रमांक 2 स्थित कारस देव मंदिर प्रांगण में पूजा अर्चना करने के बाद मौन व्रत खोला। इस साल इन 15 ग्वालों के साथ नए सदस्य मोर पंख और घंटियां लेकर साथ निकले। दीपावली के 1 दिन बाद पड़वा(प्रतिपदा) को कारस देव मंदिर से पूजा अर्चना के बाद ग्वालों की टोली 1 दिन का मौन व्रत रखकर परिक्रमा के लिए यह मानकर निकलती है कि वह गोवर्धन की परिक्रमा कर रहे हैं। नंगे पैर गांव की परिक्रमा करने के बाद शाम को घंटियां और डांडिया मंदिर पर रखकर अपना मौन व्रत तोड़ते हैं।
11 साल तक करनी पड़ती है परिक्रमा, दौड़ शुरू होने से पहले गंगाजल से लेते हैं मौन व्रत की शपथ
रामगोपाल यादव ने हर साल पड़वा के दिन ग्वाले यह मानकर निकलते हैं वह गोवर्धन परिक्रमा कर रहे हैं। लगातार 11 साल तक परिक्रमा कर वे मानते हैं कि उन्होंनेचौरासी कोस की परिक्रमा कर ली है। आखिरी साल वृंदावन में गोवर्धन पूजा करते हैं और उसके बाद परिक्रमा की शपथ से मुक्त हो जाते हैं। जो सदस्य एक बार दल में मौन व्रत लेता है। उसे 12 साल तक निरंतर शामिल होना पड़ता है। इस साल दल में राजू, अरविंद, संदीप, मंटू, लखन, कल्लू, उमेश, गणपत, सुनील रैकवार, सूरज सरवन, राजू, जितेंद्र, प्रदीप, धर्मेंद्र, कुशवाह शामिल हुए।
कमर में मोर पंख बांधते हैं ग्वाले, फिर लगाते हैं गांव की परिक्रमा
यह परंपरा 151 साल से निरंतर चली आ रही है। व्रत रखने वाले सुबह से ही मंदिर में एकत्रित होने लगते हैं पूजन आरती डांडिया खेलते हुए परिक्रमा करते हैं। उसके बाद कमर में मोर पंख बांधकर दौड़ते हुए परिक्रमा पर रवाना हो जाते हैं। यह दल हरदू खेड़ी, स्वरूप नगर, परसोरा, बेहलोट, भड़ेरु, रबरयाई, हथोड़ा, हरिपुर, बेदनखेड़ी, गंज, पचमा, खरपरी, आदि गांव की परिक्रमा करते हैं।
महत्व... पड़वा के दिन गोपालक गायों को करते हैं शृंगार
पूरा आयोजन गो-पूजन और संरक्षण से जुड़ा है। पड़वा के दिन गोपालक अपनी गायों का श्रृंगार करते हैं। उनके बदन को रंगों से सजाते हैं। गले में घंटी और घेंटा बांधकर निकालते हैं। ग्वाले गांव में पहुंचकर गायों को पूजन करते हैं इस धारणा के साथ कि वह भगवान गोवर्धन नाथ की पूजन कर रहे हैं।
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