Saturday, 24th May 2025

विश्व पोलियो दिवस:इंटरनेशनल लेवल पर व्हीलचेयर क्रिकेट खेल रहे हैं सुनील, 9 बार मिस्टर छत्तीसगढ़ बन चुके हैं संदीप

Sat, Oct 24, 2020 5:30 PM

  • पढ़िए ऐसे दो शख्स की कहानी, जिन्होंने पाेलियाे होने के कारण जिंदगी से समझौता करने के बजाय बॉडी बिल्डिंग और क्रिकेट जैसी फील्ड चुनी और कड़ी मेहनत के दम पर कामयाब भी रहे
 

पोलियो ने पैर छीने तो एक्सरसाइज से शरीर बना लिया लोहे-सा

 

ये कहानी है 32 साल के संदीप साहू की। पोलियाे के कारण उनका एक पैर विकसित नहीं हो सका। बावजूद इसके उन्होंने अपना शरीर इतना मजबूत बना लिया कि अब तक 9 बार मिस्टर छत्तीसगढ़, 5 बार मिस्टर रायपुर और 1 बार मिस्टर इंडिया का खिताब जीत चुके हैं। 60 प्रतिशत दिव्यांगता के शिकार संदीप पिछले 5 साल से बॉडी बिल्डिंग कर रहे हैं। उन्होंने बताया, पोलियों के कारण ठीक से चल नहीं पाता था। लाेग हंसते थे। मजाक उड़ाते थे। मैं सुन के भी सबकी बातों को अनसुना कर देता था। 2009 में मेरी शादी हो गई। बेटे खौमिश के जन्म के बाद अहसास हुआ कि जब मैं उसे स्कूल छोड़ने जाऊंगा तो उसके दोस्त मुझे देखकर उसे चिढ़ाएंगे। उस पर हसेंगे। कहेंगे कि तेरे पापा विकलांग हैं। मेरी वजह से मेरा बेटा शर्मिदा होगा, इस ख्याल ने मुझे झकझोर दिया। मैंने तय किया कि बेटे को शर्मिदा नहीं, बल्कि गर्व महसूस कराना है। परिचित की सलाह पर पैरा बॉडी बिल्डिंग चैम्पियनशिप में हिस्सा लेने का निर्णय लिया। 2015 में पहली बार किसी कॉम्पिटीशन में हिस्सा लिया। जिम की फीस देना तो दूर शुरुआती दौर में डाइट के लिए भी मेरे पास पर्याप्त पैसे नहीं होते थे। मैंने हिम्मत नहीं हारी, एक्सरसाइज शुरू की। जब जीत का स्वाद चखने का मौका मिला तो मेरा कॉन्फिडेंस बढ़ गया। इंटरनेशनल मैच में भी सलेक्शन हुआ, लेकिन आर्थिक तंगी के कारण उसमें हिस्सा नहीं ले सका। अच्छी बॉडी और सेहत के लिए रोज 4 घंटे एक्सरसाइज करता हूं। पांच सालों की मेहनत का ही नतीजा है कि बेटे के दोस्त मेरा मजाक नहीं उड़ाते, बल्कि ये कहते हैं कि तेरे पापा की बॉडी हीरो जैसी है।

अनाथ आश्रम में पले हैं सुनील, इन्होंने ही बनाई है स्टेट टीम
ये कहानी है 38 साल के इंटरनेशनल व्हीलचेयर क्रिकेटर सुनील राव की। वे पोलियो की वजह से पैरों से 80 प्रतिशत दिव्यांग हैं। अब तक चार इंटरनेशनल मैच खेल चुके हैं। छत्तीसगढ़ व्हीलचेयर क्रिकेट टीम के फाउंडर हैं। उन्होंने बताया, मैं अनाथ हूं। बचपन में आंध्रप्रदेश के आश्रम में पला-बढ़ा। फिर रायपुर आ गया। 25 साल से यहीं हूं। आईटीआई करने के बाद सेवा निकेतन में वेल्डिंग टीचर की जॉब मिल गई। बचपन से ही दोस्तों के साथ टेनिस बॉल से क्रिकेट खेलता था। व्हीलचेयर क्रिकेट टूर्नामेंट भी होता है, ये जानने के बाद सेवा निकेतन में ग्रुप बनाकर क्रिकेट की प्रैक्टिस शुरू की। फिर सोचा कि क्यों न स्टेट लेवल टीम बनाई जाए। इसके बाद स्टेट लेवल ट्रायल रखा। बेस्ट 20 की टीम बनाई। इंटरनेशनल मैच के लिए छत्तीसगढ़ से 2 खिलाड़ियों को सलेक्शन हुआ, जिसमें से एक मैं था। बांग्लादेश में हुए टूर्नामेंट में हम 2-0 से विनर रहे। मुझे बॉलिंग और फील्डिंग के लिए अवॉर्ड भी मिला। शुरुआत में हमें व्हीलचेयर पर क्रिकेट खेलते देखकर जो लोग मजाक उड़ाते थे। कहते थे कि ये खेल इनके बस का नहीं, ये बॉल कैसे लाएंगे, अब वही लोग हमें सैल्यूट करते हैं।

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