नेताओं की रस्म अदायगी का जीताजागता उदाहरण बदनावर विधानसभा क्षेत्र के पश्चिमी भाग के अंतिम छोर पर बसे गांवों में देखने को मिला। वोट के लिए पांच साल में एक बार चेहरा दिखाने वाले नेता यहां पलटकर नहीं आते। समस्याओं के लिए ग्रामीणों को खुद ही जूझना है।
भास्कर टीम विधानसभा के अंतिम छोर पर बसे इन गांवों में पहुंची तो ग्रामीणों ने अपनी पीड़ा बयां की। बोरदा ग्राम पंचायत के डूंगलिया के ग्रामीणों ने साफ कहा कि इस बार काम नहीं हुए तो अगली बार नेताओं को गांव में नहीं घुसने देंगे चाहे। पढ़ें भास्कर की ग्राउंड रिपोर्ट।
कब कब कौन आया
2013 में चुनाव जीतने के बाद भवरसिंह शेखावत हैंडिया कुंडिया गए थे। राधू मकवाना का कहना है फिर कोई नहीं आया। डुंगलिया के बाबू लाल ने कहा इस बार राजवर्धन जरूर आए, लेकिन पीछली बार की तरह वादा करके चले गए।
डूंगलिया-बदनावर से दूरी 35 किमी
क्या करते बाढ़ ने रास्ता रोक दिया था, रास्ते में ही करवाई डिलीवरी
डूंगलिया के बाबूलाल पिता मांजी का कहना है। मेरी आयु 40 साल से अधिक हो गई है। आधी उम्र गुजर गई लेकिन मैंने कभी यहां सड़क नहीं देखी। 6 किमी सड़क के लिए 70 साल से इंतजार कर रहे हैं। दो महीने पहले गांव की मुन्नीबाई पति छोटू और धापू पति राहुल की डिलीवरी नाले में बाढ़ होने से रास्ते में ही करवानी पड़ी। न तो गांव में ट्रैक्टर है और न ही कोई वाहन। किराए से बुलाते हैं। उबड़-खाबड़ पथरीले रास्ते से होकर गुजरना ही यहां के लोगों की दिनचर्या बन गई है।
शासकीय अस्पताल 35 किमी दूर बदनावर में है। चुनाव में नेता एक बार आते हैं। उसके बाद हमारी कोई सुध नहीं लेता। फोन भी नहीं उठाते। गत चुनाव में गांव में पानी की टंकी बनाने और मोटर डालकर नलों से पानी देने की बात कही थी, लेकिन हम अब भी पेयजल की समस्या का सामना कर रहे हैं। 3 हैंडपंप हैं, दो में खारा पानी आता है।
हंडिया-कुंडिया, बदनावर से दूरी 30 किमी
बिजली के खंभे नहीं लगे, 1 हजार फीट दूर से खींचकर लाते हैं वायर
बोरदी ग्राम पंचायत के 500 से अधिक आबादी वाले मजरे हंडिया-कुंडिया तक पहुंचने के लिए सड़क मार्ग है, लेकिन अब यहां के ग्रामीण खतरा उठाकर एक हजार फीट दूर से वायर से बड़ी लाइन से या डीपी से कनेक्शन लेकर घरों तक बिजली ला रहे हैं। बदनावर विधानसभा की यह अंतिम ग्राम पंचायत है। गांव के पूर्व उपसरपंच राधू मकवाना का कहना है।
गांव में बिजली के खंभे ही नहीं हैं। गर्मी में हैंडपंप सूख जाते हैं। पेयजल के लिए टैंकरों पर निर्भर रहना पड़ता है। गेहूं-सोयाबीन की फसल लेते हैं, लेकिन उकालापाड़ा में बने सीपनिया डेम से पानी नहीं छोड़ते हैं। हमारी समस्याओं को जानने के लिए कभी कोई नहीं आता। इस चुनाव में भी अभी तक कोई नहीं आया। वालचंद पिता चुन्नीलाल का कहना है वोट के लिए लालच देते हैं, लेकिन काम कुछ नहीं होता। अब चुनाव में हमारी कोई रुचि नहीं रही।
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