कोरोना प्रोटोकाॅल कहता है कि संक्रमण से मृत्यु होने पर शव के अंतिम संस्कार की जिम्मेदारी सरकारी एजेंसियों की है। राजधानी में पहली मौत मई में हुई और तब से जुलाई तक मौतें कम थीं, इसलिए अंतिम संस्कार में सरकारी एजेंसियां नजर आईं। लेकिन जैसे-जैसे मौतें बढ़ रही हैं, परिजन की कोरोना से मौत के गम के साथ-साथ लोगों शव के अंतिम संस्कार की त्रासदी भी खुद झेलनी पड़ रही है।
त्रासदी इसलिए कि निजी अस्पताल शव देने से पहले पूरा बिल तो ले रहे हैं, लेकिन शव को श्मशान पहुंचाने के लिए एक गाड़ी नहीं दे रहे हैं। सरकारी एजेंसियों की एंबुलेंस और पीपीई किट पहने कर्मचारी अब यदा-कदा ही नजर आ रहे हैं। भास्कर की पड़ताल में ऐसे मामले सामने आए, जिनमें लोगों को मुंहमांगी कीमत पर अस्पताल से श्मशान घाट तक के लिए एंबुलेंस मंगवानी पड़ी। मरचुरी से एंबुलेंस तक कोई शव रखने को तैयार नहीं था उनको पीपीई किट पहने बगैर यह भी करना पड़ा है।
1. श्मशान यात्रा 4 हजार में
आमापारा के 66 वर्षीय गोवर्धन बाघमार का कोरोना से 28 अगस्त को निधन हुआ। पोते भूपेंद्र के मुताबिक उन्हें 24 तारीख को समता कालोनी के निजी अस्पताल में भर्ती किया गया, 4 दिन बाद मृत्यु हुई। अस्पताल ने मृत्यु की सूचना दी। हम पहुंचे तो वहां न तो प्रशासन का कोई प्रतिनिधि था न सरकारी शव वाहन। अस्पताल ने भी व्यवस्था नहीं की थी। मजबूरी में एक एंबुलेंस वाले से बात की तो उसने 4 हजार रुपए मांगे। परिजनों के पास पैसे देने के अलावा कोई विकल्प नहीं था।
2. दोस्तों को ही उठाना पड़ा
बोरियाखुर्द के नवनीत सिंह (65वर्ष) का कोरोना से 20 सितंबर को मेडिकल कॉलेज कोविड सेंटर में निधन हुआ। पत्नी व छोटा भाई वहीं थे। नीलेश राम सीनियर ने बताया कि संदेश मिला तो वे, अरविंद सालोमन और उनका तिल्दा का एक रिश्तेदार पहुंचे। शव को मरचुरी से एंबुलेंस तक रखने के लिए कोई तैयार नहीं था। तब हमने ही उठाकर रखा। प्रशासन ने एंबुलेंस भेजी, जो प्रभु वाटिका में शव उतारकर चली गई। हम तीनों ही शव उठाकर भीतर ले गए और अंतिम क्रिया की।
3. बिल दिया, एंबुलेंस मंगवाई
प्रोफेसर कॉलोनी निवासी भाऊराव पाल (68 वर्ष) का निधन 14 सितंबर को हुआ। बेटे अतुल पाल के अनुसार वे कमल विहार के एक अस्पताल में भर्ती थे। अगले दिन सूचना आई कि नया रायपुर श्मशान में अंतिम संस्कार करना है। न एंबुलेंस आई और न ही मदद के लिए कोई सरकारी कर्मचारी। हमने बढ़ते कदम का शव वाहन बुलवाया और श्मशान गए। वहां लकड़ी और एक सरकारी कर्मचारी था। जब निजी अस्पताल शव देने से पहले पूरा बिल लेते हैं तो एंबुलेंस क्यों नहीं देते।
रोजाना आ रहे ऐसे मामले, परिजन खुद उठा रहे खर्च
कोरोना गाइडलाइन में स्पष्ट है कि संक्रमित की मौत के बाद उनके शव को श्मशान घाट तक पहुंचाने से लेकर नियम-कायदे के साथ अंतिम संस्कार तक की क्रिया सरकारी एजेंसियों को करनी है। लेकिन रोजाना ही ऐसे मामले सामने आ रहे हैं, जिनमें शव को श्मशान घाट तक ले जाने की भी कोई व्यवस्था नहीं है। गमजदा और घबराए परिजन को इसकी व्यवस्था भी खुद करनी पड़ रही है। यही नहीं, कुछ मामलों में तो एंबुलेंस से लेकर अंतिम संस्कार का खर्च भी परिजन ने ही उठाया है, जबकि यह पूरा इंतजाम जिला प्रशासन और नगर निगम को निशुल्क करना है। इसका उद्देश्य यही है कि कोरोना की वजह से दहशतजदा परिजन को और तकलीफ न हो। लेकिन हर किसी को यह मदद नहीं मिल पा रही है। सरकारी एजेंसियां शत-प्रतिशत मामलों में ऐसा नहीं कर रही हैं, इसलिए प्राइवेट अस्पतालों ने तो मृत्यु के बाद पूरी जिम्मेदारी परिजन पर ही डाल दी है।
निगम के अपर आयुक्त पुलक भट्टाचार्य ने बताया कि कुछ दिन पहले ही शहर के निजी अस्पताल प्रबंधनों की बैठक लेकर कहा गया था कि कोरोना मरीजों की मौत के बाद उनका शव श्मशानघाट तक पहुंचाने की व्यवस्था उन्हें ही करनी होगी। लेकिन उन्होंने यह भी माना कि ऐसा नहीं करने की काफी शिकायतें मिल रही हैं।
परिजन इंतजार नहीं करते
"कोरोना मृत्यु पर शव को श्मशान घाट ले जाने से लेकर अंतिम संस्कार तक का जिम्मा प्रशासन का है। शव ले जाने के लिए 6 एम्बुलेंस हैं। मौतें ज्यादा हैं और हर एंबुलेंस को एक बाॅडी में 4 घंटे लग जाते हैं। संभवत: इसलिए परिजन इंतजार नहीं करते और एंबुलेंस मंगवा लेते हैं। यह सही है कि निजी अस्पताल यह सुविधा नहीं दे रहे हैं।"
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