Thursday, 22nd May 2025

बिहार की सियासत:राजनीतिक विरासत संभालने में बहू व बेटियाें से आगे रही हैं पत्नियां, रिश्तेदारी भुना सिर्फ जेपी की भांजी ही सफल, चार बार बनीं विधायक

Tue, Oct 13, 2020 5:25 PM

  • राजद के आरके राणा की पत्नी नयना राणा और बुलो मंडल की पत्नी वर्षा रानी ही लड़ी हैं चुनाव
  • भागलपुर के किसी बड़े राजनीतिज्ञों की बहू या बेटियां अब तक पॉलिटिक्स में नहीं आई हैं
 

 सूबे की कई सीटों पर इन दिनों राजनीतिक दिग्गजों की बहू व बेटियों को टिकट देकर विरासत को जिंदा रखने की कवायद चल रही है। इस नई परिपाटी से अब तक भागलपुर महरूम है। भागलपुर के किसी बड़े राजनीतिज्ञों की बहू या बेटियां अब तक पॉलिटिक्स में नहीं आई हैं।

यहां राजनीतिक विरासत को संभालने में बहू और बेटियाें से आगे पत्नियां ही रही हैं। 1952 से अब तक जिले के सातों विधानसभा में हुए चुनाव में किसी भी राजनीतिक दिग्गजों की बेटियां और बहुओं को टिकट नहीं मिला। राजनीतिक संकट आने पर दो बार पत्नियों को टिकट दिया गया।

इनमें मात्र बिहपुर से वर्षा रानी ही सफल हो सकीं। वर्षा रानी राजद के पूर्व सांसद बुलो मंडल की पत्नी हैं। 2015 में राजद ने बिहपुर से वर्षा को उम्मीदवार बनाया था। 2014 में बुलो मंडल भागलपुर से सांसद थे।

खगड़िया से हारने के बाद नयना ने राजनीति ही छोड़ दी
इससे पहले राजद के ही डॉ. रवींद्र कुमार राणा की पत्नी नयना राणा को टिकट मिला था। नयना राणा 1999 के संसदीय चुनाव में खगड़िया लोकसभा से राजद की प्रत्याशी थीं। उस समय डॉ. राणा गोपालपुर से विधायक थे। इसलिए राजनीतिक वर्चस्व बरकरार रखने के लिए पार्टी ने डॉ. राणा की पत्नी नयना राणा को टिकट दिया था।

1999 के संसदीय चुनाव में जदयू की रेणु कुशवाहा ने खगड़िया लोकसभा क्षेत्र से नयना राणा को 31,822 मतों से शिकस्त दी थी। लेकिन 2004 में स्वयं डॉ. राणा खगड़िया से लोकसभा का चुनाव लड़े और जीते। डॉ. राणा 2009 में खगड़िया से चुनाव हारने के बाद दोबारा नहीं जीत सके। खगड़िया से हारने के बाद नयना राणा से राजनीति से ही तौबा कर ली।

1977 से 2005 तक राजनीति में सफल रहीं सुधा श्रीवास्तव
हां, यह अलग बात है कि बड़े राजनीतिज्ञों के नाम पर चुनाव लड़ने में सुधा श्रीवास्तव सफल रहीं। वे चार बार नाथनगर की विधायक रहीं। वे संपूर्ण क्रांति के प्रणेता जयप्रकाश नारायण की भांजी थीं। सुधा 1977 में पहली बार जनता पार्टी से जीतीं। 1980 में हार गई थी। वे जनता दल से 1990 में जीतीं। 1995 में समता पार्टी से खड़ा हुई थीं और पांचवें स्थान पर रहीं। लेकिन 2000 में समता से और 2005 के फरवरी व अक्टूबर में हुए चुनाव में लगातार जदयू की टिकट से जीतीं।

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