सागर जिले की कॉंग्रेस का गढ़ कहे जाने वाली सुरखी विधानसभा सीट वर्ष 1951-52 में अस्तित्व में आई थी । इतिहास पर नजर डाले तो सुरखी का यह पहला उपचुनाव है! सुरखी के मतदाता पहली बार विधानसभा उपचुनाव में मतदान करेगे, हालांकि कोरोना काल चल रहा है ,इस वजह से चुनाव आयोग ने कुछ पाबंदियां लगाई है,जिसके चलते उपचुनाव में जो रोमांच देखने को मिलना था वह नहीं मिल रहा । बड़े-बड़े नेता, मंत्री उपचुनाव वाली विधानसभा में गली-गली देखने मिल जाते थे लेकिन अब कोरोना की वजह से ऐसा नहीं हो पा रहा है ।उपचुनाव की रणभेरी बज चुकी है और सुरखी की जनता खामोशी के साथ उपचुनाव की गतिविधियां देख रही है ।सुरखी की जनता कुछ कह नहीं रही सिर्फ देखती ही जा रही है !
रही मुकाबले की बात तो सुरखी उपचुनाव में सीधी टक्कर
भाजपा/कांग्रेस के बीच है । कांग्रेस ने अपना प्रत्याशी पारुल साहू को बनाया है वही भाजपा के चुनावी मैदान में गोविंद सिंह राजपूत है! वर्ष 2013 के विधानसभा चुनाव वही दोनों प्रत्याशी आमने-सामने है ।अंतर सिर्फ इतना है कि सिर्फ चुनाव चिन्ह बदल गए हैं,क्योंकि पारुल साहू ने भाजपा छोड़ कांग्रेस पार्टी की सदस्यता ले ली और गोविन्द सिंह राजपूत ने कांग्रेस पार्टी छोड़ भाजपा की सदस्यता ले लीं । दोनों नेताओं ने अपनी पार्टियों की अदला-बदला कर एक बार फिर चुनावी मैदान में ताल ठोक दी है । फैसला मतदाताओं के ऊपर छोड़ दिया है!
इस उपचुनाव के वर्तमान समीकरण,जातीय समीकरण की भी बात करेंगे ।लेकिन उसके पहले वर्तमान में उपचुनाव में दोनों प्रत्याशियों की क्या स्थिति है और किस प्रकार का जनसंपर्क कर रहे हैं, इस पर हम बात करते हैं । सबसे पहले बात करते हैं भाजपा के गोविन्द सिंह राजपूत की तो गोविंद सिंह राजपूत अब भाजपा में शामिल हो गए हैं । इसके पहले वह कांग्रेस से चुनाव लड़ते आ रहे थे और कांग्रेस में सागर जिले की राजनीति में राजपूत परिवार का काफी दबदबा रहा ,जो भी निर्णय लेना होता था इन्ही को लेना होता था लेकिन भाजपा में शामिल होने के बाद स्थितियां-परिस्थितिया बदल गई हैं । क्योंकि भाजपा किसी व्यक्ति विशेष को महत्व नहीं देती ।भाजपा में पार्टी चुनाव लड़ती है संघ की कुछ नीतियाँ,लक्ष्मण रेखाए होती है, उन्ही के अंदर रहकर काम करना होता है, इन नीतियों का पालन सभी को करना पड़ता है ।चाहे वह मंत्री हो या छोटा सा कार्यकर्ता! भाजपा उपचुनाव मे एक संगठित टीम की तरह काम कर रही है, सबकी अलग-अलग जिम्मेदारियां है, जहां किसी के कार्य में ढीलापन दिखता है तो संघ उसको टाइट करता है ।हालांकि गोविंद सिंह राजपूत भाजपा मे नए आए हैं। नई पार्टी में ढलने में थोड़ा वक्त भी लग सकता है । उन्हें उपचुनाव में काफी बड़ी टीम मिली है और भाजपा में टीम काफी लगन से समर्पित होकर काम कर रही है और इसका लाभ गोविन्द सिंह राजपूत जरूर मिलेगा ! विधायक से इस्तीफा देने के बाद उन्हें चुनाव लड़ना ही था तो उन्होंने तैयारियां भी बहुत पहले से शुरू कर दी थी ।बूथ स्तर से लेकर सभी स्तर तक की तैयारियां बहुत पहले कर ली थी। अब काफी मजबूती के साथ वह चुनाव लड़ रहे हैं !
वही अब बात करते हैं कांग्रेस की प्रत्याशी पारुल साहू की ।पारुल साहू के चुनावी मैदान में उतरने से सुरखी का मुकाबला काफी रोचक हो गया है।पूरे प्रदेश की निगाहें इस सीट पर है, क्योंकि 2013 के चुनाव में पारुल साहू ने गोविन्द सिंह राजपूत को महज 141 से वोटों से हराया था । उस समय पारुल साहू भाजपा पार्टी से चुनाव लड़ी थी, लेकिन अब परिस्थितियां बदल चुकी है ।अब पारूल साहू कांग्रेस पार्टी में आ गई है । जिले में इस समय कांग्रेस पार्टी के नेताओं और कार्यकर्ताओं में एकरूपता दिखाई नहीं दे रही है ।इसकी सबसे बड़ी वजह जिलाध्यक्ष नरेश जैन का कोरोना पॉजिटिव होना और जिसके चलते उनका अनुपस्थित रहना ! वर्तमान में पारुल साहू के चुनावी मैदान में उतरने के बाद लोग तरह-तरह के कयास लगा रहे थे कि पारुल साहू के जनसंपर्क की गति तेज़ देखने को मिलेगी ,लेकिन फिलहाल वह गति देखने को नहीं मिल रही है । पारुल साहू के परिवार से उनके चाचा कमलेश साहू देवर गोल्डी केसरवानी और पर्दे के पीछे उनके पति नीरज केसरवानी काम कर रहे हैं लेकिन अभी तक उनका पूरा परिवार पूरी ताकत के साथ मैदान में नहीं दिख रहा है, लेकिन पारुल साहू के चुनाव की बागडोर के मुख्य सूत्रधार संतोष साहू है। ऐसी आशंका है कि चुनाव के अंतिम 7 दिनों में साहू परिवार पूरी ताकत झोंक देगा, लेकिन इसके साथ ही कांग्रेस पार्टी के जिले के सभी नेताओं को एक साथ सामंजस्य बिठाकर चुनाव लड़ना होगा तभी यह सीट को जीत पाना संभव होगा !
खैर आज की स्थिति में बात करें तो गोविंद सिंह राजपूत पारुल साहू से आगे दिख रहे हैं ,क्योंकि गोविन्द सिंह राजपूत एक टीम के साथ काम कर रहे हैं ,वही पारुल साहू की टीम कमजोर दिख रही है! पारुल साहू को एग्जाम की तैयारी करने वाले स्टूडेंट की तरह 24 घंटे में से 18- 18 घंटे समय देना होगा या 20 -20 ओवर का मैच खेलना होगा तभी वह फाइट दे सकती है । पारुल साहू का सबसे मजबूत पक्ष महिला वोटर है और 2013 के चुनाव में भी महिला वोटरों का काफी बड़ा अहम् रोल रहा था । इस चुनाव में भी उनके जनसंपर्क में मुख्य महिला वोटर ही नजर मे हैं !
अब बात करते हैं जातीय समीकरण की सुरखी विधानसभा में अभी तक के इतिहास में राजपूत और ठाकुर समाज की एक हुई है इसके साथ ही अन्य कोई भी समाज कभी एक नहीं हो सकी ! सुरखी विधानसभा में सबसे ज्यादा वोटरों की संख्या SC वर्ग की है सुरखी विधानसभा में लगभग हरिजन वोटरों की संख्या 45 हजार के करीब है वही बात करें पटेल वोटरों की तो पटेल वोटर भी 36 हजार के लगभग है,
कुर्मी वोटर भी 16 हजार के लगभग है राजपूत और दांगी वोटरों की संख्या भी 31 हजार के लगभग है, मुस्लिम वोट भी 18 हजार 500 के लगभग है, लोधी समाज के वोट भी भी 20 हजार है,यादव समाज के वोट भी 21हजार 300 के लगभग है ब्राह्मण समाज की भी वोट 16 हजार के करीब है जैन समाज भी 10 हजार के लगभग है आदिवासी समाज के वोटर भी 8 हजार है वही मुस्लिम वोटरों की संख्या 18 हजार 500 के लगभग है साहू समाज के वोटरों की संख्या भी 12 हजार के लगभग है इसके अलावा और भी समाज है लेकिन मुख्यता इन्ही समाज के वोटर चुनाव में अपनी अहम भूमिका निभाते हैं, शायद इसी जातीय समीकरण को देखते हुए हमेशा खामोश रहने वाले राजनीति के चाणक्य कहे जाने वाले भूपेंद्र सिंह कब क्या कर जाए किसी को पता ही नहीं चलता । विधानसभा प्रभारी होने के साथ ही यह सीट जिताने की भी महत्वपूर्ण जिम्मेदारी भूपेंद्र सिंह के कंधो पर है ।शायद यही वजह है कि चुनावी तारीख के घोषणा के पहले भूपेंद्र सिंह ने चाणक्य नीति का परिचय दिया और नाराज चल रहे राजेंद्र सिंह मोकलपुर को मना लिया । राजेंद्र सिंह मोकलपुर लगातार गोविंद सिंह राजपूत से नाराज चल रहे थे । उन्होंने अपनी नाराजगी समय-समय पर मीडिया के जरिए जाहिर भी की थी । राजेंद्र सिंह मोकलपुर की सोशल मीडिया पर पारुल साहू के साथ चाय पर चर्चा की फोटो भी काफी चर्चाओं में रही । शायद जनता को लग भी रहा था कि राजेंद्र सिंह मोकलपुर पारुल साहू के साथ जाएंगे । पारुल साहू को भी राजेंद्र सिंह मोकलपुर पर विश्वास और भरोसा था, क्योंकि 2013 के चुनाव में राजेंद्र सिंह मोकलपुर ने काफी अहम भूमिका निभाई थी और उसका नतीजा था कि पारुल साहू चुनाव जीती थी, राजेंद्र सिंह मोकलपुर से चाय पर चर्चा के बाद ही पारुल साहू ने भाजपा पार्टी छोड़ दी और कांग्रेस का हाथ थाम लिया और कयास लगाए जा रहे थे कि कुछ दिन बाद राजेंद्र सिंह मोकलपुर भी कांग्रेस का हाथ थाम सकते हैं लेकिन राजनीति के धुरंधर खिलाड़ी भूपेंद्र सिंह मोकलपुर की नीति उस समय सफल होती दिखाई दी जब जैसीनगर में मुख्यमंत्री के कार्यक्रम में अचानक एकाएक राजेंद्र सिंह सिंह मोकलपुर मंच पर दिखे और गोविंद सिंह के चेहरे पर यकायक मुस्कान भी दिखाई दी थी ।भले ही राजनीति के इस चाणक्य खिलाड़ी ने मंच से
उद्बोधन नहीं दिया लेकिन उनकी उपस्थिति ने सबको चौंका दिया दिया और अब राजेंद्र सिंह मोकलपुर गोविंद सिंह के साथ दिखाई दे रहे हैं। पारुल साहू अकेली दिखाई पड़ती जा रही है, लेकिन यह उपचुनाव है । सुरखी की जनता खामोश दिखाई दे रही है और खामोशी अप्रत्याशित परिणाम दिखाती है । कब क्या हो जाए या किसी को पता नहीं चलता !
फिलहाल इस वक्त कुछ कह पाना कठिन होगा क्योंकि यह चुनाव आईपीएल के T-20 का चुनाव दिखाई दे रहा है । अंतिम ओवर में क्या हो जाए किसी को कुछ पता नहीं रहता । खैर उपचुनाव में काफी कड़ा मुकाबला देखने को मिलेगा मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की सभा हो चुकी है अब 12 अक्टूबर को पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ जैसीनगर आ रहे हैं । लिहाजा कांग्रेसी कार्यकर्ताओं में उत्साह भी बढ़ेगा । उनको एक ऊर्जा भी मिलेगी और चुनाव का परिणाम कहीं भी जाए लेकिन सुरखी का उपचुनाव काफी महत्व रखता है । इस चुनाव में दोनों प्रत्याशी में से एक को जीतना है,जो प्रत्याशी जीतेगा उसका प्रदेश में कद बढ़ेगा
अंत में सुरखी विधानसभा के कुल वोटरों की संख्या पर भी नजर डाल लेते है........
सुरखी विधानसभा
कुल मतदाता -2 लाख 1 हजार 849
पुरुष -1 लाख 9 हजार 574
महिला -92 हजार 264
मतदान केंद्र 262 सहायक मतदान केंद्र 35
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