राजधानी में पिछले साल सीवायओबी (कैरी योअर ओन बैग) जैसे प्रयासों से पॉलिथीन और प्लास्टिक के उपयोग में कमी आई थी। रोजाना निकलने वाले कचरे में पॉलिथीन और प्लास्टिक की मात्रा में खासी गिरावट आई थी, लेकिन अब शहर में वापस पॉलिथीन कचरा नजर आने लगा है। एक अनुमान के अनुसार रोज 10 टन पॉलिथीन आदमपुर छावनी पहुंच रही है। प्लास्टिक का दूसरा कचरा इसके अलावा है। बाजारों में भी ग्राहक या व्यापारी दोनों ही बिनी रोक-टोक के पॉलिथीन का उपयोग कर रहे हैं। पिछले 6 महीनों में इक्का- दुक्का अवसरों को छोड़कर शायद ही कभी पॉलिथीन के खिलाफ कोई अभियान चला हो।
स्वच्छ सर्वे -2020 में भोपाल को देश में सातवां नंबर दिलाने में जिन नवाचार की सबसे अधिक भूमिका थी उसमें सीवायओबी (कैरी योअर ओन बैग या बॉटल) सबसे प्रमुख था। नगर निगम ने जगह-जगह काउंटर बना कर लोगों से पुराने कपड़े इकट्ठे किए थे। इनके थेले बनाए गए और वितरित किए। बोट क्लब जैसे स्थानों पर कपड़े के थेले वितरित करने के लिए खास काउंटर लगाए गए थे। इस सबका असर भी नजर आने लगा था।
सख्ती का असर... 40% तक घटा था पॉलिथीन का उपयोग
भोपाल में पॉलिथीन का कचरा 10 टन से घटकर 6 टन पर आ गया था। इसमें पतली पॉलिथीन नाममात्र की ही थी। बार-बार पड़ते छापों के कारण व्यापारी और ग्राहक दोनों ही पॉलिथीन रखने से कतराने लगे थे। अब वापस कचरे में रोजाना 10 टन पॉलिथीन आ रही है। मुख्य मार्गों और जलस्रोतों में जा रही पॉलिथीन अलग है। यदि अन्य प्लास्टिक कचरे की बात करें तो 120 टन तक प्लास्टिक कचरा निकल रहा है, यह घटकर 90 टन तक रह गया था।
अब सुस्ती... चालू नहीं हो सकीं लॉकडाउन में बंद गतिविधियां
मार्च के अंतिम सप्ताह में लॉकडाउन से ठप हुई सारी गतिविधियां फिर चालू नहीं हो सकीं। बाजार खुल गए हैं, अब लगभग सभी कामकाज पटरी पर आ गए हैं, लेकिन पॉलिथीन के खिलाफ निगम का अभियान ठप है। कपड़े के थैले वितरित कपने से लेकर पॉलिथीन जब्त करने तक की सारी गतिविधियां ठप हैं। नगर निगम कमिश्नर, वीएस चौधरी कोलसानी के मुताबिक सीवायओबी को बंद नहीं किया गया है। हम गतिविधियों में तेजी लाएंगे।
पॉलिथीन से निकलने वाली गैसों से कम होती है इम्युनिटी
राज्य स्तरीय ठोस अपशिष्ट प्रबंधन समिति के सदस्य इम्तियाज अली कहते हैं कि कोरोना संक्रमण के इस काल में तो प्लास्टिक और पॉलिथीन के उपयोग से बचने की जरूरत है। प्लास्टिक और पॉलिथीन से निकलने वाली गैसेस से इम्युनिटी कम होती है। इनमें रखा हुआ खाना नहीं खाना चाहिए। लेकिन नगर निगम का ध्यान इस तरफ नहीं होेने से आम लोग भी लापरवाह हो गए हैं।
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